पार्वती-दरियापुर : ह्वेन सांग से लेकर अब तक बरकरार है नवादा के इस गांव के 1400 सालों का इतिहास

1400 साल पुराने गांव में छुपा है एक दिलचस्प इतिहास

रविशंकर उपाध्याय®पार्वती गांव से लौटकर 
दरियापुर पार्वती, इस गांव से होकर तो मैं कई बार गुजरा हूं. हालांकि यहां के अवशेष को देखने का मौका 2008-9 में बतौर पत्रकार ही मिला था. लेकिन बसंत पंचमी को जब गया तो इस स्थान को ज्यादा करीब से महसूस किया क्योंकि इस दफे मैं ब्रिटिश आर्कियोलॉजिस्ट जेडी बेगलर को पढ़कर गया था. बहरहाल जब मैं बसंत पंचमी को यहां पहुंचा तो यहां सालाना मेले की तैयारी चल रही थी. सुबह सुबह यहां पहुंचने के बाद मैंने देखा कि झूले और मिठाई की दुकान वाले अपनी तैयारी में लगे थे. इस पहाड़ की चढ़ाई दस साल पहले से काफी अासान हो गयी है क्योंकि नवादा जिला प्रशासन ने चढ़ने के लिए घर्षण युक्त टाइल्स लगाये हैं जो चढ़ने में काफी आरामदायक लगता हैं. यही नहीं पहाड़ी पर जगह जगह आराम कुर्सियां भी लगायी गयी है ताकि आप थकें तो आराम कर सकें. जब यहां पहुंचा तो यहां हाल ही में बुद्ध की प्लास्टर अॉफ पेरिस की बनी बुद्ध की नयी प्रतिमा धर्मचक्र प्रवर्तन मुद्रा में मिली. पता चला कि इसे कुछ समय पहले ही यहां लगाया गया है. यहां की गुफा में भी सफेद रंग की बुद्ध की प्रतिमा लगायी गयी है. गुफा के इर्द-गिर्द के पत्थरों पर बने शैल चित्र का इतिहास अभी भी अनसुलझा है. हालांकि यह जानकर दुख भी हुआ कि गांव के लोग अपने ही समृद्ध इतिहास से अछूते हैं. वे पार्वती पहाड़ी की गुफा को इंद्रशाल गुफा कहते हैं, जहां बुद्ध का इंद्र ने साक्षात्कार किया था. गांव वाले इसे 500 ईसा पूर्व की घटना बताते हुए कहते हैं कि कुल 42 सवाल बुद्ध से पूछ गये थे लेकिन यह कहां तक सत्य है, यह नहीं कहा जा सकता.
पार्वती गांव में पहाड़ के ऊपर लगाया गया एक साइनबोर्ड
ह्वेन सांग, चार्ल्स स्टीवर्ड, एलेक्जेंडर कनिंघम से लेकर बेगलर तक यहां पहुंचे
बहरहाल, आर्कियोलाॅजिस्ट जोसेफ डेविड बेगलर ने अपनी किताब Report of a Tour through the Bengal Provinces में इस गांव पार्वती पर पूरा चैप्टर ही लिखा है. 1872-73 में उन्होंने भी इस गांव का नाम पार्वती या दरियापुर पार्वती ही बताया है. उन्होंने यह भी लिखा है कि चार्ल्स स्टीवर्ट के हिस्ट्री आॅफ बंगाल में भी दरियापुर का उल्लेख है, पृष्ठ 155 में उन्होंने लिखा है कि यह पटना से 50 मील की दूरी पर स्थित है, जो वास्तविक दूरी वाया बिहारशरीफ के निकट है. चार्ल्स ने वह शोध पुस्तक 1757 में लिखी थी. इस गांव में ह्वेन सांग, चार्ल्स स्टीवर्ड, एलेक्जेंडर कनिंघम से लेकर बेगलर तक यहां पहुंचे हैं. बेगलर कहते हैं कि इस पहाड़ पर कई प्राचीन अवशेष बिखरे पड़े हैं. वे लिखते हैं कि ज्यादातर अवशेष पावर्ती हिल या गढ़ के पास स्थित है. जनरल कनिंघम ने सुझाव दिया है कि यह ह्वेनसांग के पर्वता या कबूतर मठ का स्थान हो सकता है. नाम का यह संयोग और निस्संदेह बौद्ध अवशेषों के आधार पर यह कहा भी जा सकता है. यह प्राचीन कबूतर मठ के स्थल के रूप में जाना जाता है. यानी ह्वेन सांग जो 627 से 643 ई़ के आसपास भारत के सिल्क रूट इलाके में घूमा. उसने भी यहां का जिक्र किया. यानी लगभग 1400 सालों से पार्वती का लिखित इतिहास मौजूद है. हालांकि इन तीनों लेखकों यानी ह्वेन सांग, चार्ल्स स्टीवर्ड और एलेक्जेंडर कनिंघम ने यहां के बारे में बहुत ज्यादा नहीं लिखा लेकिन बेगलर ने काफी विस्तार से यहां के बारे में लिखा है. जिसके बारे में नवादा-नालंदा के लोगों को ही नहीं बल्कि पूरे बिहार के लोगों को जानना चाहिए.
बेगलर ने यहां क्या देखा था?
बेगलर के मुताबिक पहाड़ी बहुत खड़ी ढलान के साथ है, पश्चिम में तो यह लगभग खड़ी है, जहां बाढ़ के दौरान सकरी नदी इसके पांव पखारती है. दक्षिणपूर्व में यह एक लंबे कोमल स्पर को बाहर ले जाता है और उस पर काफी समतल जमीन है. पहाड़ी की चोटी पर समतल जमीन का एक छोटा सा हिस्सा भी है. सबसे आसान चढ़ाई तभी कर सकते हैं जब आपके पास इसकी मजबूत प्रेरणा होगी. इस जमीन के विभिन्न स्थानों पर प्राचीन इमारतों के खंडहर या बल्कि निशान हैं; ऐसा प्रतीत होता है कि अकेले पत्थर के नहीं, बल्कि ईंटों के टुकड़े जगह-जगह बिखरे पड़े हैं. यहां बड़े आकार के कुल 13 टीले हैं और छोटे आकार के 5 या 6. इनमें से सबसे उत्तरी शिखर पर एक शीर्ष 15 या 18 फीट व्यास का खंडहर है, इसे पहले खोदा गया था और इसे जिस गरीब मजदूर ने खोदा था, उसे कुछ मूंगा और कुछ सिक्के देकर पुरस्कृत किया गया था. जब बेगलर पहुंचे तो उस आदमी ने गांव छोड़ दिया था और सिक्कों को देखने का उनका प्रयास विफल हो गया.
यहां 1872 में भी बिखरी पड़ी थी बुद्ध की मूर्तियां
पहाड़ी में एक गुफा है जहां स्थित मूर्तियों में से एक बुद्ध की है. धम्म में इस पर खुदा हुआ है; मूर्तियां सभी काले बेसाल्ट पत्थरों की हैं. इन बौद्ध खंडहरों के अलावा यहां एक छोटा मुहम्मदन दरगाह भी है. यहां की कथा परंपरा कहती है कि एक पुराना हिंदू फकीर एक बार यहां रह रहा था, जब एक लाश सकरी के नीचे तैरती हुई आई, और उस फकीर ने सपना देखा कि लाश ने उसे अपना नाम चान हाजी बताया था, और वह चाहता था कि यहां एक कब्र खोदी जाए. पहाड़ी के दक्षिणी-पूर्वी छोर के पास एक स्थान, जिसका उसने वर्णन किया, और एक इनाम के रूप में, उसने जिले के राज (संप्रभुता) को फकीर को देने का वादा किया. फकीर ने निर्देशन किया और बाद में राजा बना. दरगाह जो अब खड़ा है, उसके द्वारा बनाया गया था. लेकिन यह नाम की वास्तविक उत्पत्ति है या नहीं, इसमें कोई संदेह नहीं है कि प्राचीन काल में इसका नाम पार्वता था, और जैसा कि नामों की पहचान के अलावा, इसमें कई और महत्वपूर्ण बौद्ध संरचनाएं शामिल थीं, मुझे लगता है कि हम सुरक्षित रूप से हो सकते हैं इसे ह्वेन थ्सांग के कबूतर मठ के स्थल के रूप में माना जाता है, अपसढ़ और गिरियक से इसकी दूरी पर उन्होंने कुछ कुछ सटीक लिखा है. पावर्ती ने अकबर के बाद भी अपना कुछ महत्व बनाये रखा था.

कभी गिरियक में था सड़क डिवीजन का मुख्यालय
बेगलर ने लिखा है कि इसके पश्चिम में एक और बड़ा टीला दिखाई देता है, जिसे एक टीले का खंडहर भी कहा जाता है. यह कार्यकारी और सहायक इंजीनियरों द्वारा खोदा गया था, जब बिहार स्थानीय सड़क डिवीजन का मुख्यालय गिरियक में था. ऐसा कहा जाता है कि इस डिवीजन ने कुछ ज्यादा काम नहीं किया था. दो अन्य टीले, एक पहाड़ी के दक्षिणी पूर्वी छोर पर और एक इसके उत्तर-पश्चिम में, यह भी कहा जाता है कि यहां सिक्के बनाये जाते थे. जिन दो टीलों के नीचे सिक्के मिले हैं वे स्पष्ट रूप से इमारतों, मठों या मंदिरों के अवशेष हैं. यहां तत्कालीन राजाओं के कचहरी भी थे. पहाड़ी पर समतल जमीन के सबसे बड़े हिस्से पर कई इमारतों के खंडहर हैं, पारंपरिक रूप से कहा जाता है कि यह बावन सुबाह नामक राजा का महल था. यह भवन वास्तव में प्रतीत होता है कि एक बड़ा मठ था, शायद एक मंदिर भी इसके बीच में मौजूद था. पहाड़ी पर कटे-फटे ब्लॉक मौजूद हैं, जो बताते हैं कि मूर्तियां रही होंगी. हालांकि उत्तर की ओर पहाड़ी के नीचे ग्रामीणों के उचित संरक्षण में कुछ मूर्तियां हैं. वहां एक कुआं भी है.
सकरी नदी कभी इस पहाड़ के पांव पखारती थी 
वे सकरी पर भी विस्तार से चर्चा करते हैं. उन्होंने पहले ही परिचय देते हुए कहा था कि सकरी नदी बाढ़ आने पर इस पहाड़ के पांव पखारती थी. वे अागे कहते हैं कि पश्चिम, उत्तर-पश्चिम और दक्षिण-पश्चिम की ओर से मौजूद कोई और भी नदी सकरी नदी से बहुत पहले रही होगी. अभी सकरी के पानी का एक बड़ा हिस्सा एक सिंचाई चैनल से नीचे चला जाता है, जिसे इसके पूर्वी तट से पहाड़ी से लगभग 6 मील ऊपर, रोह के पास नौआदाह के पूर्व में प्रवाह बनाए रखने के लिए निरंतर प्रयास किए जाते हैं. कई जगहों पर नदी 100 फीट चौड़ी हो गयी है, जबकि यह मूल रूप से मुश्किल से 8 फीट थी.
कई जगह मिट्टी के बर्तन में मिले थे सोने के सिक्के
पार्वती के उत्तर में लगभग दो मील की दूरी पर सकरी के तट पर सोने के सिक्के मिलने की चर्चा भी बेगलर करते हैं. कहा जाता है कि ये सोने के सिक्के मिट्टी के बर्तन में थे. कुछ लड़के, जहां यहां खेल रहे थे, उन्हें यह मिट्टी का पॉट मिला और प्रत्येक अपने माता-पिता के लिए एक मुट्ठी लेकर भाग गया. लेकिन वे इतने अनभिज्ञ थे कि उन्होंने सिक्कों को पीतल का मान लिया और उन्हें इस तरह बेच दिया; वह जगह शायद एक पुराने मठ या स्तूप की साइट थी, अब इसे पूरी तरह से नदी से काट दिया गया है.

Comments

  1. रवि जी, धन्यवाद इस महत्वपूर्ण जानकारी के लिए I मगध की धरती में इतिहास के कई कालखंड दबे पड़े हैं, इसी तरह उसकी पड़ताल में लगे रहें, शुभकामनायें ...

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