6 जुलाई को जयपुर को मिला हेरिटेज सिटी का दर्जा, हमने अपने हेरिटेज को जमींदोज करने का बना लिया प्लान

- डचों द्वारा बनायी गयी हेरिटेज कलेक्ट्रेट बिल्डिंग को चल रही तोड़ने की तैयारी
- जयपुर से सीखने की बजाय हम अपनी विरासत को ध्वस्त करने में लगे हुए हैं
- पटना कलेक्ट्रेट का महत्वपूर्ण हिस्सा कभी डच व्यापारियों के लिए था गोदाम
रविशंकर उपाध्याय4पटना.
यूनेस्को ने छह जुलाई को राजस्थान की राजधानी जयपुर को हेरिटेज सिटी का दर्जा दे दिया. अपने हेरिटेज को जयपुर ने इस प्रकार संरक्षित किया कि उसे यूनेस्को ने सराहा और यह दर्जा प्रदान किया जबकि जयपुर शहर की स्थापना ही 1727 में हुई थी. राजा जय सिंह ने जयपुर को बसाया था जो अपनी स्थापत्य कला के कारण पर्यटकों में आकर्षण का शहर है. वहीं पटना का लिखित इतिहास ही 2,500 साल से ज्यादा पुराना है लेकिन हम अपनी विरासतों काे संरक्षित करने की बजाय उसे जमींदोज कर रहे हैं. 17वीं सदी में बिहार में कारोबार के लिए आये डचों ने 1824ई में पटना कलेक्ट्रेट में बिल्डिंग बनायी थी, वह अब जल्द ही इतिहास का हिस्सा होने वाली है. वर्तमान में कलेक्ट्रेट का एरिया 12 एकड़ में फैला हुआ है, कहा जा रहा है कि इसमें सारे भवनों को तोड़कर नया और भव्य कलेक्ट्रेट बनाया जायेगा. इसकी जद में 1939 में बना जिला परिषद भवन और इंजीनियर्स ऑफिस भी आयेगा. सरकार द्वारा 2016 में तय किया गया था कि पटना कलेक्ट्रेट का विस्तार किया जायेगा. हेरिटेज बिल्डिंग को ध्वस्त कर नयी सरंचना के तात्कालिक विरोध के बाद इस कार्यक्रम को स्थगित कर दिया गया है लेकिन इसे अब इम्पलीमेंट करने की तैयारी चल रही है. इस कड़ी में यह हेरिटेज बिल्डिंग तोड़ दी जायेगी. अंग्रेजों द्वारा बनाया गया वह शानदार स्थापत्य वाला भवन भी तोड़ा जायेगा जहां अभी डीएम बैठ रहे हैं.
नीदरलैंड सरकार कर चुकी है साझेदारी की पेशकश
नीदरलैंड सरकार ने इस संबंध में 2016 में बिहार सरकार को साझेदार के तौर पर काम करने की भी पेशकश की थी. नीदरलैंड के एंबेसडर ने बिहार सरकार को एक पत्र लिखते हुए कहा था कि विरासत को बचाने के लिए वे भी पहल करने को तैयार हैं. इससे दोनों पक्षों में आदान-प्रदान के रास्ते खुलेंगे और साझा विरासत की बेहतर समझ का भी विकास होगा. नीदरलैंड ने साथ ही बिहार सरकार से सदियों पुरानी कलेक्ट्रेट इमारत परिसर को राज्य पुरातत्व विभाग के तहत सूचीबद्ध करने की मांग की थी.
डच-एंग्लो संधि के तहत बना था कलेक्ट्रेट
इतिहासकार अरुण सिंह के मुताबिक भारत में ‘डच इस्ट इंडिया कंपनी’ की स्थापना 1602 में हुई थी. डचों का पुर्तगालियों से संघर्ष हुआ और धीरे-धीरे उन्होंने भारत के सारे मसाला उत्पादन के क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया. उन्होंने 1638 में पहली बार पटना में एक फैक्ट्री की स्थापना की, लेकिन आर्थिक कारणों से जल्द ही इसे बंद कर दिया. कारखाने को 1645 और 51 के बीच फिर से स्थापित किया गया था. दिलचस्प बात यह है कि पटना कारखाने का इस्तेमाल नमक, अफीम और वस्त्रों के व्यापार के लिए किया जाता था. इनमें से, कपड़ा वास्तव में डच उपभोग के लिए नहीं थे, लेकिन इंडोनेशिया में उच्च मांग में थे और डच माल द्वारा इंडोनेशिया के सामानों के व्यापार के लिए उपयोग किये गये थे. 1824 की एंग्लो-डच संधि के बाद पटना कलेक्ट्रेट का परिसर बनना शुरू हुआ जो 1857 में पूरा हुआ.
रिचर्ड एटनबरो की फिल्म गांधी की यहीं हुई थी शूटिंग
1947 के बाद पटना कलेक्ट्रेट एक नये स्वतंत्र और लोकतांत्रिक भारत का प्रतीक बन गया जिसने अनगिनत राजनेताओं और नौकरशाहों को अपने गलियारों में चलते देखा फिर, 1980 के दशक में कलेक्ट्रेट फिर से सुर्खियों में लौट आया, जब 1981 में रिचर्ड एटनबरो द्वारा निर्देशित फिल्म गांधी का एक महत्वपूर्ण दृश्य यहां शूट किया गया था. अदालत और मोतिहारी जेल जाने के लिए गांधी यहां खड़े हुए थे.
कुछ दशकों में कई हेरिटेज भवनों को खो चुका है शहर
पिछले कुछ दशकों में पटना ने कई ऐतिहासिक इमारतों को खो दिया है जिसमें पटना सिटी का बावली हॉल, 1990 में डाक बंगला, 2010 में बांकीपुर सेंट्रल जेल और 2014 में सिविल सर्जन बंगला, जिला और सत्र न्यायाधीशों के साथ वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक यानी एसएसपी का बंगला. पिछले ही महीने न्यू मार्केट का ऐतिहासिक गोल मार्केट तोड़ दिया गया क्योंकि नगर निगम को वहां नयी बिल्डिंग बनानी है.

सबकुछ पूर्व निर्धारित है, मेरे समय में कोई भी निर्णय नहीं हुआ है: डीएम
आप यह जानते हैं कि सबकुछ पूर्व निर्धारित है. दो तीन साल पहले ही उच्च स्तरीय बैठकों में ही नये कलेक्ट्रेट को बनाने का निर्णय लिया गया था. इसके लिए इंस्पेक्शन आदि भी हो चुका है़ जहां तक आपने हेरिटेज बिल्डिंग के बारे में ध्यान दिलाया है तो मेरी जानकारी में यह ऐसी बिल्डिंग है जिसका इस्तेमाल नहीं हो रहा है. यह जर्जर अवस्था में है जिसमें किसी प्रकार का कार्यालय चलना सुरक्षित नहीं है. इसी वजह से यहां नया भवन बनाने का फैसला किया गया है.
-कुमार रवि, डीएम, पटना.

कलेक्ट्रेट के आगे का हिस्सा बचाकर रखने का निर्णय हुआ था: निदेशक, पुरातत्व
पटना कलेक्ट्रेट को लेकर यह निर्णय लिया गया था कि जर्जर होने के कारण पुराने भवनों को हटा दिया जाये लेकिन कलेक्ट्रेट के आगे का व्यू छोड़ दिया जाये ताकि लोग यहां आकर देख सकें कि ऐतिहासिक विरासत कैसी थी. इस संदर्भ में मैं विशेष जानकारी लेता हूं. हेरिटेज को बचाने की कोशिश हम सब को करनी चाहिए.
-अतुल कुमार वर्मा, निदेशक, पुरातत्व निदेशालय

विकास की आड़ में अपनी विरासत को ध्वस्त करने की साजिश: जेके लाल
राजधानी के प्रशासकों को लगता है कि विकास की आड़ में अपनी विरासत को ध्वस्त कर दें. इसी कारण पिछले महीने गोल मार्केट को तोड़ दिया गया अब कलेक्ट्रेट को तोड़ने का निर्णय लिया गया है. प्रशासन पुराने भवनों को यूजलेस करार देने का बहाना बनाता है तो नालंदा विश्वविद्यालय के खंडहरों को संरक्षित नहीं किया जाये. इस संबंध में पहले भी मुख्यमंत्री जी का ध्यानाकर्षण करा चुके हैं. एक बार फिर उनसे मुलाकात कर इसे संरक्षित करने की इल्तिजा करेंगे.
-जेके लाल, कन्वेनर, पटना चैप्टर, इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चरल हेरिटेज 

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