क्या इस देश में कानूनों का दुरूपयोग नहीं रुकना चाहिए?

रविशंकर उपाध्याय। पटना 
सुप्रीम कोर्ट ने 20 मार्च को एक याचिका पर सुनवाई करते हुए देशभर में एससी/एसटी एक्ट के बड़े पैमाने पर गलत इस्तेमाल की बात को स्वीकार करते हुए ऐतिहासिक फैसला सुनाया था। जिसके तहत कोर्ट ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम (एससी/एसटी एक्ट 1989) के तहत दर्ज मामलों में तत्काल गिरफ्तारी पर रोक लगा दी थी। अब इसके खिलाफ २ अप्रैल को भारत बंद बुलाया गया जिसमे बड़े पैमाने पर हिंसा हुई. उत्तर भारत के कई जगहों पर हिंसा हुई है. इस हिंसा में 7 लोग मारे गए और कई लोग घायल हुए हैं. सरकारी संपत्ति को नुक्सान पहुँचाया गया.  मेरा यह सीधा सवाल है की क्या इस देश में कानूनों का दुरूपयोग नहीं रुकना चाहिए? केवल एससी एसटी एक्ट ही क्यों दहेज़ निरोधक कानून, आतंकवाद निरोधक कानून जैसे सर्वाधिक दुरूपयोग होने वाले कानूनों में सुधार होने चाहिए. यदि ऐसा नहीं हुआ तो हम सुधारवादी हैं क्या? ट्रिपल तलाक़ जैसे कानून को अभी अभी अवैध बताया गया तो समाज के एक बड़े तबके ने तो स्वागत किया. अब जब यह गाइडलाइन आई है तो इसपर हल्ला हो रहा है. 
जानिए कोर्ट की दी गई नई गाइडलाइंस?
1. ऐसे मामलों में नर्दिोष लोगों को बचाने के लिए कोई भी शिकायत मिलने पर तुरंत मुकदमा दर्ज नहीं किया जाएगा। सबसे पहले शिकायत की जांच डीएसपी लेवल के पुलिस अफसर द्वारा शुरुआती जांच की जाएगी। यह जांच समयबद्ध होनी चाहिए। जांच किसी भी सूरत में 7 दिन से ज्यादा समय तक न हो। डीएसपी शुरुआती जांच कर नतीजा निकालेंगे कि शिकायत के मुताबिक क्या कोई मामला बनता है या फिर तरीके से झूठे आरोप लगाकर फंसाया जा रहा है?
2. ऐसे मामलों में तुरंत गिरफ्तारी नहीं की जाएगी। सरकारी कर्मचारियों की गिरफ्तारी सर्फि सक्षम अथॉरिटी की इजाजत के बाद ही हो सकती है और जो लोग सरकारी कर्मचारी नहीं है, उनकी गिरफ्तारी एसएसपी की इजाजत से हो सकेगी। हालांकि, कोर्ट ने यह साफ किया गया है कि गिरफ्तारी की इजाजत लेने के लिए उसकी वजहों को रिकॉर्ड पर रखना होगा।
3. सुप्रीम कोर्ट ने इस अधिनियम के बड़े पैमाने पर गलत इस्तेमाल की बात को मानते हुए कहा कि इस मामले में सरकारी कर्मचारी अग्रिम जमानत के लिए आवेदन कर सकते हैं।
4. एससी/एसटी एक्ट के तहत जातिसूचक शब्द इस्तेमाल करने के आरोपी को जब मज्ट्रिरेट के सामने पेश किया जाए तो उस वक्त उन्हें आरोपी की हिरासत बढ़ाने का फैसला लेने से पहले गिरफ्तारी की वजहों की समीक्षा करनी चाहिए।
5. कोर्ट ने यह भी कहा कि इन दिशा. नर्दिेशों का उल्लंघन करने वाले अफसरों को विभागीय कार्रवाई के साथ अदालत की अवमानना की कार्रवाही का भी सामना करना होगा।
एससी/एसटी एक्ट के मामलों में अब तक क्या था प्रावधान?
1. एससी/एसटी एक्ट में जातिसूचक शब्दों का इस्तेमाल संबंधी शिकायत पर तुरंत मामला दर्ज होता था।
2. ऐसे मामलों में जांच केवल इंस्पेक्टर रैंक के पुलिस अफसर ही करते थे।
3. सरकारी कर्मचारी के खिलाफ अदालत में चार्जशीट दायर करने से पहले जांच एजेंसी को कर्मचारी के विभागाध्यक्ष से इसकी इजाजत लेनी होती थी।
4. मामले में तुरंत गिरफ्तारी का भी प्रावधान था।
5. ऐसे मामलों में कोर्ट द्वारा अग्रिम जमानत नहीं दी जाती थी। नियमित जमानत केवल हाईकोर्ट के द्वारा ही दी जाती थी।
6. ऐसे मामलों की सुनवाई स्पेशल कोर्ट करती थी।

इनपुट: एजेंसी  

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