पटना एम्स : यहां इलाज कराने के लिए इंतजार करें, आप कतार में हैं...

-ओपीडी के लाइन सिस्टम पर भारी दबाव
-डॉक्टर सुबह दस बजे के बाद ही आते हैं
रविशंकर उपाध्याय4पटना.

सीन: 1. मसौढ़ी के कमलेश प्रसाद सुबह चार बजे ही मोटरसाइकिल से यहां इलाज कराने के लिए पहुंचे हैं. वे कहते हैं कि यहां लाइन सिस्टम का जंजाल है सर. पहले ओपीडी में रजिस्ट्रेशन के लिए लाइन में लगिए, इसके बाद डॉक्टर से इलाज कराने के लिए लाइन में लगिए, इसके बाद जांच के लिए डिबिया लेने के लिए लाइन में लगिए. वहां से रिपोर्ट देने के लिए जाइए तब लाइन में लगिए. रिपोर्ट लेने के लिए लाइन में लगिए और फिर वह रिपोर्ट लेकर डॉक्टर को दिखाने के लिए लाइन में लगिए. वह पूछते हैं कि एक दिन में इलाज कराने का कोई सिस्टम क्यों नहीं है?
सीन: 2. आमोद गोप सोनपुर से अपने पिता को लेकर एम्स में सुबह सात बजे से ही पहुंचे हुए हैं. इसके पहले 29 अगस्त को यहां आये थे. आठ प्रकार की जांच डॉक्टरों ने लिखी तो वे उसे करा नहीं सके. जांच रिपोर्ट लेने के बाद जेनरल मेडिसीन में डॉक्टर का इंतजार कर रहे थे. 9.30 बजे तक यहां डॉक्टर नहीं पहुंचे थे. वे कहते हैं कि लाइन में लगाकर यहां धैर्य की परीक्षा ली जाती है. कई लोग बेहोश होंगे तभी यहां का सिस्टम थमेगा.
सीन: 3. दीघा के नासिर अपनी पत्नी के गॉल ब्लैडर का ऑपरेशन कराने के लिए पहुंचे हैं. वह कहते हैं कि कोई सिस्टम यहां नहीं है. दस दिनों तक हम बेसिक इलाज कराने के लिए इधर से उधर टहल रहे हैं. इसीजी और अल्ट्रासाउंड जांच के लिए सात दिनों का समय दिया गया. अब ये जांच के लिए पहुंचे हैं. कहते हैं कि यहां एक चौथाई फीस लगती है लेकिन लंबा इंतजार करना पड़ता है. यही नहीं कर्मचारियों का व्यवहार इतना रूखा रहता है कि पूछिये मत.
सीन: 4. जहानाबाद से रौनक परवीन अपने दूधमुंहे बच्चे के साथ यहां दूसरी बार इलाज के लिए पहुंची हैं. वह कहती हैं कि ओपीडी में निबंधन, इसके बाद विभाग में निबंधन और फिर डॉक्टर के पास ऑनलाइन निबंधन कराने का सिस्टम इतना परेशान करता है कि पूछिए मत. अकेली महिलाओं के लिए इलाज कराना भारी दिक्कतों से भरा है. गार्ड और कर्मचारी सीधे मुंह बात नहीं करते हैं.

ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइसेंज यानी एम्स का पटना सेंटर. फुलवारीशरीफ में 134 एकड़ के विशाल दायरे में फैला यह केवल अस्पताल नहीं है बल्कि यह उम्मीदों का केंद्र भी है. 2012 में जब यह अस्पताल बनकर तैयार हुआ तो फिर राज्य भर के लोगों की उम्मीदें इससे जुड़ गयी. इसके पीछे दिल्ली एम्स की छवि थी. अभी वे बेहतर इलाज की आस में वे यहां आते हैं लेकिन उनकी उम्मीदें टूटती है यहां के कतारों के चक्कर दर चक्कर में. उनकी उम्मीदें टूटती है यहां जांच केंद्र पर लंबे डेट्स मिलने में, उनकी उम्मीदें टूटती हैं डॉक्टरों के द्वारा बाजार की दवाएं लिखने पर. जब प्रभात खबर की टीम यहां सुबह नौ बजे पहुंची तो उन्हीं सपनों का टूटना हमें अोपीडी के फर्श पर, आइपीडी के बेड पर दिखाई दिया.
इंतजार, इंतजार और बस इंतजार...
हमें ओपीडी में जेनरल मेडिसीन विभाग में जगदीशपुर, आरा से गुड़िया कुमारी मिल गयीं. वह लाइन में दो घंटे से लगी हुई थी. थककर वहीं फर्श पर बैठी हुई थी. कहने लगी सुबह चार बजे से आयी हुई हूं, मेरा भाई विकलांग है. उसे यहां मार्शल गाड़ी किराया कर पहुंची हुई हूं. दस बज गये लेकिन अभी तक डॉक्टर नहीं आये हैं. लाइन में लगे लगे थक गयी तो बैठ गयी हूं. अब मैं कैसे इलाज करा सकूंगी. सभी की सलाह पर यहां आयी थी. यह हाल केवल गुड़िया का नहीं था. हमें हाजीपुर के प्रकाश कुमार भी मिले, वह कहते हैं कि इतने बड़े अस्पताल में केवल एक ही हेल्प डेस्क है. वहां भी कभी कर्मचारी रहता है कभी नहीं रहता है. किसी कर्मचारी से पूछिए तो उसका व्यवहार कुत्ते बिल्ली सा हाेता है. हमें आर्थोपेडिक्स डिपार्टमेंट में राजापुर बक्सर के रहने वाले शोभित राय मिल गये. उन्होंने फ्रैक्चर हो जाने के बाद 18 अगस्त को यहां डॉक्टरों से दिखाया था. मंगलवार को दोबारा आये हुए थे. उन्हें डॉक्टरों ने बताया कि 12 बजे के बाद देखेंगे तो वह अपने प्लास्टर के साथ इंतजार कर रहे थे. कहने लगे, यहां आते हैं तो यह बात पहले से ही तय कर लेते हैं कि इंतजार तो करना ही होगा, कोई उपाय नहीं है.
इधर जांच का इंतजार भी कुछ कम नहीं
एक्स-रे हो या फिर अल्ट्रासाउंड, सिटी स्कैन या एमआरआइ किसी भी प्रकार की जांच उसी दिन तो यहां नहीं ही हो पाती है. इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि रोजाना नये मरीजों की संख्या 2500-3000 के बीच है. ये मरीज जब विभागों में आते हैं तो यहां डॉक्टर देखने के बाद उन्हें जांच के लिए भेजते हैं. यहीं से इंतजार का एक और सिलसिला शुरू होता है. एक्स-रे के लिए भी दो सप्ताह का इंतजार करना पड़ता है. सिटी स्कैन के लिए भी इतना ही वक्त लग सकता है और यदि एमआरआइ कराना पड़ा तो फिर छह महीने तक आपको वेट करना होगा. चांदपुर वैशाली के लक्ष्मण ठाकुर की कहानी और दुखी करने वाली है. वे अपने छह साल के पोते के साथ पहुंचे हुए हैं. वे कहते हैं कि 14 अगस्त से यहां आ रहे हैं सर. पोते का पैर जन्म से ही टेढ़ा है. अब डॉक्टरों के पास गया तो उन्होंने एम्स आने की सलाह दी. वैशाली से पूरे परिवार के साथ यहां आया. बहुत मुश्किल से इलाज कराया लेकिन सिटी स्कैन के लिए लंबा इंतजार करना पड़ा. अब यहां जांच रिपोर्ट दिखाने के लिए डॉक्टरों के आने का इंतजार करना पड़ रहा है.
दवाओं का खेल: मरीज को डॉक्टर ने देखा, उधर बाहर दुकानों में चली जाती है लिस्ट
यहां दवाओं का खेल भी उतना ही गहरा है जितना इंतजार का सिलसिला. यहां दवाओं के खेल के भुक्तभोगी ने हमें इस पूरी कहानी के बारे में बताया. अमृत दवा केंद्र के बाहर महनार, वैशाली के जमशेद आलम मिल गये. वे अपने नस से संबंधित बीमारी का इलाज कराने के लिए यहां आये हुए हैं. उन्हें ओपीडी में पांच दवाएं लिखी गयी थी. एक कर्मचारी ने उसी वक्त पुर्जे की तस्वीर खींच ली थी. जमशेद को क्या पता था कि उनका पुर्जा एम्स के गेट के बाहर की दवा दुकानों पर पहुंच जायेगी. इसका पता उसे तब चला जब वह परिसर में स्थित अमृत दुकान में दवा लेने गया. वहां एक भी दवा नहीं मिली और जब एम्स के गेट के बाहर पहुंचा तो वहां पर दवाओं की लिस्ट पहुंची हुई थी. दवाओं की कीमत बतायी गयी 4400 रुपये. उसके पैरों के नीचे जमीन खिसक गयी. हमें जमशेद आलम ने बताया कि यहां पूरी दलाली का धंधा चल रहा है. हम इसके पहले दिल्ली एम्स में भी दिखा चुके हैं लेकिन यहां न केवल कर्मचारियों का व्यवहार गंदा है बल्कि दवाएं इतनी महंगी लिखी जा रही है कि या तो हम खरीद न सकें या खरीदें तो फिर उससे डॉक्टरों का घर भरें.
अमृत दुकान के बाद हमें आरा के कन्हैया पांडे भी मिले. वह कहने लगे कि ऑपरेशन कराना है, हमें इतनी दवाएं लिखी गयी है कि दस में से केवल दो ही यहां सस्ती दवा दुकान में मिल रही है. बाकी सभी दवाईयां बहार में ही मिलती है. अब बताइए कि ऐसी दुकानों का क्या लाभ? यहां मधेपुरा की विभा कुमारी भी मिल जाती हैं जो मधेपुरा से यहां इलाज के लिए पहुंची हैं. विभा कहती हैं कि यहां पांच में से केवल दो दवाएं अमृत दवा दुकान में मिली हैं. बाकी दवाओं का रेट बाहर में पूछा तो काफी महंगा है. अब आप साफ समझ सकते हैं कि हमें सस्ती दवाओं को देने के नाम पर किस प्रकार कॉरपोरेट कंपनियों को फायदा पहुंचाया जाता है, यह उसकी एक बानगी है.

यहां की तस्वीर बनी है नजीर:
आइपीडी में दवा दुकान खुलने से बड़ी राहत

इस बीच यहां सबकुछ स्याह नहीं है. कई अच्छाईयां भी है, जिससे मरीजों को काफी राहत मिल रही है. मसलन जब हम आइपीडी में पहुंचे तो सबकुछ करीने से यहां सजा दिखाई दिया. यहां मरीजों के परिजनों के लिए आरामदायक स्थिति है. एयरकंडीशन कमरा होने के कारण सुविधा मिलती है. यहां दवा की दुकान खोली गयी है, उन दुकानों पर सस्ते दर में ज्यादातर दवाईयां मिल जाती है. हमें एक मरीज के परिजन सनोज ने बताया कि सबसे अच्छी बात है कि डॉक्टर यहां की दुकान पर मौजूद दवाईयां ही लिखते हैं. इसके कारण हमें बहुत सहूलियत होती है. यहां से उतर कर बाहर जाने की जहमत नहीं उठानी पड़ती है. कई और मरीजों के साथ उनके परिजनों ने भी इसकी तारीफ की.
ट्रॉमा-इमरजेंसी में सुविधाएं काफी अच्छी
अस्पताल के इमरजेंसी सेक्शन ट्रॉमा सेंटर में सुविधाएं काफी अच्छी है. यहां दो हेल्प सेंटर बनाये गये हैं. एक ग्राउंड फ्लोर पर सेंटर है, जहां पर आपको कहां कैसे जाना है, इसकी जानकारी दी जाती है. वहीं जब आप पहले फ्लोर पर पहुंचते हैं तो फिर वहां पर हेल्प सेंटर पर आपको विभिन्न विभागों के डॉक्टरों के बारे में जानकारी देता है. यहां से जब आप वार्ड में पहुंचते हैं तो वहां की तस्वीर आपकी आंखों को सुकून देती है. बिल्कुल साफ सुथरे बिस्तर, उसपर सफेद बेड कवर और तकिया कवर. सभी धुले और बेहद स्वच्छ. यहां तीसरे तल्ले पर हमें राजेश कुमार और चंद्रभूषण मिल गये. दोनों के परिजन यहां भर्ती हैं. दोनों ने कहा कि यहां की व्यवस्था बेहद अच्छी है. किसी भी व्यक्ति को यहां आ जाने के बाद परेशान होने की आवश्यकता नहीं पड़ती है.
सुरक्षा गार्ड को नहीं मिलती साप्ताहिक छुट्टी
एम्स में लगभग 500 सुरक्षा गार्डों को साप्ताहिक छुट्टी नहीं दी जाती है. सिक्योरिटी सॉल्यूशन सर्विस एजेंसी यहां प्राइवेट सुरक्षा गार्डों को संभालती है. यहां हमें कई गार्डों ने इस समस्या के बारे में बताया. उनका कहना था कि महीने में 30 दिन ड्यूटी ली जाती है. यदि हमने कोई छुट्टी ली तो 500 रुपये प्रति दिन के हिसाब से पैसा काट लिया जाता है. यही नहीं तय दर के हिसाब से भी भुगतान नहीं किया जाता है. हमें कुल 15000 रुपये महीने की सैलरी दी जाती है जबकि साइन लगभग 18000 रुपये के वाउचर पर लिया जाता है. जब इस मसले पर हमने सिक्यूरिटी इंचार्ज कमलेश्वर सिंह से बात करनी चाही तो वे चैंबर में मौजूद नहीं थे. हमने उन्हें फोन और मैसेज भी किया लेकिन उन्होंने इस बाबत कोई जवाब नहीं दिया.
कैंटीन को जगह मिलने का है इंतजार
मरीज और उसके परिजनों को यहां बेहतर कैंटीन अबतक उपलब्ध नहीं हो सका है. आठ साल से यहां कैंटीन खाली जमीन पर गड्ढे में चल रहा है. कई अधिकारी आये और गये लेकिन उन्होंने इस समस्या का समाधान नहीं किया है. इसका सीधा असर यह हुआ है कि जो लोग यहां इलाज कराने के लिए पहुंच रहे हैं उनको यह सुविधा नहीं मिल पा रही है. कैंटीन के संचालक सभी आवश्यक सामग्री बनाते हैं लेकिन धूप या बरसात के कारण लोग यहां तक नहीं आना चाहते हैं.
एम्स गेट पर में जलजमाव की समस्या जारी :
एम्स के गेट पर जलजमाव की समस्या अभी भी जारी है. नाली का निर्माण नहीं होने के कारण जलजमाव यहां परेशानी का बड़ा सबब बना हुआ रहता है. जिससे दुर्गंध आती है और मरीज के साथ उनके परिजन भी परेशान होते हैं. एम्स प्रबंधन ने इस बाबत पथ निर्माण विभाग से लेकर नगर निकाय को शिकायत की लेकिन इसका कोई असर नहीं हुआ. अब यहां के इंजीनियर ने बुडको में अपनी अर्जी लगायी है. निदेशक पीके सिंह के मुताबिक इस समस्या का समाधान अब हो जाना चाहिए.
पटना एम्स : एक नजर में
एम्स पटना 134 एकड़ में फैला हुआ है, जिसमें 100 एकड़ में मुख्य चिकित्सा कॉलेज परिसर और 34 एकड़ में आवासीय परिसर शामिल है. यह पटना शहर से 10 किमी दूर फुलवारीशरीफ में वाल्मी संस्थान के पास स्थित है. इसकी नींव 2004 में तत्कालीन उप राष्ट्रपति भैरो सिंह शेखावत ने रखी थी. यह अस्पताल 25 सितंबर 2012 को शुरू हुआ. अभी कुल 100 डॉक्टर यहां से सालाना पढ़ कर बाहर निकल रहे हैं. जिसकी सीटें इस साल बढ़ा दी गयी हैं. यहां रोज 2500 से 3000 नये मरीज इलाज के लिए केवल ओपीडी में पहुंचते हैं.

सीधी बात: डॉ पीके सिंह, निदेशक, पटना एम्स
प्र. एम्स में इलाज कराने के लिए लाइनों का जंजाल ज्यादा क्यों है?
उ.
हमारे यहां मरीजों की संख्या काफी ज्यादा है. रोज तीन हजार नये मरीज और इसके साथ ही पुराने मरीज को देखने में दिक्कतें तो आयेगी. लोग अपनी मामूली बीमारियों को लेकर भी बड़े अस्पताल में ही आना चाहते हैं. इसके कारण भीड़ काफी हो जाती है. अव्यवस्था नहीं हो इसके लिए लाइन का सिस्टम है.
प्र. अस्पताल के ओपीडी में डॉक्टर समय पर क्यों नहीं आते हैं?
उ.
हमारे यहां सुबह 8-9 बजे के बीच डॉक्टर के क्लासेज चलते हैं. वे सुबह नौ बजे आकर राउंड लेते हैं. इसके बाद ही वे ओपीडी में पहुंचते हैं. इस बीच लोग लाइन में लग जाते हैं.
प्र. मरीजों को डॉक्टर बाजार की महंगी दवाईयां लिख रहे हैं, अमृत केंद्र में दवाई क्यों नहीं है?
उ.
अमृत केंद्र में दवाईयों की उपलब्धता के लिए केंद्र को कई बार पत्र लिखा गया है. इसके बाद भी दवाईयां नहीं आ रही है. ओपीडी के लिए हम दवाओं की दुकान नहीं खोल सकते हैं. यह संभव नहीं है. आइपीडी में हमने सस्ती दवाईयां उपलब्ध करा दी है. डॉक्टरों को महंगी दवाई लिखने के निर्देश नहीं दिये गये हैं.
प्र. अस्पताल में डॉक्टरों की कमी बरकरार है, सभी विभाग भी क्यों नहीं खुल सके हैं?
उ.
डॉक्टरों की कमी को दूर करने के लिए लगातार नियुक्ति प्रक्रिया चल रही है. सारे डिपार्टमेंट को फंक्शन में लाया जा रहा है. कैथलैब हम जल्द ही शुरू करेंगे. आइसीयू भी तैयार हो गये हैं. लोगों को सस्ता और बेहतर इलाज मिले, यह हमारी मुहिम का हिस्सा है.
प्र. लोगों को जांच में काफी समय लग रहा है, क्या निदान कर रहे हैं?
उ.
कई जांच तो 24 घंटे में हो जा रहे हैं. इस बीच जांच की कई मशीनें खरीदी जा रही है ताकि जांच के लिए लोगों को कम समय लगे. अभी हमारे पास बेड साइड एक्सरे मशीन है, सबसे बेहतर एमआरआई मशीन है, एक नयी एमआरआई आने वाली है. लोगों की समस्याएं जरूर दूर होंगी.

Comments