ट्रेडिशन ऑफ बिहार : मिथिला से निकलकर पुरबिया संस्कार बन गया 'कोहबर'

रविशंकर उपाध्याय@पटना.
कोहबर निर्माण की परंपरा मिथिला से निकलकर पुरबिया संस्कार बन गया. पुरबिया यानी बिहार, झारखंड और यूपी के घर -घर का संस्कार बन गया. मिथिलांचल में प्रचलित चित्रकारी की यह विधा परंपरा में शामिल हो गयी है. इसमें विवाह के समय घर के किसी एक कमरे में पूर्वी दीवार पर गोबर से लीप कर, पीसी हल्दी  और पीसे चावल से चित्रकारी की जाती है. इसके ठीक नीचे जमीन पर गोबर से लीप कर विविध पूजन सामग्रियां रखी जाती है. वर एवं वधू पक्ष दोनों के घर में, विवाह की विविध रस्मों में से एक कार्यक्रम कोहबर पूजन का भी होता है जिसमें भीत पर बने कोहबर का पूजन किया जाता है. इन कार्यक्रमों के दौरान कुछ विशेष संस्कार-गीत भी गाये जाते हैं जिन्हें कोहबर गीत कहते हैं.  इनमें वर-वधू के बीच प्रेम भाव बढ़ाने की भावना होती है. कोहबर घर के उस कमरे को भी कहते हैं जहां यह चित्रांकन किया जाता है. वधू के आगमन पर उसे इसी कक्ष में रहना होता है.
सुखद दांपत्य की कामना को संपूर्णता के साथ चित्रित करती है
कोहबर की कला स्त्री-पुरुष के सुखद दांपत्य की कामना को जीव-जगत के साथ संपूर्णता और एकमेक रूप में चित्रित करती है.  प्रतीक रूप में कोहबर में बांस, पूरइन, केले का थम, कमल, कछुआ, सांप, मछली, तोता, सूर्य और शिव-पार्वती का चित्रण होता है. ऐसा नहीं कि मिथिला पेंटिंग में महज कोहबर का ही चित्रण होता है. इसमें पारंपरिक के साथ-साथ सामयिक विषय वस्तुओं को भी कलाकारों की कल्पना की तूलिका से यथार्थपरक ढंग से रंगा जाता है. यह परंपरा अब फैल कर बिहार, झारखंड और यूपी के गांवों तक पहुंच गयी है. जिले के लगभग हर गांव और नेपाल के तराई इलाके में घर की दीवारों और फर्श पर शादी-ब्याह, पर्व-त्योहारों के दिनों में पारंपरिक रूप से मिथिला पेंटिंग बनायी जाती हैं.

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