रविशंकर उपाध्याय4पटना.
अनुलोमगतिर्नौस्थः पश्यत्यचलं विलोमगं यद्वत्। अचलानि भानि तद्वत् समपश्चिमगानि लंकायाम्।। अर्थात नाव में बैठा हुआ मनुष्य जब प्रवाह के साथ आगे बढ़ता है, तब वह समझता है कि अचर वृक्ष, पाषाण, पर्वत आदि पदार्थ उल्टी गति से जा रहे हैं. उसी प्रकार गतिमान पृथ्वी पर से स्थिर नक्षत्र भी उलटी गति से जाते हुए दिखाई देते हैं. आर्यभटीय नामक ग्रंथ के गोलपाद खंड के नौवें श्लोक में महान विद्वान आर्यभट ने 475 ई. के आसपास जब यह लिखा तो दुनिया में किसी को यह पता नहीं था कि पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमता है और सूर्य स्थिर है. पश्चिम में 15 वीं सदी में गैलीलियों के समय तक धारणा रही कि पृथ्वी स्थिर है तथा सूर्य उसका चक्कर लगाता है, उस वक्त आर्यभट ने चौथी सदी में ही बताया था कि पृथ्वी अपने अक्ष पर घूमती है, इसका विवरण उन्होंने श्लोक से दिया. तारा मंडल स्थिर है और पृथ्वी अपनी दैनिक घूमने की गति से नक्षत्रों तथा ग्रहों का उदय और अस्त करती है. भूमि गोलाकार होने के कारण विविध नगरों में रेखांतर होने के कारण अलग-अलग स्थानों में अलग-अलग समय पर सूर्योदय व सूर्यास्त होते हैं. इसे आर्यभट्ट ने ज्ञात कर लिया था.
पटना में जन्मे आर्यभट्ट ने खगौल में बनाया खगोल शास्त्रीय केंद्र
आर्यभटीय ग्रंथ में उन्होंने अपना जन्मस्थान कुसुमपुर और जन्म काल शक संवत 398 लिखा है. बिहार की राजधानी पटना का प्राचीन नाम कुसुमपुर था. महान खोज से गणित, खगोल और ज्योतिष विज्ञान के अध्ययन की समृद्ध परंपरा स्थापित किया. पटना के ही खगौल में उन्होंने अपनी वेधशाला बनवायी थी. उन्होंने दुनिया को शून्य दिया, क्षेत्रमिति और त्रिकोणमिति का ज्ञान दिया, अनगिनत समीकरण दिये, बीजगणित, खगोल विज्ञान, सौर प्रणाली का ज्ञान दिया, ग्रहण, नक्षत्र की अवधि बतायी. आपने फिल्म पूरब और पश्चिम में जब जीरो दिया मेरे भारत ने, दुनिया को तब गिनती आयी गीत के बोल सुने होंगे लेकिन आर्यभट ने भारत को सिर्फ जीरो ही नहीं, ज्ञान विज्ञान के क्षेत्र में ज्ञान का अथाह सागर दिया था. आर्यभट ने सूर्य से विविध ग्रहों की दूरी के बारे में बताया है. वह आजकल के माप से मिलता-जुलता है. आज पृथ्वी से सूर्य की दूरी लगभग 15 करोड़ किलोमीटर मानी जाती है. भारत के इतिहास में जिसे 'गुप्तकाल' या 'स्वर्णयुग' के नाम से जाना जाता है, उस समय भारत ने साहित्य, कला और विज्ञान क्षेत्रों में अभूतपूर्व प्रगति की. उस समय नालंदा विश्वविद्याल में खगोल शास्त्र के अध्ययन के लिए एक विशेष विभाग था. एक प्राचीन श्लोक के अनुसार आर्यभट नालंदा विश्वविद्यालय के कुलपति भी थे. कोपर्निकस (1473 से 1543 ई.) ने जो खोज की थी उसकी खोज आर्यभट्ट हजार वर्ष पहले कर चुके थे.
अनुलोमगतिर्नौस्थः पश्यत्यचलं विलोमगं यद्वत्। अचलानि भानि तद्वत् समपश्चिमगानि लंकायाम्।। अर्थात नाव में बैठा हुआ मनुष्य जब प्रवाह के साथ आगे बढ़ता है, तब वह समझता है कि अचर वृक्ष, पाषाण, पर्वत आदि पदार्थ उल्टी गति से जा रहे हैं. उसी प्रकार गतिमान पृथ्वी पर से स्थिर नक्षत्र भी उलटी गति से जाते हुए दिखाई देते हैं. आर्यभटीय नामक ग्रंथ के गोलपाद खंड के नौवें श्लोक में महान विद्वान आर्यभट ने 475 ई. के आसपास जब यह लिखा तो दुनिया में किसी को यह पता नहीं था कि पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमता है और सूर्य स्थिर है. पश्चिम में 15 वीं सदी में गैलीलियों के समय तक धारणा रही कि पृथ्वी स्थिर है तथा सूर्य उसका चक्कर लगाता है, उस वक्त आर्यभट ने चौथी सदी में ही बताया था कि पृथ्वी अपने अक्ष पर घूमती है, इसका विवरण उन्होंने श्लोक से दिया. तारा मंडल स्थिर है और पृथ्वी अपनी दैनिक घूमने की गति से नक्षत्रों तथा ग्रहों का उदय और अस्त करती है. भूमि गोलाकार होने के कारण विविध नगरों में रेखांतर होने के कारण अलग-अलग स्थानों में अलग-अलग समय पर सूर्योदय व सूर्यास्त होते हैं. इसे आर्यभट्ट ने ज्ञात कर लिया था.
पटना में जन्मे आर्यभट्ट ने खगौल में बनाया खगोल शास्त्रीय केंद्र
आर्यभटीय ग्रंथ में उन्होंने अपना जन्मस्थान कुसुमपुर और जन्म काल शक संवत 398 लिखा है. बिहार की राजधानी पटना का प्राचीन नाम कुसुमपुर था. महान खोज से गणित, खगोल और ज्योतिष विज्ञान के अध्ययन की समृद्ध परंपरा स्थापित किया. पटना के ही खगौल में उन्होंने अपनी वेधशाला बनवायी थी. उन्होंने दुनिया को शून्य दिया, क्षेत्रमिति और त्रिकोणमिति का ज्ञान दिया, अनगिनत समीकरण दिये, बीजगणित, खगोल विज्ञान, सौर प्रणाली का ज्ञान दिया, ग्रहण, नक्षत्र की अवधि बतायी. आपने फिल्म पूरब और पश्चिम में जब जीरो दिया मेरे भारत ने, दुनिया को तब गिनती आयी गीत के बोल सुने होंगे लेकिन आर्यभट ने भारत को सिर्फ जीरो ही नहीं, ज्ञान विज्ञान के क्षेत्र में ज्ञान का अथाह सागर दिया था. आर्यभट ने सूर्य से विविध ग्रहों की दूरी के बारे में बताया है. वह आजकल के माप से मिलता-जुलता है. आज पृथ्वी से सूर्य की दूरी लगभग 15 करोड़ किलोमीटर मानी जाती है. भारत के इतिहास में जिसे 'गुप्तकाल' या 'स्वर्णयुग' के नाम से जाना जाता है, उस समय भारत ने साहित्य, कला और विज्ञान क्षेत्रों में अभूतपूर्व प्रगति की. उस समय नालंदा विश्वविद्याल में खगोल शास्त्र के अध्ययन के लिए एक विशेष विभाग था. एक प्राचीन श्लोक के अनुसार आर्यभट नालंदा विश्वविद्यालय के कुलपति भी थे. कोपर्निकस (1473 से 1543 ई.) ने जो खोज की थी उसकी खोज आर्यभट्ट हजार वर्ष पहले कर चुके थे.
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