स्व. आलोक, तुम ना दलित थे ना मुस्लिम, तो तुम्हारे दुख के साथ कोई क्यों खड़ा होगा?

स्व. आलोक, तुम ना दलित थे ना मुस्लिम, तो तुम्हारे दुख के साथ कोई क्यों खड़ा होगा? 
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इस देश में अाप दलित होंगे या मुस्लिम तभी आपकी बात सुनी जाएगी? आपके घर पर तभी नेताजी जाएंगे, वे दुख दर्द बांटेंगे और हो सके तो खाना भी खाएंगे? सभी सो कॉल्ड एक्टीविस्ट तभी सड़कों पर उतरेंगे? मोमबत्ती जलाएंगे और फेसबुक पर आक्रामक होकर देश की दशा पर रोयेंगे-गायेंगे? टीवी चैनलों पर तभी डिबेट्स होंगे और इसके बाद एक्टिव जर्नलिस्ट सरकार और सिस्टम की धज्जियां उड़ाएंगे? तभी व्हाट्सअप के डीपी और फेसबुक के प्रोफाइल पिक भी बदले जाएंगे?
इन सवालों को देखते ही यदि मुझे आप दलित और मुस्लिम विरोधी समझ लें उसके पहले स्पष्ट कर दूं कि यह सवाल मेरे जेहन में बिहार के ही अरवल में बैंक ऑफ बड़ौदा के मैनेजर आलोक की निर्मम हत्या के बाद उठे हैं. वही बैंक मैनेजर जिसकी जहानाबाद में हत्या इस कारण कर दी गई क्योंकि उसने अपने बैंक में भ्रष्टाचार को उजागर किया था. उसने दलालों की दुकान बंद करा दी थी. गुजरात के अहमदाबाद से वह इस कारण लौटा था क्योंकि अपने बिहार के विकास में योगदान दे. उसने बैंक के सिस्टम को बेहतर करने की ठानी थी लेकिन इसके पहले उसे भ्रष्टाचारियों ने दिन दहाड़े गोलियों से भून कर हत्या कर दी. एक सप्ताह भी अभी उस घटना के नहीं हुए हैं लेकिन इस बीच हमने बैंकरों को छोड़कर किसी को सड़क पर उतरते नहीं देखा. किसी ने बिहार की कानून व्यवस्था को लेकर सरकार को कठघरे में खड़ा नहीं किया. क्योंकि वह ना दलित था ना मुसलमान?
रोहित वेमुला की आत्महत्या के बाद हैदराबाद यूनिवर्सिटी से लेकर उसके घर तक पहुंचने वाले कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी भी अपनी राजनीति चमकाने नहीं पहुंचे और भ्रष्टाचार का आरोप झेल रहे तेजस्वी यादव जिन्हें कर्नाटक जाकर अपने बिहारी होने पर शर्म आयी वे भी मातमपुर्सी को नहीं पहुंचे. नवादा जिले के वारिसलिगंज में आलोक का परिवार अपने दुख के साथ जी रहा है, फफक रहा है. उसे कसक है कि जवान बेटा क्यों बिहार आया था? वह जार जार रो रहा है कि यदि वह अहमदाबाद में ही होता तो कितना अच्छा होता? उसने क्यों भ्रष्टाचार की जड़ें खोदी? उसे सत्य हरिश्चंद्र बनने की क्या पड़ी थी? गांव के साथ ही जवार को संदेश जा रहा है, युवाओं को बताया जा रहा है कि देखो सबकुछ करना लेकिन भ्रष्टाचारियों के साथ पंगा मत लेना. इस भ्रष्ट सिस्टम के साथ ही हो लेना, क्रांतिकारी मत बनना. तुम्हारे साथ कोई खड़ा नहीं होगा क्योंकि तुम दलित-मुसलमान नहीं हो ना? इस देश की अस्मिता नहीं खतरे में आयेगी क्योंकि तुम्हारे जाने से किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता. 

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