बिहार के ट्रांसजेंडरों ने अपनी काबिलियत से बनायी पहचान

देश की पहली ट्रांसजेंडर बैंकर हैं राजधानी की मोनिका 
Ravishankar Upadhyay, Patna. 
सुप्रीम कोर्ट ने 15 अप्रैल 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने पुरुष और महिला के अलावा ट्रांसजेंडर को तीसरे लिंग के रूप में मान्यता दी तो वह केवल एक आदेश नहीं था बल्कि यह तीसरे लिंग के प्रति समाज के दोयम दर्जे के रुख को लेकर एक परिवर्तनकारी कदम भी था. जब अदालत ने कहा था कि ये भी भारत के नागरिक हैं और उन्हें भी संविधान से हर अधिकार प्राप्त होने चाहिए. अदालत ने ट्रांसजेंडरों की तीसरे लिंग के रूप में पहचान को मानवाधिकार का मामला बताया था. इस आदेश के बाद ट्रांसजेंडर को सभी तरह के पहचान पत्र जैसे जन्म प्रमाण पत्र, पासपोर्ट, राशन कार्ड, ड्रार्इविंग लाइसेंस आदि से तीसरे जेंडर की मान्यता मिली और उसके बाद परिदृश्य बदल गया. हम कुछ वैसे ट्रांसजेंडर की बात करेंगे जिन्होंने संघर्ष से अपनी पहचान बनायी है जिससे पूरा समुदाय प्रेरित हो रहा है.
देश की पहली ट्रांसजेंडर बैंकर हैं राजधानी की मोनिका
राजधानी पटना की मोनिका दास देश की पहली ट्रांसजेंडर बैंकर हैं. 29 वर्षीय मोनिका हनुमान नगर स्थित सिंडिकेट बैंक में क्लर्क हैं. अक्टूबर 2014 में उन्होंने बैंक ज्वाइन किया था. मोनिका ने स्कूली शिक्षा नवोदय विद्यालय से जबकि समाजशास्त्र विषय लेकर स्नातक स्तर की पढ़ाई पटना विश्वविद्यालय से की. पटना लॉ कॉलेज से एलएलबी की डिग्री भी ली. उनके पिता भगवान ढोली सेल्स टैक्स ऑफिसर थे जबकि मां अनिमा रानी भौमिक बीएसएनएल से रिटायर्ड कर्मचारी. समाज के तानों से तंग आकर पिता ने गोपाल नाम रख दिया. मोनिका बताती हैं जब वह तीन साल की थी तो उसके ट्रांसजेंडर होने की बात आस पड़ोस को हुई, लोग हंसी उड़ाने लगे. जब थोड़ी बड़ी हुई तो कोई दोस्ती नहीं करता था. ताने सुनने को मिलते थे, फिर भी अपना ध्यान सिर्फ पढ़ाई में लगाए रखा और आज सफलता कदम चूम रही है. वह कहती है कि कठिनाईयां तो सभी के साथ है लेकिन शिक्षा सबसे बड़ा अस्त्र है.
डिंपल 
हाजीपुर के सदर अस्पताल की प्रोग्राम मैनेजर हैं डिंपल 
पटना के कंकड़बाग की रहनेवाली डिंपल जैसमिन अभी हाजीपुर के सदर अस्पताल में डिस्ट्रिक्ट प्रोग्राम मैनेजर हैं. लेकिन इनका संघर्ष अभी भी जारी है. कहती हैं कि लड़का बनकर ज्ञान निकेतन स्कूल से शिक्षा शुरू हुई थी लेकिन मुझे परिवार वालों ने घर बैठने को कहा. स्कूल से निकाल दिये जाने के बाद नेशनल ओपेन स्कूल से दसवीं और 12 वीं की शिक्षा प्राप्त की. इसके बाद एएन कॉलेज से ग्रेजुएशन किया. आरा के वीर कुंवर सिंह विश्वविद्यालय से साइकोलॉजी में पीजी की डिग्री ली. इसके बाद स्वास्थ्य विभाग में नौकरी हो गयी. वह कहती हैं कि आज भी परिवार से लड़ कर घर में रह रहें हैं. एक दौर था कि जब परिवार ने नकार दिया तो डांस प्रोग्राम करने लगी थी.
हाजीपुर की बीरा ने मेल आइडेंटिटी के ग्रेजुएशन किया था
बीरा पटना विश्वविद्यालय की छात्र हैं. वैशाली की रहने वाले बीरा ने मेल आइडेंटिटी के साथ ग्रेजुएशन तक की शिक्षा हासिल की थी. वर्ष 2016 से 18 के बीच उन्होंने ट्रांसजेंडर आइडेंटिटी से सोशल वर्क में पीजी की शिक्षा ग्रहण की. उनकी जिंदगी पर स्थानीय स्तर पर द बीरा: अनटोल्ड स्टोरी नाम की फिल्म बनी है. लेकिन बीरा की ये उपलब्धियां उसको एक छोटी सी नौकरी दिला पाने में भी नाकाम रहती है. नीरा बताती हैं कि मैं खुद कमा कर पढ़ना चाहती हूं क्योंकि घरवालों ने मुझे अलग कर दिया है. लेकिन मुझे एक छोटी सी नौकरी नहीं मिल पाती. क्योंकि मैं किन्नर हूं. पहले हालात ये थे कि मुझे शनिवार और रविवार को बधाइयां गानी पड़ती थी ताकि मैं पढ़ाई का खर्चा निकाल सकूं. बीरा कहते हैं उनका व्यक्तित्व सबकुछ लड़कियों जैसा था. उसका मन लड़कियों की तरह रहने को करता था. चाल-ढाल और बोलचाल सब लड़कियों के जैसा था. वह स्कूल में सबसे अलग रहती थी.
माही गुप्ता मिस ट्रांस क्वीन इंडिया में हो चुकी हैं शामिल 
बिहार की ट्रांसजेंडर माही गुप्ता मिस ट्रांस क्वीन में शामिल हो चुकी हैं. मिस ट्रांसक्वीन इंडिया कॉम्पिटिशन में उन्होंने बिहार का प्रतिनिधित्व किया था. ऑनलाइन वोटिंग के जरिए देशभर से ट्रांसजेंडर समुदाय से ब्यूटी क्वीन का चुनाव हुआ था जिसमें उन्होंने काफी अच्छा परफॉर्म किया था. इस कॉम्पिटिशन में वीना टॉप की थी. रैंप पर वॉक के दौरान माही की अदाएं देखने लायक थीं. प्रतियोगिता के दौरान जब वह रैंप पर उतरीं थी तो देखने वाले देखते रह गये थे. पीजेंट इंडिया द्वारा यह ब्यूटी कॉन्टेस्ट पहली बार राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित किया गया था. ट्रांसजेंडर्स समुदाय को संवैधानिक मान्यता मिलने के बाद से इस स्पर्धा का दायरा बढ़ा है और अब देश के प्रत्येक राज्य से ट्रांसवूमेन मॉडल्स इस स्पर्धा में चुन कर गयी थीं. 2018 के अक्तूबर में पब्लिक वोटिंग, रैंप वॉक, व्यक्तित्व और प्रजेन्स और माइंड और सोशल अवेयरनेश से जुड़े कई मुद्दों पर बेबाकी से अपनी राय रखते हुए माही ने सभी का दिल जीत लिया था.
संघर्षों से जूझ कर बना रही हैं मुकाम: रेशमा प्रसाद 
रेशमा 
ट्रांसजेंडर समुदाय की एक्टीविस्ट रेशमा प्रसाद कहती हैं कि संघर्षों से जूझ कर ट्रांसजेंडर न केवल मुकाम बना रहीं है बल्कि दूसरों को प्रेरित भी कर रहीं हैं. उन्होंने कहा कि ट्रांसजेंडर दिवस पर मैं बताना चाहती हूं कि दुनिया समझती है कि किन्नर शादीशुदा जीवन व्यतीत नहीं कर सकते क्योंकि उन्हें शारीरिक रूप से कोई कमी होती है परंतु यह अर्ध सत्य है. इस अर्धसत्य को समाज के सामने आना आवश्यक है. जो भी किन्नर साथी किन्नर जीवन को व्यतीत कर रहे हैं वह स्थायी या अस्थायी तरीके से जीवन साथी के साथ जीवन निर्वाह करने के लिए संघर्ष करते रहें हैं. इसके लिए सबसे बड़ी जिम्मेदारी समाज की है. किन्नर जीवन की ही सामाजिक स्वीकार्यता नहीं है तो किन्नरों के शादी की सामाजिक स्वीकार्यता असंभव सा दिखता है परंतु वह दिन दूर नहीं जब किन्नर भी शादीशुदा जीवन व्यतीत करेंगे और वह सामाजिक स्वीकार्यता का स्वर्णिम दिन होगा. 

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