एक्टर राजेश कुमार गांव की बेहतरी के लिए कर रहे हैं काम |
रविशंकर उपाध्याय4पटना.
यह शहरी बिहारियों के दिलों में अभी भी बसे गांव के प्रति प्रेम है. इन्होंने शहर में रहकर भी अपने अंदर के गांव को जिंदा रखा है. कोई खेती किसानी के जरिये अपने गांव जवार के किसानों की बेहतरी के लिए काम करते हुए अपने गांव को खुशहाल बनाने की रणनीति पर काम कर रहे हैं. तो कोई अपने गांव के बच्चों के बीच प्रैक्टिकल साइंस की शिक्षा देने का काम कर रहे हैं. तो एक व्यक्ति ने अपने गांव में स्कूल नहीं जाने वालों के बीच शिक्षा का दीप जलाया और उन्हें मैट्रिक पास कराने में अपनी भूमिका निभा रहे हैं. इसमें एक्टर हैं, शिक्षाविद हैं और रिटायर्ड बैंक कर्मी भी.
- मशहूर टीवी एक्टर राजेश कुमार ने पटना स्थित अपने गांव में खेती को संवारने की पहल की |
ग्रामीण बच्चों को गालिब सीखा रहे हैं खेल खेल में विज्ञान का प्रैक्टिकल
बिहार के जन शिक्षा निदेशालय में सहायक निदेशक गालिब डेढ़ साल से ज्यादा वक्त से औरंगाबाद के हसपुरा ब्लॉक में विज्ञान का प्रैक्टिकल सीखा रहे हैं. उन्होंने प्रखंड के 40 शिक्षकों की टीम तैयार की. पिछले साल मार्च, अप्रैल और मई में मीटिंग कर उन्होंने दस संकुल में प्रत्येक में से 4 टीचर को चुना गया. उनकी ट्रेनिंग करायी गयी. पंचायत लेवल पर विज्ञान मेला से शुरुआत की. सब बच्चों के बीच में इन प्रशिक्षित शिक्षकों ने बेहतर प्रदर्शन किया. इसके बाद रोटेशन के तहत काॅर्नर गतिविधि करायी. मासिक मीटिंग शुरू की. 40 स्कूलों में 40 साइंस क्लब बनाकर प्रायोगिक को बढ़ावा दिया गया और अब यह स्कूल दर स्कूल पहुंच रहा है. वहां बाल विज्ञान कांग्रेस आयोजित किया जाता है जिसमें देश के जाने माने लोग पहुंचते हैं. अभी मशहूर वैज्ञानिक गौहर रजा और वैज्ञानिक अमिताभ भी पहुंचे थे. गालिब कहते हैं कि बच्चों में बेहद उत्साह है क्योंकि उनको साइंस की प्रैक्टिकल शिक्षा मिल रही है. यह क्रम अभी आगे भी जारी रहेगा क्योंकि उन्हें हर तबके का सहयोग मिल रहा है. उन्होंने रिटायरमेंट के बाद इस पर और काम करने का प्लान बनाया है.

एहतेशाम गांव में मुफ्त देते हैं शिक्षा
फतुहा फोरलेन पर बसे गांव कटौना के रहने वाले एहतेशाम कटौनवी 2005 में नाबार्ड में डीजीएम पद से रिटायर्ड हुए और उन्होंने गांव में वंचित तबके के बच्चों और बच्चियों को मुफ्त में शिक्षा देने का काम शुरू किया. इनमें वो शामिल थे जो मैट्रिक के ठीक पहले ड्रॉप आउट हो जाते हैं. शुरुआती संघर्ष के बाद इन्होंने गांव में संसाधन बनाये, टीचर रखे और शिक्षण का काम शुरू किया. पिछले दस सालों से उनके गांव में मैट्रिक पास होने वाले बच्चे-बच्चियों की संख्या में काफी वृद्धि हुई और संख्या सौ से ज्यादा हो गयी जिन्होंने एक डिग्री ली. पटना के नाबार्ड कॉलोनी में रहने वाले एहतेशाम कहते हैं कि वे बच्चे अभी कॉलेज में शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं या फिर कहीं ना कहीं रोजगार कर रहे हैं.

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