रविशंकर उपाध्याय, पटना.
राजधानी पटना में पहली बार 397 साल पहले क्रिसमस मिलन समारोह मनाया गया था. भले ही यह तथ्य हमें आश्चर्यजनक लगे लेकिन ऐतिहासिक तथ्य कहते हैं कि पहली बार 1621 में क्रिसमस मिलन समारोह का आयोजन किया गया था. उसी समय से ईसाई धर्म का प्रचार-प्रसार प्रदेश में प्रारंभ हुआ लेकिन मात्र एक वर्ष में ही मिशन के लोगों ने पटना में काम करना बंद कर दिया था. इस दौरान ईसाई धर्म के प्रचारकों का पटना में आना-जाना लगा रहा. जब हमने पटना में ईसाई धर्म के इतिहास के जानकारों से बात की तो उन्होंने बताया कि स्थायी रूप से मिशन के लोगों ने 1713 में पटना को केन्द्र बनाया. उस वर्ष पटना सिटी में पादरी की हवेली में छोटे से गिरजाघर का निर्माण किया गया. उस समय फादर फेलिक्स देखभाल कर रहे थे. 1734 में फादर जोआकीम को पटना का केन्द्र का प्रभारी बनाया गया.

पटना के बाद बेतिया में बना था दूसरा चर्च

1853 में बनाया गया बांकीपुर चर्च करता है सबको आकर्षित
इतिहासकार अरुण सिंह बताते हैं कि राजधानी में बांकीपुर चर्च की स्थापना 1853 में की गयी थी. यह एक कान्वेंट चर्च था लेकिन 1928 में इस चर्च को सभी के लिये सार्वजनिक कर दिया गया. इसके अलावा यदि बात करें विशालता की तो कुर्जी में राजधानी का सबसे बड़ा चर्च है. कुर्जी में 1858 में पहली बार चर्च बनाया गया था. पहली बार संत माईकल हाईस्कूल के परिसर में चर्च बनाया गया, लेकिन आसपास के इलाके में ईसाईयों की आबादी बढ़ने के कारण चर्च छोटा पड़ने लगा तो स्कूल के बाहरी परिसर में बड़े चर्च का निर्माण किया गया. 10 सितंबर 1919 को संत पिता बेनेदिक्त ने पटना को धर्म प्रांत घोषित किया था. इस धर्म प्रांत के संचालन का भार येसु समाज को सौंपा गया.
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