-45 प्रतिशत के साथ शारीरिक प्रताड़ना और 14 फीसदी को जबरन कराया जाता है काम
-टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस की रिपोर्ट का सार कह रहा बिहार में हाॅरर होम चलाया जा रहा है
रविशंकर उपाध्याय, पटना.
टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस की जिस सोशल ऑडिट रिपोर्ट पर पूरे बिहार में हल्ला मचा हुआ है, उसका सार देखकर आप हैरान रह जायेंगे. अध्ययन से यह स्पष्ट होता है कि बिहार में बाल सुधार गृह या बालिका सुधार गृह नहीं बल्कि हॉरर होम चलाये जा रहे हैं. जहां पर ना केवल लड़की बल्कि लड़के भी यौन हिंसा से प्रताड़ित हो रहे हैं. टिस के आंकड़ों के अनुसार बिहार के बाल-बालिका गृहों में 9 फीसदी का यौन शोषण हुआ है, 45 प्रतिशत के साथ शारीरिक शोषण हुआ है और 14 फीसदी को शारीरिक रूप से प्रताड़ित करने के साथ उनसे जबरन काम कराया जाता है. इस बीच केवल 32 प्रतिशत इन गृहों में रहने वाले ऐसे खुशनसीब हैं जिनके साथ अभी तक कोई घटना नहीं घटी है.
110 गृहों का हुआ था ऑडिट
कुछ महीने पहले बिहार सरकार की पहल पर टाटा इंस्टिट्युट ऑफ सोशल साइंसेस (टीआईएसएस या टिस) ने बिहार के 110 बाल-बालिका-अल्पावास गृहों का एक सोशल ऑडिट किया था. टिस की ‘कोशिश’ यूनिट ने बिहार के 38 जिलों में घूमकर करीब 110 गृहों की ऑडिट रिपोर्ट 27 अप्रैल, 2018 को समाज कल्याण विभाग को सौंपी थी. ‘कोशिश’ टीम में कुल आठ सदस्य थे, पांच पुरुष और तीन महिलाएं. बिहार समाज कल्याण विभाग के मुख्य सचिव अतुल प्रसाद के मुताबिक टिस की रिपोर्ट को तीन श्रेणियों में बांटा गया- 'बेहतर', 'प्रशासनिक लापरवाही' और 'आपराधिक लापरवाही'. ‘कोशिश’ की यह गोपनीय रिपोर्ट 26 मई को समाज कल्याण विभाग ने अपने सभी क्षेत्रीय पदाधिकारियों को बुलाकर उनसे साझा की थी. लेकिन इसे अभी तक सार्वजनिक नहीं किया गया है.
बिहार में कुल 11 बालिका गृह, 23 बाल गृह और 15 अल्पावास गृह
बिहार में लगभग 11 बालिका गृह, 23 बाल गृह, 15 अल्पावास गृह, 16 आब्जर्वेशन होम, 10 ओपेन शेल्टर के अलावा 29 दत्तकग्रहण संस्थान फिलहाल चलाए जा रहे हैं. 9 क्लाेज्ड होम की श्रेणी भी है जिसे बंद कर दिया गया है. बिहार सरकार अपने स्तर के अलावा एनजीओ के जरिए इन संस्थानों का संचालन करती है. एक बाल और बालिका गृह में कुल 50 बच्चियों को रखने का प्रावधान है. इसका संचालन बिहार सरकार के समाज कल्याण विभाग द्वारा किया जाता है. वहीं, एक बाल-बालिका गृह पर लगभग 30 लाख रुपए का सालाना खर्च आता है जिसमें मकान का किराया और बच्चे-बच्चियों के लिए खाने-पीने की व्यवस्था की जाती है. गृहों के संचालन में एक काउंसलर के साथ-साथ 10 लोगों को रखने का प्रावधान है. इन गृहों के संचालन में 90 फीसदी सरकार और 10 फीसदी संबंधित एनजीओ के द्वारा खर्च किया जाता है.
-टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस की रिपोर्ट का सार कह रहा बिहार में हाॅरर होम चलाया जा रहा है
रविशंकर उपाध्याय, पटना.
टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस की जिस सोशल ऑडिट रिपोर्ट पर पूरे बिहार में हल्ला मचा हुआ है, उसका सार देखकर आप हैरान रह जायेंगे. अध्ययन से यह स्पष्ट होता है कि बिहार में बाल सुधार गृह या बालिका सुधार गृह नहीं बल्कि हॉरर होम चलाये जा रहे हैं. जहां पर ना केवल लड़की बल्कि लड़के भी यौन हिंसा से प्रताड़ित हो रहे हैं. टिस के आंकड़ों के अनुसार बिहार के बाल-बालिका गृहों में 9 फीसदी का यौन शोषण हुआ है, 45 प्रतिशत के साथ शारीरिक शोषण हुआ है और 14 फीसदी को शारीरिक रूप से प्रताड़ित करने के साथ उनसे जबरन काम कराया जाता है. इस बीच केवल 32 प्रतिशत इन गृहों में रहने वाले ऐसे खुशनसीब हैं जिनके साथ अभी तक कोई घटना नहीं घटी है.
110 गृहों का हुआ था ऑडिट
कुछ महीने पहले बिहार सरकार की पहल पर टाटा इंस्टिट्युट ऑफ सोशल साइंसेस (टीआईएसएस या टिस) ने बिहार के 110 बाल-बालिका-अल्पावास गृहों का एक सोशल ऑडिट किया था. टिस की ‘कोशिश’ यूनिट ने बिहार के 38 जिलों में घूमकर करीब 110 गृहों की ऑडिट रिपोर्ट 27 अप्रैल, 2018 को समाज कल्याण विभाग को सौंपी थी. ‘कोशिश’ टीम में कुल आठ सदस्य थे, पांच पुरुष और तीन महिलाएं. बिहार समाज कल्याण विभाग के मुख्य सचिव अतुल प्रसाद के मुताबिक टिस की रिपोर्ट को तीन श्रेणियों में बांटा गया- 'बेहतर', 'प्रशासनिक लापरवाही' और 'आपराधिक लापरवाही'. ‘कोशिश’ की यह गोपनीय रिपोर्ट 26 मई को समाज कल्याण विभाग ने अपने सभी क्षेत्रीय पदाधिकारियों को बुलाकर उनसे साझा की थी. लेकिन इसे अभी तक सार्वजनिक नहीं किया गया है.
बिहार में कुल 11 बालिका गृह, 23 बाल गृह और 15 अल्पावास गृह
बिहार में लगभग 11 बालिका गृह, 23 बाल गृह, 15 अल्पावास गृह, 16 आब्जर्वेशन होम, 10 ओपेन शेल्टर के अलावा 29 दत्तकग्रहण संस्थान फिलहाल चलाए जा रहे हैं. 9 क्लाेज्ड होम की श्रेणी भी है जिसे बंद कर दिया गया है. बिहार सरकार अपने स्तर के अलावा एनजीओ के जरिए इन संस्थानों का संचालन करती है. एक बाल और बालिका गृह में कुल 50 बच्चियों को रखने का प्रावधान है. इसका संचालन बिहार सरकार के समाज कल्याण विभाग द्वारा किया जाता है. वहीं, एक बाल-बालिका गृह पर लगभग 30 लाख रुपए का सालाना खर्च आता है जिसमें मकान का किराया और बच्चे-बच्चियों के लिए खाने-पीने की व्यवस्था की जाती है. गृहों के संचालन में एक काउंसलर के साथ-साथ 10 लोगों को रखने का प्रावधान है. इन गृहों के संचालन में 90 फीसदी सरकार और 10 फीसदी संबंधित एनजीओ के द्वारा खर्च किया जाता है.
चूंकि यह मामला अब सी.बी.आई.के सक्षम हाथों में सौंप दिया गया है,इसलिए हम सभी को प्रतीक्षा करनी चाहिए।उम्मीद है कि सी.बी.आई.जांच में इस घिनौने कृत्य में संलग्न कोइ भी अपराधी बच नहीं पायेंगे।
ReplyDeleteजे.पी.श्रीवास्तव,
राष्ट्रीय महासचिव,
मानवाधिकार एवं सामाजिक न्याय
आयोग।
अभी तक सरकार ने रिपोर्ट नहीं सार्वजनिक किया है, इस कारण इस पर विमर्श तो होना ही चाहिए.
Deleteबहुत बढ़िया। तह तक।
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