चुनावी यात्रा: नालंदा में नीतीश कुमार से युवाओं को अब रोजगार की उम्मीद

Medical College, Pawapuri

-लोग विकास से खुश लेकिन अब रोजगार की मांग बढ़ रही है 

रविशंकर उपाध्याय®नालंदा
नालंदा केवल मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का गृह क्षेत्र ही नहीं है यह राज्य में विकास का मानक भी है. पटना से जब हमारी यात्रा नालंदा लोकसभा क्षेत्र के लिए शुरू हुई तो विकास के मानदंड केवल चौड़ी सड़क, घर घर बिजली और पानी तक ही सिमित नहीं दिखायी देता है बल्कि वह पावापुरी के मेडिकल कॉलेज, राजगीर के नालंदा विवि, पुलिस ट्रेनिंग एकेडमी, कन्वेंशन हॉल और बिहारशरीफ के सुधा डेयरी प्रोजेक्ट से झांकता भी है. ये ऐसी संरचनाएं है जो पिछले कुछ सालों में जिले में विकसित हुई जिसने नालंदा लोकसभा क्षेत्र को बेहतर बनाने में अपना योगदान दिया है. लेकिन मुख्यमंत्री से हर अनुमंडल और हर प्रखंड के निवासियों को बड़ी उम्मीदें हैं. चंडी के लिए इंजीनियरिंग कॉलेज, हरनौत के लिए रेल फैक्ट्री और नूरसराय के लिए उद्यान विवि अब बीते दिनों की बात हो गयी है तो हिलसा-एकंगर-इस्लामपुर कुछ नहीं मिलने की बात कहता है. राजगीर के लोगों में संतुष्टि झलकती है तो गिरियक को केवल मेडिकल कॉलेज बनने से संतोष नहीं है. इधर बिंद के लोगों की शिकायतें थोड़ी थम गयी है क्योंकि वहां डेंटल कॉलेज बनाया जा रहा है. पूरा जिला मुख्यमंत्री को अपना मानता है और उनसे उसी हिसाब से अपेक्षाएं भी रखता है.
Sudha Dairy, Biharshariff
अभी तो कैंडिडेट ही फाइनल नहीं हैं, वोट हम अपने नेता को ही देंगे
पटना से दनियावां होते हुए जब हम चंडी बाजार पहुंचते हैं तो यहां गुलाब जामुन की प्रसिद्ध दुकान पर अच्छी खासी संख्या में लोग दिखाई दिये. हमने अपना परिचय दिये बगैर जब यहां हर उम्र के बैठे लोगों के बीच चुनावी सवाल उछाला तो उनका कहना था कि अब तक कोई कैंडिडेट कहां सामने आया है, जो आपको कुछ बता सकें? चंडी के ही रहनेवाले अधेड़ उम्र के सुधीर ने बताया कि नीतीश जी के चेहरे पर ही वोट देते आये हैं, उन्हीं को देंगे. कैंडिडेट हमारे लिए थोड़े मायने रखता है. यहां मुद्दा क्या है? केंद्र में किसकी सरकार देखना चाहते हैं? इस सवाल पर लोगों का कहना है कि हमारे नेता जिसके साथ हैं उसी को वोट करेंगे. नूरसराय से होते हुए जब बिहारशरीफ का रुख करते हैं तो स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट में शामिल यह शहर कुछ कुछ बदलता सा दिखाई दिया. मसलन सार्वजनिक शौचालयों की संख्या बढ़ी है, घर-घर से कूड़ा उठ रहा है और मॉल कल्चर ने इस शहर को भी गिरफ्त में ले लिया है. हालांकि इसे स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट में बजट की दरकार ज्यादा है.
अब रोजगार के सृजन पर सरकार को ध्यान देना होगा
यहां से हम राजगृह एक्सप्रेस से अपना सफर शुरू करतें हैं जिसमें होली की छुट्टियों पर घर जा रहे कुछ युवा मिले. इसमें हरनौत का राकेश, नालंदा का त्रिपुरारि और राजगीर के मनोज बैठे थे. हमारी चर्चा जब शुरू हुई तो युवाओं ने रोजगार के आंकड़े गिनाने शुरू कर दिये. राकेश कहता है हमने लालू जी का राज नहीं देखा है, 2010 में मैट्रिक पास किया हूं और इसके पहले 2005 से ही नीतीश कुमार की सरकार राज्य में है. सच पूछिए तो रोजगार के मोर्चे पर कोई खास काम दिखाई नहीं देता है. इंफ्रास्ट्रक्चर में नौकरियां सिमित हैं और उनकी समयावधि भी कम होती है. इसमें स्थानीय लोगों को रोजगार भी कहां मिलता है? त्रिपुरारी बैंकिंग की तैयारी में लगा है, कहने लगा कि 2014 से ही नौकरियों के अवसर लगातार घट रहे हैं जो अब न्यूनतम पर आ गया है. राकेश आइबीपीएस के आंकड़े का हवाला देकर बताने लगा कि 2014 तक सालाना 49 हजार क्लर्क की वैकेंसी आती थी अब उसकी संख्या 20 हजार हो गयी है. पीओ के 30 हजार पद 5000 तक सीमित हो गये हैं. बताइए हम क्या करें? राजगीर का मनोज समाधान सुझाने लगा, सरकार को रोजगार सृजन के क्षेत्र में कुछ नये कदम उठाने होंगे. कृषि के उत्पाद की प्रोसेसिंग यूनिट इस इलाके में आसानी से लग सकती है. नालंदा में कुछ किसान मशरूम की खेती को उद्योग का रूप देकर सुखी हो चुके हैं, क्या सब्जी का इतना उत्पादन करने वाले जिले में इसपर आधारित उद्योग नहीं शुरू किया जा सकता है?
मुद्दे : जो दिल धड़काएंगे:
- रोजगार के वादे का क्या हुआ?
- कृषि आधारित उद्योग कब लगेंगे?
- नालंदा में पर्यटन उद्योग कब तक?
- सिंचाई की सुविधा खेतों तक कब पहुंचेगी?

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