शराबबंदी से थम गयी बिहार में क्रॉनिक लिवर मरीजों की तादाद


- दिल्ली के इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल ने कहा है कि बिहार से नये रोगियों में बीमारी का कारण शराब नहीं
- 10 से 15 साल पुराने शराबी में पायी जा रही है लिवर की बीमारी, ऐसे बीमार वहां हैं इलाजरत
पटना.

शराबबंदी के जितने सकारात्मक प्रभाव सामने आये हैं उसमें से लिवर के रोगियों में कमी भी शामिल है. दिल्ली के इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल के लिवर रोग विभाग की ओर से जारी आंकड़े में यह कहा गया है कि बिहार से नये रोगियों में बीमारी का कारण शराब पीना नहीं है. अस्पताल में बिहार के वैसे ही रोगी इलाजरत हैं जो 10 से 15 साल पुराने शराबी रहे हैं. उनका लिवर ट्रांसप्लांट किया गया है. अस्पताल में कुल 5 फीसदी रोगी बिहार से इलाज के लिए पहुंचते हैं. इन पांच प्रतिशत में से वैसे ही रोगी शराब के कारण से लिवर के रोग से पीड़ित पाये गये जो दस साल पूर्व शराब का सेवन कर रहे थे. क्रॉनिक लिवर के रोगियों में शराब के कारण से पीड़ित हुए रोगी नहीं पाये गये हैं. लिवर ट्रांसप्लान्ट विभाग के सीनियर कन्सलटेंट डॉ नीरव गोयल ने पटना के एक होटल में आयोजित कार्यक्रम में बताया कि ऐसा लगता है कि शराबबंदी की वजह से बिहार के रोगियों में शराब जो एक बड़ा कारण था, वह घटकर शून्य हो गया है. भारत में हर साल सिर्फ 1800 लिवर ट्रांसप्लान्ट होते हैं, इसमें से 5 फीसदी रोगी बिहार से होते हैं. उन्होंने बताया कि अपोलो में पिछले दो सालों के दौरान जो बीमार इलाज के लिए पहुंचे उनकी संख्या 250 के आसपास रही और इसमें करीब 25-30 का ट्रांसप्लांट बिहार के रोगियों का किया गया है जिनमें शराब एक कारण नहीं था. जबकि पुराने रोगियों में सबसे ज्यादा संख्या शराब से प्रभावितों का ही था.
बच्चों में बढ़ रही है लिवर की बीमारी
इसके अलावा एक ऐसा तथ्य परेशान कर रहा है जिसमें तुरंत सुधार लाने की जरूरत है. उन्होंने कहा कि बिहार में बच्चों में लिवर की बीमारी बढ़ रही है. बहुत ज़्यादा शराब के सेवन, ज्यादा वसा और कॉलेस्ट्रॉल से युक्त आहार और व्यायाम की कमी भारत में बढ़ते लिवर रोगोें का मुख्य कारण हैं. इसमें बच्चों में रोग का कारण अनियमित जीवनशैली और कोलेस्ट्रॉल से युक्त आहार सामने आया है. लिवर रोगों के आम लक्षण हैं पेट में दर्द, असामान्य मल, थकान, मतली, उल्टी, बुखार, भूख में कमी, पेट या टांगों में सूजन, रक्तस्राव, मूत्र का रंग गहरा होना, पीलिया आदि. कई बच्चे तो 5-6 वर्ष की उम्र में ही लिवर की बीमारी से पीड़ित हो गये जिनका ट्रांसप्लांट किया गया. उन्होंने बताया कि अब डोनर को इसमें कोई दिक्कत नहीं होती है. घाव का दर्द 8 से 10 दिन में खत्म हो जाता है. पतले और स्वस्थ व्यक्ति को ही इसके लिए चुना जाता है.
कैसे करें बचाव?
-रोज लगातार व्यायाम करें.
-बेहतर स्वस्थ भोजन ग्रहण करें.
-भोजन में फाइबर की मात्रा ज्यादा हो.
-जंक फूड से परहेज करें.

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