मगध से शुरू हुई थी महापर्व छठ की परंपरा

-कृष्ण के पुत्र साम्ब ने जो 12 सूर्य मंदिर बनवाये उसमें से नौ मगध में बने हुए हैं 
रविशंकर उपाध्याय4पटना.
भारतीय संस्कृति के प्रत्यक्ष देव सूर्य नारायण की आराधना का महापर्व छठ पूजा है. आज जब नहाय खाय से महापर्व छठ की शुरुआत हो चुकी है. वैसे में यह जानना वाकई में दिलचस्प होगा कि छठ की शुरुआत कहां और कब से हुई? शास्त्रों के मुताबिक जब भगवान श्री कृष्ण के पुत्र शाम्ब को कुष्ठ रोग हुआ तो उन्होंने सूर्य देव की आराधना कर उससे मुक्ति पायी और यह सूर्य मंदिर मगध साम्राज्य की प्राचीन राजधानी राजगृह के पास बड़गांव में स्थित है. राजा साम्ब ने 49 दिनों तक बालार्क (वर्तमान का बड़गांव) में रहकर सूर्य की उपासना और अर्घ्यदान भी किया. उनका कुष्ठ रोग पूरी तरह से ठीक हो गया. मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण के पुत्र साम्ब ने सूर्य की साधना कर कुष्ठ रोग से मुक्ति पाई थी और इसके बाद देश भर में बारह स्थानों पर सूर्य की राशि, चक्र व कोणीय आधार पर पूजन केन्द्रों की स्थापना की थी. उसमें से तीन कश्मीर, ओडिशा व गुजरात में स्थित हैं और शेष नौ मगध की धरती पर अवस्थित है. इस कारण मगध की धरती से छठ शुरू होने के ऐतिहासिक प्रमाण पुख्ता होते हैं.

पंडारक में पुण्यार्क सूर्य मंदिर 
मगध में कृष्णपुत्र साम्ब द्वारा बनाये गये नौ सूर्य मंदिर 
मगध के नौ सूर्य मंदिरों में गया, औरंगाबाद, नालंदा व पटना जिले में दो-दो मंदिर और नवादा जिले में एक मंदिर स्थित है. सर्वाधिक प्रसिद्धि औरंगाबाद जिले के देव सूर्य मंदिर की है, जिसे ‘देवार्क’ कहा जाता है और इस मंदिर का प्रवेश द्वार पूर्व न होकर, पश्चिम में है. औरंगाबाद में ही उमगा पर्वत पर ‘उमगार्क’ सूर्य मंदिर स्थित है. पटना के पंडारक में पुण्यार्क सूर्य मंदिर है और दुल्हिनबाजार में उलार्क सूर्य मंदिर है. नवादा जिले का हंडिया सूर्य मंदिर ‘हंडार्क’ के नाम से विख्यात है तो गया में टंडवा पर्वत पर स्थित ‘टंडवार्क’ सूर्य मंदिर स्थित है. गया शहर में ही सूर्यकुंड के ठीक सामने ‘दक्षिणार्क’ सूर्य देवालय पाल कालीन है. नालंदा विश्वविद्यालय के खंडहर से दो किलोमीटर दूर बडगांव के ‘बालार्क’ सूर्य का दर्शन चीनी यात्री ह्वेनसांग ने भी किया था और नालंदा के ही एकंगरसराय प्रखंड में ‘अंगार्क’ सूर्य मंदिर औगांरी गांव में है. मगध के गांवों में आज भी खुदाई में सबसे ज्यादा प्रतिमाएं सूर्य देव की ही मिलती है. 
मगध के नामकरण का आधार भी सूर्योपासना से जुड़ा है
इतिहासकार डॉ राकेश कुमार सिन्हा कहते हैं कि ऐसे भी प्राचीन भारत में करीब 1000 वर्षों तक देश की राजनीति का केंद्र रहे मगध के नामकरण का आधार भी सूर्योपासना से जुड़ा है. कहा जाता है कि सोन नदी से आगे गंगा नदी के दक्षिण व छोटानागपुर पठार की दक्षिण-पश्चिम भूमि पर बसे मगध प्रदेश में ‘मग’ ब्राह्मणों का निवास था, जो सूर्यपूजक थे. यही कारण है कि दोनों सूर्य षष्ठी पर्व में मगध सूर्यमय हो जाता है. यहीं मगध में ‘सुकन्या’ ने छठ करके च्यवन ऋषि के शरीर को कांतिमय बना दिया था. 

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