-1199 में नालंदा विश्वविद्यालय को बख्तियार खिलजी ने जला दिया था
-बख्तियारपुर से घुड़सवारों के साथ ओदंतपुरी(बिहारशरीफ) पर किया था हमला
पटना.
जब आप बिहार की राजधानी पटना से 80 किमी की दूरी पर स्थित विश्व प्रसिद्ध हेरिटेज नालंदा यूनिवर्सिटी के खंडहर में प्रवेश करते हैं वैसे ही आपको किसी की छवि पहले पहल याद आती है तो वह तुर्क लुटेरा बख्तियार खिलजी होता है. आप सोचते हैं कि जब सन् 1199 ई. में उसने विश्व के सबसे बड़े शिक्षा के तत्कालीन मंदिर नालंदा विश्वविद्यालय को आग के हवाले कर दिया होगा तो वह मंजर कैसा रहा होगा? जब उस आक्रांता ने अपने सैनिकों के साथ शांति के पुजारी बौद्ध भिक्षुओं का गला रेता होगा तो वह खौफनाक पल कैसा रहा होगा? खंडहर की दर-ओ-दीवार पर आग से जलने के चिह्न आप ढूंढ़ सकते हैं जिसकी दीवारें एक सिरफिरे आक्रांता के खूनी जुनून की कहानी पूरी चीत्कार के साथ कह रही होती है. लेकिन उसी बख्तियार खिलजी के नाम पर ना केवल पटना का एक कस्बा बख्तियारपुर है बल्कि एक ऐसा जंक्शन है, जहां से बिहारशरीफ, पावापुरी, नालंदा और राजगीर जैसे प्रसिद्ध पर्यटन स्थलों को जाने के लिए ट्रेन भी मिलती है. इसका नाम अबतक उस सिरफिरे बख्तियार खिलजी के नाम पर क्यों है?
स्टेशन का नाम बदलने की होती रही है मांग
समय-समय पर इस स्टेशन का नाम बदलने पर बात होती रही है. बीजेपी के प्रवक्ता और सुप्रीम कोर्ट में वकील अश्विनी उपाध्याय ने बिहार के बख्तियारपुर जंक्शन का नाम बदलने की मांग पिछले महीने ही की है. 9 जून को किये गये एक ट्वीट में उन्होंने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी, रेल मंत्री पीयूष गोयल और केंद्रीय मंत्री मनोज सिन्हा को टैग कर ध्यान देने का आग्रह किया था. उन्होंने लिखा था कि बख्तियारपुर जंक्शन का नाम क्रूर मुस्लिम आक्रमणकारी बख्तियार खिलजी के नाम पर रखा गया है. यह वही व्यक्ति है जिसने नालंदा विश्वविद्यालय को क्षति पहुंचायी थी. दुर्भाग्यवश हम अभी तक इसका नाम बदलने में असफल रहे हैं. मैं नीतीश कुमार, सुशील मोदी, पीयूष गोयल और मनोज सिन्हा से इस मामले में संज्ञान लेने की अपील करता हूं.
विश्वविद्यालय से विद्वेष का ऐसा कोई दूसरा उदाहरण नहीं
नालंदा विवि के खंडहर में आप जैसे जैसे प्रवेश करते जाते हैं वैसे वैसे आपको याद आने लगता है यह वह विश्वविद्यालय है जिसने गुप्त काल में ही इंट्रेंस के लिए टेस्ट की परिकल्पना की थी. नालंदा विवि में यह नियम था कि आपको परिसर में प्रवेश करने के पहले एक टेस्ट द्वारपालों को देना होता था जो भी उद्भट विद्वान हुआ करते थे. इस कांसेप्ट को आज पूरा विश्व प्रवेश परीक्षा के तौर पर फॉलो करता है. इसके बाद आप यदि ध्यान करते होंगे तो आपको लगता होगा कि वह कैसा उत्कृष्ट युग रहा होगा वह जब विश्वभर के लगभग दस हजार विद्यार्थी यहां अध्ययनरत रहा करते होंगे और प्रत्येक सात विद्यार्थी पर एक व्याख्याता के माध्यम से यहां कितनी बेहतरीन शिक्षा देते होंगे. एक आक्रांता जिसे धन चाहिए था उसे विश्वविद्यालय से ऐसा क्या विद्वेष था? ऐसे विद्वेष की दूसरी मिसाल कहीं नहीं मिलती है.
नालंदा विवि के विद्वान आयुर्वेदाचार्य के गुणों से चिढ़ किया हमला
एक किंवदंती है खिलजी बहुत बीमार पड़ गया था और जब उसके निजी हकीमों से कुछ न हुआ तो किसी ने सलाह दी नालंदा विश्वविद्यालय के आयुर्वेद विभाग के प्रमुख राहुल शीलभद्र को बुला कर उनसे इलाज करायी जाये तो ठीक हो सकते हैं. कहते हैं कि खिलजी इतना अधिक चिड़चिड़ा, बददिमाग और कट्टर था कि उसने आयुर्वेदाचार्य के सामने बिना दवा खिलाये ठीक करने की शर्त रखी. उल्लेख मिलता है कि अपने चिकित्सकीय पेशे का सम्मान करते हुए आचार्य शीलभद्र ने आक्रांता को भी बचाना अपना धर्म समझा और गोपनीयता से उस पवित्र कुरान के पृष्ठों में औषधि का लेप प्रयुक्त किया जिसे खिलजी स्वयं पढ़ा करता था. पवित्र कुरान के पृष्ठो से उंगली पर लग लग कर औषधि खिलजी की जिह्वा तक पहुंची और चमत्कारिक रूप से यह तुर्क आक्रांता ठीक हो गया. इस क्रूर तुर्क के भीतर इस ईर्ष्या ने जन्म लिया कि आखिर एक वैद्य इतना श्रेष्ठ ज्ञान कैसे रख सकता है? कुतुबुद्दीन ऐबक के सेनापति मुहम्मद बिन बख्तियार खिलजी ने तब केवल दो सौ घुड़सवारों के साथ वर्तमान ओदंतपुरी (बिहारशरीफ) पर आक्रमण कर इसके किलों को जीत लिया. जब नालंदा पर आक्रमण हुआ तब बौद्ध भिक्षुओं ने इस भयानक शत्रु का सामना नहीं किया.
खिलजी के कहर से छह महीने तक जलता रहा था नालंदा विवि
अहिंसा और शिक्षा का आलोक जगाने वाला नालंदा विश्वविद्यालय सेना की आवश्यकता क्या समझता? खिलजी ने सेना के अभाव में विश्वविद्यालय पर कहर बरपा दिया. हजारों की संख्या में बौद्ध भिक्षुओं का संहार किया गया. शिक्षक और विद्यार्थियों के लहू से पूरी धरती को पाट कर भी जब खिलजी को चैन नहीं मिला तो उसने एक भव्य शिक्षण संस्था में आग लगा दी. यह भी उल्लेख है कि नालंदा में तब तीन बड़े पुस्तकालय थे- रत्नरंजक, रत्नोदधि और रत्नसागर. एक पुस्तकालय भवन तो नौ तल्लों का हुआ करता था. इतनी पुस्तकें जब जलाई गयीं तो उनपर बख्तियार खिलजी की सेना के लिये छह माह तक भोजन पकता रहा. कई अध्यापकों और बौद्ध भिक्षुओं ने अपने कपड़ों में छुपा कर कई दुर्लभ पांडुलिपियों को बचाया तथा उन्हें तिब्बत की ओर ले गये. बाद में इसके कारण तिब्बत क्षेत्र बौद्ध धर्म और ज्ञान के बड़े केंद्र में परिवर्तित हो गया.
"किसी रेलवे जंक्शन के नाम में बदलाव करने की प्रक्रिया में पहल राज्य सरकार को करनी होती है. स्टेट गवर्नमेंट उस जिले के डीएम के जरिये गृह मंत्रालय को प्रस्ताव भेजती है. गृह मंत्रालय इसे रेल मंत्रालय को फॉरवर्ड करता है और फिर रेल मंत्रालय सहमति के साथ गृह मंत्रालय को वापस करती है. गृह मंत्रालय इसके बाद राज्य सरकार को डायरेक्ट करती है जिसके बाद राज्य सरकार नाम बदलाव का नोटिफिकेशन जारी करती है."
-राजेश कुमार, सीपीआरओ, पूर्व मध्य रेलवे
पटना.
जब आप बिहार की राजधानी पटना से 80 किमी की दूरी पर स्थित विश्व प्रसिद्ध हेरिटेज नालंदा यूनिवर्सिटी के खंडहर में प्रवेश करते हैं वैसे ही आपको किसी की छवि पहले पहल याद आती है तो वह तुर्क लुटेरा बख्तियार खिलजी होता है. आप सोचते हैं कि जब सन् 1199 ई. में उसने विश्व के सबसे बड़े शिक्षा के तत्कालीन मंदिर नालंदा विश्वविद्यालय को आग के हवाले कर दिया होगा तो वह मंजर कैसा रहा होगा? जब उस आक्रांता ने अपने सैनिकों के साथ शांति के पुजारी बौद्ध भिक्षुओं का गला रेता होगा तो वह खौफनाक पल कैसा रहा होगा? खंडहर की दर-ओ-दीवार पर आग से जलने के चिह्न आप ढूंढ़ सकते हैं जिसकी दीवारें एक सिरफिरे आक्रांता के खूनी जुनून की कहानी पूरी चीत्कार के साथ कह रही होती है. लेकिन उसी बख्तियार खिलजी के नाम पर ना केवल पटना का एक कस्बा बख्तियारपुर है बल्कि एक ऐसा जंक्शन है, जहां से बिहारशरीफ, पावापुरी, नालंदा और राजगीर जैसे प्रसिद्ध पर्यटन स्थलों को जाने के लिए ट्रेन भी मिलती है. इसका नाम अबतक उस सिरफिरे बख्तियार खिलजी के नाम पर क्यों है?
स्टेशन का नाम बदलने की होती रही है मांग
समय-समय पर इस स्टेशन का नाम बदलने पर बात होती रही है. बीजेपी के प्रवक्ता और सुप्रीम कोर्ट में वकील अश्विनी उपाध्याय ने बिहार के बख्तियारपुर जंक्शन का नाम बदलने की मांग पिछले महीने ही की है. 9 जून को किये गये एक ट्वीट में उन्होंने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी, रेल मंत्री पीयूष गोयल और केंद्रीय मंत्री मनोज सिन्हा को टैग कर ध्यान देने का आग्रह किया था. उन्होंने लिखा था कि बख्तियारपुर जंक्शन का नाम क्रूर मुस्लिम आक्रमणकारी बख्तियार खिलजी के नाम पर रखा गया है. यह वही व्यक्ति है जिसने नालंदा विश्वविद्यालय को क्षति पहुंचायी थी. दुर्भाग्यवश हम अभी तक इसका नाम बदलने में असफल रहे हैं. मैं नीतीश कुमार, सुशील मोदी, पीयूष गोयल और मनोज सिन्हा से इस मामले में संज्ञान लेने की अपील करता हूं.
विश्वविद्यालय से विद्वेष का ऐसा कोई दूसरा उदाहरण नहीं
नालंदा विवि के खंडहर में आप जैसे जैसे प्रवेश करते जाते हैं वैसे वैसे आपको याद आने लगता है यह वह विश्वविद्यालय है जिसने गुप्त काल में ही इंट्रेंस के लिए टेस्ट की परिकल्पना की थी. नालंदा विवि में यह नियम था कि आपको परिसर में प्रवेश करने के पहले एक टेस्ट द्वारपालों को देना होता था जो भी उद्भट विद्वान हुआ करते थे. इस कांसेप्ट को आज पूरा विश्व प्रवेश परीक्षा के तौर पर फॉलो करता है. इसके बाद आप यदि ध्यान करते होंगे तो आपको लगता होगा कि वह कैसा उत्कृष्ट युग रहा होगा वह जब विश्वभर के लगभग दस हजार विद्यार्थी यहां अध्ययनरत रहा करते होंगे और प्रत्येक सात विद्यार्थी पर एक व्याख्याता के माध्यम से यहां कितनी बेहतरीन शिक्षा देते होंगे. एक आक्रांता जिसे धन चाहिए था उसे विश्वविद्यालय से ऐसा क्या विद्वेष था? ऐसे विद्वेष की दूसरी मिसाल कहीं नहीं मिलती है.
नालंदा विवि के विद्वान आयुर्वेदाचार्य के गुणों से चिढ़ किया हमला
एक किंवदंती है खिलजी बहुत बीमार पड़ गया था और जब उसके निजी हकीमों से कुछ न हुआ तो किसी ने सलाह दी नालंदा विश्वविद्यालय के आयुर्वेद विभाग के प्रमुख राहुल शीलभद्र को बुला कर उनसे इलाज करायी जाये तो ठीक हो सकते हैं. कहते हैं कि खिलजी इतना अधिक चिड़चिड़ा, बददिमाग और कट्टर था कि उसने आयुर्वेदाचार्य के सामने बिना दवा खिलाये ठीक करने की शर्त रखी. उल्लेख मिलता है कि अपने चिकित्सकीय पेशे का सम्मान करते हुए आचार्य शीलभद्र ने आक्रांता को भी बचाना अपना धर्म समझा और गोपनीयता से उस पवित्र कुरान के पृष्ठों में औषधि का लेप प्रयुक्त किया जिसे खिलजी स्वयं पढ़ा करता था. पवित्र कुरान के पृष्ठो से उंगली पर लग लग कर औषधि खिलजी की जिह्वा तक पहुंची और चमत्कारिक रूप से यह तुर्क आक्रांता ठीक हो गया. इस क्रूर तुर्क के भीतर इस ईर्ष्या ने जन्म लिया कि आखिर एक वैद्य इतना श्रेष्ठ ज्ञान कैसे रख सकता है? कुतुबुद्दीन ऐबक के सेनापति मुहम्मद बिन बख्तियार खिलजी ने तब केवल दो सौ घुड़सवारों के साथ वर्तमान ओदंतपुरी (बिहारशरीफ) पर आक्रमण कर इसके किलों को जीत लिया. जब नालंदा पर आक्रमण हुआ तब बौद्ध भिक्षुओं ने इस भयानक शत्रु का सामना नहीं किया.
खिलजी के कहर से छह महीने तक जलता रहा था नालंदा विवि
अहिंसा और शिक्षा का आलोक जगाने वाला नालंदा विश्वविद्यालय सेना की आवश्यकता क्या समझता? खिलजी ने सेना के अभाव में विश्वविद्यालय पर कहर बरपा दिया. हजारों की संख्या में बौद्ध भिक्षुओं का संहार किया गया. शिक्षक और विद्यार्थियों के लहू से पूरी धरती को पाट कर भी जब खिलजी को चैन नहीं मिला तो उसने एक भव्य शिक्षण संस्था में आग लगा दी. यह भी उल्लेख है कि नालंदा में तब तीन बड़े पुस्तकालय थे- रत्नरंजक, रत्नोदधि और रत्नसागर. एक पुस्तकालय भवन तो नौ तल्लों का हुआ करता था. इतनी पुस्तकें जब जलाई गयीं तो उनपर बख्तियार खिलजी की सेना के लिये छह माह तक भोजन पकता रहा. कई अध्यापकों और बौद्ध भिक्षुओं ने अपने कपड़ों में छुपा कर कई दुर्लभ पांडुलिपियों को बचाया तथा उन्हें तिब्बत की ओर ले गये. बाद में इसके कारण तिब्बत क्षेत्र बौद्ध धर्म और ज्ञान के बड़े केंद्र में परिवर्तित हो गया.
"किसी रेलवे जंक्शन के नाम में बदलाव करने की प्रक्रिया में पहल राज्य सरकार को करनी होती है. स्टेट गवर्नमेंट उस जिले के डीएम के जरिये गृह मंत्रालय को प्रस्ताव भेजती है. गृह मंत्रालय इसे रेल मंत्रालय को फॉरवर्ड करता है और फिर रेल मंत्रालय सहमति के साथ गृह मंत्रालय को वापस करती है. गृह मंत्रालय इसके बाद राज्य सरकार को डायरेक्ट करती है जिसके बाद राज्य सरकार नाम बदलाव का नोटिफिकेशन जारी करती है."
-राजेश कुमार, सीपीआरओ, पूर्व मध्य रेलवे
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