-कई अन्य गांवों ने भी प्रेरणा ली और कर रहे जल संरक्षण का काम
--सरकारी बोरिंग के आग्रह को भी गांव वालों ने नहीं माना है
रविशंकर उपाध्याय4पटना
आज जब बिहार में पानी के लिए लोग पानी पानी कर रहे हैं. जेठ के इस मौसम में राज्य के कई हिस्सों में बोरिंग फेल हो जाने से लोगों को काफी परेशानी हो रही है. पानी के लिए मारा मारी हो रही है. वैसे में बिहार के जमुई जिले में एक ऐसा गांव भी है जिसने जल स्तर को बचाये रखन के लिए बोरिंग पर बैन लगा रखा है. यह ऐसा सामूहिक बहिष्कार है जो पानी बचाने के लिए भविष्य के दिनों का सामूहिक संस्कार कहा जा सकता है. गांव में पानी बचाने के लिए कुएं और तालाब खोदे गये हैं और सिंचाई के लिए उसी का इस्तेमाल किया जा रहा है. जमुई जिले के बरहट प्रखंड के पाडो पंचायत में केड़िया गांव के लोग जल संरक्षण के लिए काम कर रहे हैं. वे बीते कई सालों से लगातार प्रयास कर रहे हैं और पानी को पूंजी की तरह मानते हैं. यहां के किसानों का कहना है कि पानी उनके लिए बैंक के सामान है. इसका सकारात्मक परिणाम यह हुआ है कि पाड़ो गांव के साथ ही खैरा ब्लॉक के डुमरटोला गांव ने भी प्रेरणा ली और वहां के ग्रामीण भी बोरिंग को बैन कर चुके हैं. जब भी यहां अधिकारी या मंत्री पहुंचते हैं तो गांव वाले उनसे तालाब और कुएं बनवाने की मांग करते हैं.
गांव में हैं साठ कुएं, नहीं दिखती है बोरिंग
इस गांव के मनोज तांती और राजकुमार यादव कहते हैं कि जल स्तर को बचाए रखने के लिए हम सब ने बोरिंग पर रोक लगा रखी है. गांव में लगभग साठ कुएं है, जिससे सालों भर पानी निकलता है. इन कुओं से ही लोग अपनी पानी की जरूरतें पूरी करते है. गांव के लोगों में इस बात को लेकर एकमत है कि जल स्तर को बनाये रखने के लिए बोरिंग नहीं करेंगे. लगभग 110 घरों वाले इस गांव की आबादी करीब एक हजार है. गांव वाले मानते हैं कि जैसे दूसरे गांवों मे लोग हैंडपंप या फिर सिचाई के लिए बोरिंग करवाते है तो वहां का पानी लेवल नीचे चला जाता है, इसके बाद पिछले कई सालों से इस गांव के किसानों ने बोरिंग का सामूहिक बहिष्कार कर दिया है. इसका परिणाम है कि इस गांव मे मात्र पांच से छह फीट तक गढ्ढा खोदने पर ही पानी निकलने लगता है.
वर्षा जल का भी करते हैं संरक्षण
गांव वाले वर्षा जल का संरक्षण करने के लिए गांव में कई पोखर को खुदवा रखा है. बरसात का पानी गांव के बाहर न चला जाए इस लिए आहर को कई भागों में बांट कर वर्षा जल का भी उपयोग कर लेते है. इस गांव के किसानों के पानी को लेकर जो सतर्कता है उसका नतीजा है कि लगभग 450 एकड़ रकबा वाले इस गांव के खेतो मे कहीं भी गढ्ढा खोदकर खेती के लिए किसान पानी आसानी से निकाल लेते हैं. किसान आनंदी यादव कहते है कि अमीर आदमी बोरिंग करवा लेगा तो गरीब क्या करेगा जब जल स्तर नीचे चल जाएगा?
कहते हैं पर्यावरणविद्: गांव ने पेश की मिसाल तो आसपास के गांव हुए प्रेरित
इस गांव में काम करने वाले पर्यावरणविद इश्तेयाक अहमद कहते हैं कि केड़िया गांव एक उदाहरण है जहां के लोग जागरूकता से भूगर्भ जल को बचा कर रखा है. यहां के किसान भूगर्भ जल का दोहन नहीं होने देते हैं. इनकी सकारात्मकता का ही परिणाम है कि पाड़ो गांव के साथ खैरा के डुमर टोला गांव ने भी प्रेरणा लेते हुए जल संरक्षण का काम कर रहे हैं. इसके साथ ही राज्य भर के किसान यहां अध्ययन के लिए पहुंचते हैं.
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