गांधी के आह्वान पर बिहार की हिंदू महिलाओं ने दे दिया था मुस्लिम रिलीफ फंड में गहना

-दंगों को शांत कराने अपनी आखिरी यात्रा में बिहार आये थे गांधी
रविशंकर उपाध्याय@पटना.
भारत के विभाजन के ठीक पहले 1947 के शुरुआती महीने में ही बिहार में दंगे भड़क गये थे. मगध में हालात कुछ ज्यादा ही खराब थे. जहानाबाद, घोसी से लेकर मसौढ़ी तक बुरा हाल था. धार्मिक आधार पर विभाजन ने बिहारी समाज को अशांत कर दिया था. एक ओर महाराष्ट्र के शिरडी गांव के 11 मुसलमानों ने संकल्प लिया था कि वे हिंदुओं के अधिकार की रक्षा करेंगे, ताकि वे अपने धर्म के अनुसार जीवन जी सकें, अपनी आस्था पर चल सकें. वहीं दूसरी ओर बिहार की हिंदू महिलाओं ने दंगों में मारे गये मुस्लिमों के लिए बनाये गये मुस्लिम रिलीफ फंड में अपने गहने तक दान में दे दिये थे. यह थे गांधी. गांधी जी ने बिहार के हिंदू इलाकों में जाकर जिन मुसलमानों के साथ क्रूरता हुई, उनके जीवन में पुन: रोशनी लौटे, इसके लिए काम किया. उसी दौरान हिंदू महिलाओं ने अपनी उदारता से यह मिसाल पेश की. बिहार अभिलेखागार में महिलाअों की यह उदारता तस्वीरों में कैद है. बिहार से संबंधित चित्रावली में सबसे ज्यादा तस्वीरें रामगढ़ कांग्रेस की हैं और उसके बाद दंगों की तस्वीरें भरी पड़ी हैं. इनसे जाहिर है कि कैसे विभाजन के दौर में कुछ तस्वीरें मिल्लत की भी थी. गांधी संग्रहालय के निदेशक रजी अहमद कहते हैं कि पांच मार्च को गांधी बिहार आये. वहां बलवाइयों ने उनके आते ही आत्मसमर्पण करना शुरू किया. वे गांव में जहां जाते, हिंदू बहुल इलाकों से पीड़ित मुसलमानों के लिए लोग उन्हें पैसे देते. महिलाएं जेवर देतीं थी.
बिहार का पागलपन बंद होने तक उपवास पर रहने की घोषणा
राज्यसभा में उपसभापति हरिवंश ने अपने एक आलेख में लिखा है कि गांधी ने नोआखली में जिस तरह से हिंदुओं को उनके अपने गांव, अपने घर वापस करवाने की कोशिश की थी, वैसे ही कोशिश बिहार में मुसलमानों को अपने गांव, अपने घर वापस करवाने की. गांधी ने आह्वान किया कि वह बिहार की रक्षा अपने प्राण देकर भी करेंगे. जो मुसलमान उजड़ गये थे, उनको राहत पहुंचाने के लिए चंदा इकट्ठा करने का काम शुरू हुआ. राहत शिविर बने. विस्थापितों के कैंप में गांधी दौरा करते रहे. गांधी ने राहत शिविर के नियम बनाये. 20 मार्च, 1947 को बिहार की पुलिस ने हड़ताल कर दी. परेशानी और बढ़ी, लेकिन जयप्रकाश नारायण के सहयोग से गांधी ने पुलिस की हड़ताल खत्म करवायी. गांधी ने बिहार आने से पहले नोआखली में ही घोषणा कर दी थी कि वह हर रोज आधे दिन का उपवास तब तक रखेंगे, जब तक बिहार का पागलपन बंद नहीं होगा. गांधी की इस घोषणा का असर पड़ा. सरकार चला रहे नेताओं को गांधी ने फटकार लगायी कि वे सत्ता पाकर सुस्त हो गये हैं, उनकी अहिंसा ऐशोआराम में डूबी जा रही है. गांधीजी ने कहा कि जिन नेताओं ने दंगे में भाग लिया है, उन्हें तुरंत पुलिस के सामने आत्मसमर्पण करना चाहिए. कांग्रेस एक जांच आयोग बनाकर ऐसे लोगों की पहचान करे.


गांधी को बिहार के हालात देख बहुत दु:ख हुआ था
दिल्ली विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर राजीव रंजन गिरि कहते हैं कि पार्टिशन के ठीक पहले बिहार जलने लगा था. कई जगह मुसलमानों के कत्लेआम हुए तो उनको काफी दु:ख हुआ. उन्होंने शांति सभाएं की और कहा कि इसी बिहार की धरती पर मैंने अहिंसा देवी का साक्षात्कार किया था. हमारे पास लोग अहिंसा के आवरण में ढक कर आते थे और आज उनका खूंखार चेहरा सामने आ रहा है. अजीब माहौल था बिहार में. तनाव चरम पर था. पटना, छपरा, भागलपुर, संताल परगना और गया जिले दंगे की आग में झुलसने लगे थे, खासकर गंवई इलाके प्रभावित ज्यादा हुए. अपनी शांति सभाओं में गांधी जी कहा करते थे कि आप किसके इशारे पर ऐसा कर रहे हैं? क्या ईश्वर ने ऐसा कहा है? बरसों से पीढ़ियां साथ में रही है और आप आज खून के प्यासे हो उठे हैं?

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