गर्मी में कैसा हो हमारा खानपान?



रविशंकर उपाध्याय

हमारी भोजन संबंधी आदतों का निर्माण प्रकृति करती है। मौसम और जलवायु के साथ समन्वय बिठाते हुए जिस क्षेत्र में प्रकृति जो खाद्यान्न मनुष्यों को उपलब्ध कराती है, वह उसी को विभिन्न रूपों में ग्रहण करता है। जैसे उत्तर पूर्व और दक्षिण भारत में चावल की उपज होने से यह मुख्य आहार में शामिल है तो पश्चिमोत्तर भारत में गेहूं और जौ की उपज अधिक होने से यह मुख्य खाद्यान्न में शुमार है। इसके अलावा क्षेत्र विशेष में उपजने वाले ऋतुफल और सब्जियां हमारे भोजन का मुख्य हिस्सा होती हैं। ऋतु में परिवर्तन के कारण हमारी भोजन संबंधी आदतों में समय-समय पर बदलाव न केवल मौसम की मांग होती है बल्कि यह हमारे शरीर के लिए भी उतना ही अनुकूल होता है। गर्मी में शरीर को ठंडा करने वाले खाद्य पदार्थ और बिना पकाए हुए आहार शरीर के तापमान को कम करने और रिकॉर्ड तोड़ उच्च तापमान को सहनीय बनाने में मदद करते हैं। यही कारण है कि इस मौसम में प्रकृति प्रदत फल- सब्जियां जिसमें आम, संतरा, आंवला, खीरा, ककड़ी, तरबूज आदि के साथ बिना आग पर पकाए हुए आहार प्राचीन समय से ही हमारी भोजन परंपरा का हिस्सा रही हैं। क्योंकि इनकी तासीर ठंडी मानी जाती है।

प्राचीन काल से हमारी आहार परंपरा में मौसम को देखते हुए ये उल्लेखनीय परिवर्तन होते रहे हैं। बुद्धकालीन समाज में एक आहार बेहद प्रसिद्ध था वह था यवागु। यवागु एक लोकप्रिय तरल खाद्य पदार्थ था। इसे यव यानी भात से बनाया जाता था। यवागु तैयार करने के लिए रात्रि में भात और पानी मिलाकर रख दिया जाता था और प्रात: काल में इसमें नमक, मिर्च और निबू आदि मिलाकर खाया जाता था। यह न केवल पेट को लंबे वक्त तक ठंडक प्रदान करता था बल्कि गर्मी से निबटने का एक वैकल्पिक तरीका भी हुआ करता था। इसी प्रकार दूध और उससे निर्मित होने वाले दही-छाछ आदि का इस्तेमाल गर्मी से बचने के लिए किए जाने के प्रमाण मिलते हैं।

मानव सभ्यता में पहला मिष्ठान्न खीर माना जाता है, जिसमें अन्न को दूध में मधु या शर्करा का उपयोग कर बनाया गया था। सिद्धार्थ गौतम को उरुवेला यानी आधुनिक बोधगया में सुजाता ने जीवन की सार्थकता को खीर खिलाकर ही समझाया था, जो उनके लिए ज्ञान का आत्मबोध कराने में सहायक सिद्ध हुई। महावग्ग नामक जातक कथा में बताया गया है कि खीर लोगों का प्रिय आहार हुआ करता था। महात्मा बुद्ध ने भिक्षुओं को इस आहार का गुण बतलाते हुए कहा था कि प्रात: कालीन जलपान के लिए खीर सर्वोत्तम आहार था। उन दिनों खीर में शहद मिलाकर खाया जाता था। रात में खीर बनाकर उसे ठंडा होने के लिए छोड़ दिया जाता था और फिर सुबह में खाया जाता था। महर्षि पाणिनी गर्मी में सत्तू पीने का जिक्र अपनी पुस्तक अष्टाध्यायी में किया है। वह कहते हैं कि गर्मी से बचने के लिए सत्तू को पानी में घोलकर पिया जाता रहा है। सत्तू के लिए उदमंथ और कुम्मास शब्द का जिक्र मिलता है।

भोजन की यह परंपरा कहीं न कहीं हमारी प्राचीन चिकित्सा पद्धित आयुर्वेद से प्रभावित जान पड़ती है। आयुर्वेद में बताया गया है कि गर्मी के इस मौसम में ठंडी तासीर और चिकनाई वाली चीजों का सेवन ज्यादा करना चाहिए। इसके लिए सत्तू का शर्बतदूध-चावल की ठंडी खीरछाछलस्सीआम पन्नानारियल पानीनींबू पानीककड़ीतरबूजमौसमी फलों का रसपुदीनागुलकंदसौंफ और धनिया का सेवन करने की सलाह दी जाती है। गर्मी के मौसम में मिलने वाले लौकी, कद्दू, परवल, साग, छिलका सहित आलूकरेलाकच्चा केलाचौलाईछिलका सहित मूंग- मसूर की दाल आदि को आहार में शामिल करने पर बल दिया गया है। अतिथियों को सत्कार स्वरूप नीबू-पानी प्रदान करने और गर्मी में बाहर जाने के पूर्व या आने के बाद नीबू पानी और शक्कर का शर्बत पीने के पीछे भी यही विज्ञान है। नींबू या नीबू के रसनमक और चीनी का मिश्रण है न केवल ठंडा करता है बल्कि शरीर के अत्यधिक गर्म होने के कारण कम हो चुके इलेक्ट्रोलाइट्स की भरपाई भी करता है।

गर्मियों में पाचन शक्ति काफी कमजोर हो जाती हैइसलिए गरिष्ठ (तले-भुने-मसालेदार) भोजन से बचने की सलाह दी जाती है। इस मौसम में तरल और सुपाच्य आहार का सेवन सर्वोत्तम माना जाता है। आधुनिक आहार विज्ञान तो कहता है कि कैलोरी कम लेने से भी आप गर्मी के प्रकोप से कुछ हद तक मुक्ति पा सकते हैं। चूंकि ग्लोबल वार्मिंग के कारण तापमान में औसतन बढ़ोत्तरी होती जा रही है इस कारण यह कहा जाता है कि दुनिया के गर्म होते जाने के साथ-साथ अपने खान-पान को अनुकूलित करना ही होगा। दैनिक कैलोरी में कटौती करने से शरीर का मुख्य तापमान कम हो सकता हैक्योंकि जब आपका शरीर कैलोरी संधारित करता हैतो यह ऊर्जा और गर्मी उत्पन्न करता है। 2011 के एक अध्ययन से पता चला है कि दैनिक कैलोरी सेवन को 23% कम करने से शरीर का तापमान आधा डिग्री सेल्सियस से कम हो सकता है। आहार विज्ञानी कहते हैं कि यह बहुत बड़ी गिरावट की तरह नहीं लग सकता हैलेकिन जब इसके व्यापक प्रभावों को देखेंगे तो इससे लू या हीट स्ट्रोक को रोकने में मदद मिल सकती है। समय-समय पर उपवास करने से भी शरीर में कैलोरी बर्न होती है, इससे शरीर के तापमान को कम करने में मदद मिलती है। आप यह देखते होंगे कि जब अत्यधिक गर्मी होती हैतो अधिकांश लोगों की भूख कम होने लगती है। इस कारण उपवास गर्मी से बचने के लिए एक शारीरिक मुकाबला तंत्र हो सकता है। लेकिन यह उपवास बहुत लंबा नहीं होना चाहिए बल्कि उसे पेय पदार्थों की मदद से संतुलित रखने की आवश्यकता होती है।

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