सामाजिक पैमाने और रहन सहन के स्तर पर बिहार के गांव लगातार बदल रहे हैं. जहां बिजली ने जीवन को आसान किया है वहीं हर घर नल जल योजना के साथ हर घर में गली और नाली की योजना ने भी गांवों का चेहरा बदला है. बिहार में कई गांव ऐसे हैं जो देश ही नहीं दुनिया भर में मॉडल है. हम ऐसे ही दो गांवों की बात करेंगे. पहला जहानाबाद का धरनई है जो पूरी तरह सौर ऊर्जा से जगमग कर रहा है वहीं दूसरा जमुई जिले का केडिया है जो जैविक खेती वाला गांव है. इन्हीं दो गांव की कहानी जानिए:
धरनई: सौर ऊर्जा से रोशन हो रही है गांव की गलियां
जहानाबाद जिले से 30 किलोमीटर के दूरी पर एनएच किनारे बसा धरनई गांव अंधेरे से मुक्ति पाते हुए सौर ऊर्जा से जगमग कर रहा है. पिछले तीस वर्षों तक अंधेरे में डूबे रहने वाला धरनई गांव की गलियां, स्कूल और स्वास्थ्य केन्द्र आज दुधिया रोशनी से गुलजार है. धरनई में सौर ऊर्जा चालित माइक्रो ग्रिड की स्थापना की गई है. इस माइक्रो ग्रिड की क्षमता 100 किलोवाट है. इसके सहारे गांव के डेढ़ सौ से ज्यादा परिवारों को किफायती बिजली मिल रही है. धरनई गांव की गलियों में सोलर आधारित स्ट्रीट लाइट लगे हैं. गांव में सौर ऊर्जा आधारित 60 स्ट्रीट लाइट लगाए गए हैं. सड़क के अलावा गांव के दो स्कूलों, एक स्वास्थ्य केन्द्र, एक किसान प्रशिक्षण भवन भी इसी माइक्रो ग्रिड से रोशन हो रहे हैं.
150 घरों में मिल रही है बिजली
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केडिया जैविक खेती से उपलब्ध करा रहा सब्जियां
जमुई जिले के बरहट प्रखंड के सुदूर गाव केडिया को अंतरराष्ट्रीय पहचान मिलने लगी है. उसे यह पहचान जैविक खेती व जैविक ग्राम के कारण मिल रही है. जैविक ग्राम के रूप में मिली सफलता की गूंज देश भर में सुनाई देने के बाद अब विदेशों में भी गूंजने लगी है, लिहाजा एक के बाद एक विदेशी शोधकर्ता केडिया के अनुभवों से सीख लेने और उसे अपने-अपने देश में साझा करने यहां पहुंच रहे हैं. जब पूरे विश्व में रासायनिक खेती की होड़ लगी है, तब एक छोटे से गांव के किसानों ने जैविक खेती को अपनाकर होड़ में शामिल लोगों को आईना दिखाया है. सचमुच, लोगों ने एक मिसाल पेश की है. इसके पूर्व देश के अलग-अलग कोने से आए कृषि विज्ञान के छात्रों ने भी केडिया मे हो रहे प्रयोगों को अपने शोध का विषय बनाया.
अमृत पानी का प्रयोग अनूठा, खेतों की बढ़ा रहा उत्पादकता
देश और विदेश के कृषि शोधकर्ताओं को केडिया के जिस प्रयोग ने विशेष रूप से प्रभावित किया उनमें एक है अमृत पानी. अमृत पानी यहां के खेतों के लिए सोना उगल रहा है. अमृत पानी के कारण खेतों में बिना रासायनिक खाद व कीटनाशक पदाथरें के फसलों की उत्पादकता बढ़ गई है. नतीजतन प्रति एकड़ खेती पर 2000 से 2500 रूपये की बचत हो रही है। साथ ही पर्यावरण संरक्षण की दिशा में भी एक सार्थक प्रयास साबित हुआ है. अमृत पानी
एक घड़े में एक किलो नीम के पत्ते, एक किलो अकमन के पत्ते एक किलो चना का बेसन, एक सौ ग्राम गुड़, एक लीटर गोमुत्र और छह लीटर पानी लेकर उसे जमीन के अंदर डाल दिया जाता है और अच्छी तरह से मिट्टी से ढक दिया जाता है ताकि अंदर का गैस बाहर न आ सके. घड़े को 21 दिन के बाद निकालकर उसे अच्छी तरह से मिला लिया जाता है और सूती कपड़े से छानकर 150 मिलीलीटर की मात्रा को छह लीटर पानी में मिलाकर खेतों में छिड़काव करने से फसलों की पैदावार बढ़ती है और उत्पादन लागत में कमी आती है.
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