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बार चाणक्य की भूमिका निभाने वाले कलाकार पद्मश्री मनोज जोशी ने पटना
पहुंचने पर कहा, अर्थशास्त्र, नीति शास्त्र के रचयिता महान विद्वान आचार्य
चाणक्य श्रोत्रीय ब्राह्मण थे और वे मगध के ही निवासी थे
रविशंकर उपाध्याय, पटना.
..तो आचार्य चाणक्य मगध के ही श्रोत्रीय ब्राह्मण थे. यह जानकारी 1049 बार चाणक्य की भूमिका निभाने वाले कलाकार पद्मश्री मनोज जोशी ने पटना पहुंचने पर देते हुए कहा कि अर्थशास्त्र, नीति शास्त्र के रचयिता महान विद्वान आचार्य चाणक्य श्रोत्रीय ब्राह्मण थे. इसमें कहीं कोई विवाद नहीं है कि चाणक्य का जन्म मगध में हुआ और अपनी विद्वता के कारण वे ना केवल सैंकड़ो किमी दूर गांधार के तक्षशिला विश्वविद्यालय में पहले व्याख्याता बने और फिर कुलपति का पद भी हासिल किया. अपनी विलक्षणता और दूरदृष्टि के कारण उन्होंने ना केवल भारतीय प्राचीन इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान बनाया बल्कि अपनी विद्वता से किवदंती बन गये. जब आज के दौर में जातिवाद और धर्मवाद का बोलबाला है वैसे में एक ब्राह्मण चाणक्य ने शूद्र पुत्र चंद्रगुप्त को मगध का प्रतापी सम्राट बना दिया. क्या यह आज के राजनीतिज्ञ जानते हैं कि कैसे नंद वंश के खात्मे के लिए चाणक्य ने आदिवासियों और दलितों की ताकत का इस्तेमाल इसी मगध में किया था? मनाेज जोशी दिव्य प्रेम सेवा मिशन, हरिद्वार के बैनर तले स्वयं के द्वारा ही निर्देशित महान ऐतिहासिक नाटक चाणक्य का मंचन करने के पहले व्यक्तव्य दे रहे थे. चाणक्य की भूमिका को 1049 वी बार निभाने वाले मनोज जोशी मगध की धरती पर आकर आह्लादित दिखायी दिये और उन्होंने श्री कृष्ण मेमोरियल हॉल में कहा कि उनके मागध और श्रोत्रीय होने के कई प्रसंग हैं जो चाणक्य नाटक में दिखाया और बताया भी गया है.
...जब पोरस ने चाणक्य से पूछा कि श्रोत्रियों का कार्य तो विद्या व्यसन है आप कहां राजनीति शास्त्र में रमे हैं?
गांधार प्रदेश में स्थित तक्षशिला विश्वविद्यालय में कुलपति चाणक्य ने वहां के राजा आंभी के अलेक्जेंडर यानी सिकंदर के साथ संधी करने से आहत होकर पद त्याग कर दिया होता है. चाणक्य पुरु नगर में वास लेने के बाद अपने शिष्यों को समझा रहे होते हैं कि संत के साथ शत्रुता हमेशा नुकसानदायक होती है और योद्धा के साथ मित्रता से साहस और बल क्षीण होते हैं. उन्हें वहां का राजा पोरस व्यंग्य भी करता है कि आचार्य श्रोत्रियों का कार्य तो विद्या व्यसन है आप कहां राजनीतिशास्त्र में रमे हैं? वे उसे समझाते हैं कि अपने राज्य की रक्षा करो क्योंकि सिकंदर वितस्ता नदी के पार बैठा है. बंधुओं का परस्पर द्वेष पूरे कुल खानदान का नाश कर देता है और आर्यों के साथ नहीं रहने पर अखंड भारत छिन्न भिन्न हो जाएगा. वे आगे कहते हैं कि धर्म का आसरा लेकर राष्ट्र की सुरक्षा के साथ खिलवाड़ नहीं किया जा सकता है. राष्ट्र की उन्नति में यदि कोई धर्म बाधक है तो वह भी त्याज्य है. राष्ट्र से अधिक महत्व की नीति नहीं होती है. ईसा पूर्व 320 में पोरस का पराजय हुआ. हालांकि अलेक्जेंडर को वापस यूनान जाना पड़ा और रास्ते में ही बेबीलोन में उसकी मौत हो जाती है. अब मगध के रहनेवाले आचार्य चाणक्य देश को एक करने यात्रा पर निकल पड़ते हैं, काशी, कोशल, कौशांबी, मगध. मगध की सत्ता को नंद वंश के ही पुत्र चंद्रगुप्त मौर्य की मदद से हासिल करते हैं क्योंकि घनानंद ने भरी सभा में उनका मजाक उड़ाया था.
रविशंकर उपाध्याय, पटना.
..तो आचार्य चाणक्य मगध के ही श्रोत्रीय ब्राह्मण थे. यह जानकारी 1049 बार चाणक्य की भूमिका निभाने वाले कलाकार पद्मश्री मनोज जोशी ने पटना पहुंचने पर देते हुए कहा कि अर्थशास्त्र, नीति शास्त्र के रचयिता महान विद्वान आचार्य चाणक्य श्रोत्रीय ब्राह्मण थे. इसमें कहीं कोई विवाद नहीं है कि चाणक्य का जन्म मगध में हुआ और अपनी विद्वता के कारण वे ना केवल सैंकड़ो किमी दूर गांधार के तक्षशिला विश्वविद्यालय में पहले व्याख्याता बने और फिर कुलपति का पद भी हासिल किया. अपनी विलक्षणता और दूरदृष्टि के कारण उन्होंने ना केवल भारतीय प्राचीन इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान बनाया बल्कि अपनी विद्वता से किवदंती बन गये. जब आज के दौर में जातिवाद और धर्मवाद का बोलबाला है वैसे में एक ब्राह्मण चाणक्य ने शूद्र पुत्र चंद्रगुप्त को मगध का प्रतापी सम्राट बना दिया. क्या यह आज के राजनीतिज्ञ जानते हैं कि कैसे नंद वंश के खात्मे के लिए चाणक्य ने आदिवासियों और दलितों की ताकत का इस्तेमाल इसी मगध में किया था? मनाेज जोशी दिव्य प्रेम सेवा मिशन, हरिद्वार के बैनर तले स्वयं के द्वारा ही निर्देशित महान ऐतिहासिक नाटक चाणक्य का मंचन करने के पहले व्यक्तव्य दे रहे थे. चाणक्य की भूमिका को 1049 वी बार निभाने वाले मनोज जोशी मगध की धरती पर आकर आह्लादित दिखायी दिये और उन्होंने श्री कृष्ण मेमोरियल हॉल में कहा कि उनके मागध और श्रोत्रीय होने के कई प्रसंग हैं जो चाणक्य नाटक में दिखाया और बताया भी गया है.
...जब पोरस ने चाणक्य से पूछा कि श्रोत्रियों का कार्य तो विद्या व्यसन है आप कहां राजनीति शास्त्र में रमे हैं?
गांधार प्रदेश में स्थित तक्षशिला विश्वविद्यालय में कुलपति चाणक्य ने वहां के राजा आंभी के अलेक्जेंडर यानी सिकंदर के साथ संधी करने से आहत होकर पद त्याग कर दिया होता है. चाणक्य पुरु नगर में वास लेने के बाद अपने शिष्यों को समझा रहे होते हैं कि संत के साथ शत्रुता हमेशा नुकसानदायक होती है और योद्धा के साथ मित्रता से साहस और बल क्षीण होते हैं. उन्हें वहां का राजा पोरस व्यंग्य भी करता है कि आचार्य श्रोत्रियों का कार्य तो विद्या व्यसन है आप कहां राजनीतिशास्त्र में रमे हैं? वे उसे समझाते हैं कि अपने राज्य की रक्षा करो क्योंकि सिकंदर वितस्ता नदी के पार बैठा है. बंधुओं का परस्पर द्वेष पूरे कुल खानदान का नाश कर देता है और आर्यों के साथ नहीं रहने पर अखंड भारत छिन्न भिन्न हो जाएगा. वे आगे कहते हैं कि धर्म का आसरा लेकर राष्ट्र की सुरक्षा के साथ खिलवाड़ नहीं किया जा सकता है. राष्ट्र की उन्नति में यदि कोई धर्म बाधक है तो वह भी त्याज्य है. राष्ट्र से अधिक महत्व की नीति नहीं होती है. ईसा पूर्व 320 में पोरस का पराजय हुआ. हालांकि अलेक्जेंडर को वापस यूनान जाना पड़ा और रास्ते में ही बेबीलोन में उसकी मौत हो जाती है. अब मगध के रहनेवाले आचार्य चाणक्य देश को एक करने यात्रा पर निकल पड़ते हैं, काशी, कोशल, कौशांबी, मगध. मगध की सत्ता को नंद वंश के ही पुत्र चंद्रगुप्त मौर्य की मदद से हासिल करते हैं क्योंकि घनानंद ने भरी सभा में उनका मजाक उड़ाया था.
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