भूमिहारों को बीजेपी द्वारा एक ही टिकट मिलना बिहार विमर्श का विषय !

भूमिहारों को बीजेपी  द्वारा एक ही टिकट मिलना बिहार विमर्श का विषय है. समाज के इतने ताकतवर वर्ग को एक ही टिकट मिलना सचमुच में विमर्श का विषय होना ही चाहिए. अब बीजेपी को वोट देते हैं तो टिकट एक ही क्यों? वह भी गिरिराज दा को? उनका तो कन्फर्मे था. अब एतना हिंदू मुस्लिम किये, एतना पाकिस्तान को प्रमोट किये तो ऐसे ही किये थे? गुजरे साल एक घटना घटी थी, आपको शायद याद होगा. अरवल में बैंक ऑफ बड़ौदा के मैनेजर आलोक भूमिहार जाति से ही थे. उनकी 21 मई 2018 को गोलियों से भून कर निर्मम हत्या कर दी गयी थी क्योंकि उसने अपने बैंक में भ्रष्टाचार को उजागर किया था, दलालों की दुकान बंद करा दी थी. वारिसलिगंज के आलोक के परिवार वालों का दुख बैंक कर्मियों के अलावा किसी और ने नहीं बांटा. भूमिहार सम्राट गिरिराज सिंह भी नहीं मिलने गये. लेकिन हर तरफ गजब के फैन मिलेंगे आपको दादा के. इन सबके बीच दुखद पक्ष यह है कि कभी भी इस वर्ग को गरीबी को लेकर, रोजगार को लेकर, जहालत को लेकर विमर्श करते नहीं देखा. हालांकि ब्राह्मणों का हाल और भी बुरा है लेकिन मैं जहां पला बढ़ा हूं, वहां पर देखा है कि कोई भी संपन्न भूमिहार व ब्राह्मण दोनों एक दूसरे को वित्तीय तौर पर मजबूत करने में अपना योगदान नहीं देना चाहता है. उनको लगता है कि यदि हम मदद कर देंगे तो सामने वाला आगे निकल जायेगा. इसी कारण आप पटना में घूम जाइए हर बड़े मॉल, बैंक, बाजार या स्कूल के नीचे डंडा लेकर खड़ा हुआ चौकीदार आपको ज्यादातर इन्हीं दोनों जातियों से मिलेगा. रोजगार की भयानक कमी है, नाैकरियां बहुत कम मिल रही है, खेती में उम्मीद रही नहीं सो रिजल्ट कुल जमा सिफर से बहुत ज्यादा है नहीं. अब दूसरी जाति वाले मदद की भावना से किस प्रकार आगे बढ़ रहे हैं यह देख लीजिए. लेकिन फिर भी जाति को लेकर पूरा सेंटी है हमलोग. आखिर क्यों न हो? ओवरऑल जाति है तो सबकुछ है. हमलोग तो जिनकी जाति नहीं है उनकी भी जाति है कह कर जाति को समाज में बरकरार रखने वाले लोग हैं. अब तो भूमिहार समाज को बदला लेने की अपील भी की जा रही है. उनको दुहाई दी जा रही है कि ब्राह्मणों को दो टिकट दे दिया ई बीजेपी वाला सब, राजपूत को पांच टिकट और हमको एक ही गो. ई त सरासर अन्याय है भाई. 

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