रविशंकर उपाध्याय।
जिउतिया या जितिया वह लोकपर्व है जो विशेषकर बिहार-झारखंड-बंगाल और उत्तर प्रदेश में संतानों की सलामती के लिए माताओं द्वारा किया जाता है। इसको हिंदू पर्व परंपरा में जीवित्पुत्रिका व्रत कहा जाता है। तीन दिनों तक चलनेवाले इस त्योहार में नहाय-खाय की सरगही और उपवास के अगले दिन पारण को सात्विक और सुपाच्य आहार ग्रहण किया जाता है। इसमें मडुआ यानी रागी की रोटी, गोला, कुल्फा या नोनी साग, सतपुतिया झिंगी की सब्जी, पोय साग की पकौड़ी, कुसी केराव यानी देसी हरे मटर की कढ़ी, कंदे या अरबी की सब्जी, गेहूं के आटे की दूधपिट्ठी, काशीफल या कोहड़े की सब्जी और खीरे का रायता जैसे अनगिनत व्यंजन बनाए और ग्रहण किए जाते हैं। इस दिन कच्ची हल्दी और महताबी यानी गागर नींबू के साथ ईख की पूजा भी की जाती है। यानी हमारे लोक पर्व और उत्सवधर्मिता की संस्कृति ने उन खाद्य सामग्रियों, सब्जियों और फलों का संरक्षण कर रखा है जिनकी उपयोगिता अब कम हो चुकी है या यूं कहें कि वह अब बिसर सी गयी है। इस लोक पर्व के दरम्यान हम इनसब खाद्य पदार्थों का सेवन आम दिनों में करें या न करें लेकिन जिउतिया में लोक परंपराओं की ही खातिर लेकिन अवश्य रूप से आहार सामग्रियों में उपयोग करते हैं, दरअसल इन सभी खाद्य सामग्रियों का हम इस लोक संस्कृति की परंपरा के माध्यम से सम्मान करते हैं।
हमारे खानपान की आदतें जिन लोक व्यवहार से उपजती है, उन इतिहास के पन्नों को उलटने-पलटने का संदेश भी जिउतिया जैसे त्योहार देते हैं। अब इसी त्योहार के दरम्यान बनने वाली सतपुतिया झिंगी को ले लीजिए, इसकी सब्जी बनती है। इसका सतपुतिया नाम इस कारण पड़ा कि इसकी लता में एक गुच्छे में अमूमन सात फल लगते हैं और जब ये फल बड़े होते हैं तो उसमें सात धारियां होती है। सतपुतिया अर्थात सात संतानों का प्रतिनिधित्व करने वाली इस सब्जी ग्रहण करने की रस्म इस कामना के साथ निभाई जाती है कि कम से कम सात संतान पैदा हों। चूंकि सतपुतिया के सात पूतों यानी सात फलों में से अंतिम तौर पर कुछ ही बच पाते हैं, बाकी धूप और बरसात की मार से गल जाते हैं। याद करिए कि एक समय ऐसा भी था, जब हैजा, प्लेग, चेचक जैसी महामारियों से कम ही बच्चे बच पाते थे। यह माना जाता है कि उन्हीं दिनों में जिउतिया उपवास के उपरांत सतपुतिया सेवन की परंपरा चल पड़ी होगी, इस कामना के साथ कि सतपुतिया की भांति सात पुत्र-पुत्रियां जन्म लें, इनमें
अब तो आधुनिक आहार विज्ञान भी हमारे रसोईघरों से बिसर गए इन देसी खाद्य पदार्थों की विशेषताओं के बारे में बताते हुए नहीं थकता है। मसलन इन दिनों मडुआ या रागी को डायबिटीज के लिए रामबाण कहा जाता है। यह ग्लूटन फ्री होता है, जिससे ग्लूकोज के लेवल में गिरावट आती है। इसको खाने से बार-बार भूख नहीं लगती है। यह हड्डियों को मजबूती देता है, वजन कम करने में मददगार होता है और पेट की समस्याओं से निजात दिलाता है। इसी प्रकार अरबी भी पोषक तत्वों से भरपूर और ठंडी तासीर वाली होती है। इसमें विटामिन ए, विटामिन सी, प्रोटीन, फाइबर, आयरन, पोटै
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