सिद्धेश्वरी काली मंदिर में सौ सालों से वैष्णवी पद्धति से हो रही है आराधना

-200 साल से श्री सिद्धेश्वरी काली मंदिर में पांच नरमुंडों पर विराजमान हैं मां काली
पटना.
बांसघाट स्थित श्री सिद्धेश्वरी काली मंदिर में सौ सालों से वैष्णवी पद्धति से मां आदिशक्ति की आराधना हो रही है. पहले यहां तांत्रिक पद्धति से आराधना होती थी क्योंकि मंदिर जिस जगह पर है, वहां कभी श्मशान हुआ करता था. सिद्धेश्वरी काली मंदिर में पांच नरमुंडों पर विराजमान हैं मां काली. नवरात्र के दौरान यहां नौ दुर्गा के साथ 10 महाविद्या की भी पूजा होती है. करीब दो सौ साल पुराने इस मंदिर में यह परंपरा काफी समय से चली रही है. मंदिर कमेटी के सचिव इंजीनियर शैलेंद्र प्रसाद के अनुसार मंदिर के गर्भगृह के एक कोने में एक त्रिशूल है. साल में एक बार दिवाली के दूसरे दिन इस त्रिशूल को श्मशान ले जाया जाता है. ऐसी मान्यता है कि इस त्रिशूल के दर्शन मात्र से भक्तों की मनोकामना पूरी होती है. पहले सती स्थान दुजरा के नाम से मशहूर था यह मंदिरपहले यह मंदिर सती स्थान के नाम से मशहूर था. क्योंकि यहां पर दो महिलाएं सती हुई थी. देशभर के अघोरी यहां आकर सिद्धि प्राप्ति के लिए साधना करते थे. साधना करने आए एक संत ब्रह्मानंद जी की प्रेरणा से अघोरी मुक्तिनाथ चौधरी उर्फ गोस्वामी जी के साथ मिलकर काली की मूर्ति स्थापित की. तब से यहां काली की पूजा होने लगी. 1990 के दशक में मंदिर का जीर्णोद्धार हुआ, तब मंदिर भव्य स्वरूप में आया. इसके बाद भक्तों की भीड़ बढ़ने लगी. पहले बड़ी संख्या में आरती के समय भैरो आते थे. उन्हें आरती के बाद प्रसाद खिलाया जाता था. वे श्मशान से आते थे और प्रसाद खाने के बाद वापस चले जाते थे.
नारियल की ही होती है बली
नवरात्र में पहले दिन काली के साथ मां शैलपुत्री, दूसरे दिन मां तारा के साथ ब्रह्मचारिणी, तीसरे दिन मां षोडसी के साथ चंद्रघंटा, चौथे दिन मां भुवनेश्वरी के साथ कुष्मांडा मां, पांचवें दिन मां भैरवी के साथ स्कंदमाता, छठे दिन मां छिन्नमस्तिके के साथ कात्यायनी, सातवें दिन धुमावती के साथ कालरात्रि, आठवें दिन मां मातंगी के साथ महागौरी और नौवें दिन बगलामुखी के साथ सिद्धिदात्री की पूजा होती है. जबकि विजयादशमी के दिन स्थायी कलश की पुन: स्थापना होती है, जो एक साल तक रहता है. उस कलश पर 10वीं महा विद्या मां कमला की पूजा होती है. यह परंपरा सिर्फ काली मंदिर में ही है. यहां नारियल की ही बली दी जाती है.
गोलघर के अखंडवासिनी मंदिर में सौ सालों से जल रही है अखंड ज्योति 
गोलघर के पास अखंडवासिनी मंदिर में दिया लगातार 101 वर्षों से जल रहा है और श्रद्धालु भारी संख्या में यहां प्रार्थना करने आते हैं. यह ज्योति कोई सामान्य ज्योति नहीं है. कहा जाता है कि यह पिछले 101 सालों से लगातार जल रही है और यहां हर तबके के लोग मन्नत मांगते आते हैं. मंदिर के मुख्य पुजारी वासुकीनाथ तिवारी ने कहा, हम इसे ‘अखंड ज्योति’ कहते हैं. यह आस्था की ज्योति बन गयी है क्योंकि यहां देवी दुर्गा की मूर्ति के सामने यह लगातार जल रही है. हम इसे अखंडवासिनी मंदिर के रूप में एक सही नाम दिया है. वासुकीनाथ के पिता दिवंगत विश्वनाथ तिवारी जून 1914 में पूजा-अर्चना पूरी करने के बाद असम के कामख्या से यह ज्योति पटना लेकर आए थे. उन्होंने प्रसिद्ध गोलघर के पास घर के एक कमरे को गर्भगृह में बदलकर वहां ज्योति स्थापित की थी. इसके बाद से यह जगह एक निजी मंदिर बन गया. हालांकि यहां श्रद्धालुओं को नि:शुल्क पूजा करने की मंजूरी है. विश्वनाथ तिवारी के बेटे और पौत्र मंदिर परिसर में धार्मिक मामले और पूजा अर्चना की देखरेख करते हैं.

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