'आज तक' बता रहा है कि आरा धू धू जल रहा है लेकिन वहां चाय पकौड़े की दुकानों और घरों के चूल्हे जल रहे हैं
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निराला और पुष्यमित्र ने सोशल मीडिया पर लिखकर की मजम्मत |
-देश के प्रमुख इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में बिहार के माहौल को लेकर चल रहे प्रपंच के खिलाफ खांटी बिहारी पत्रकारों ने बताई जमीनी सच्चाई
अभी बिहार का माहौल जानने के लिए नेशनल न्यूज चैनल तो मत ही देखिए, फेसबुक पर नॉन रेसिडेंट बिहारियों के पोस्ट को भी वैल्यू मत दीजिए क्योंकि वे बिहार के दर्जनों जिलों को सांप्रदायिक हिंसा की आग में जला रहे हैं जबकि असलीयत है कि यहां सब ऑल इज वेल है. इलेक्ट्रॉनिक और सोशल मीडिया में बिहार के माहौल को लेकर चल रहे प्रपंच के खिलाफ बिहार के पत्रकारों ने अभियान छेड़ दिया है. सोशल मीडिया पर ही वरिष्ठ पत्रकार निराला और पुष्यमित्र ने सोशल टीवी और सोशल मीडिया के ज्ञानियों की जमकर मजम्मत की है. पहले निराला को पढ़िये फिर पुष्यमित्र को.
निराला बिदेसिया: दिल्ली की मीडिया के लिए बिहार चारागाह है. चुनाव,अपराध और नकारात्मक माहौल के वक़्त चारागाही करते हैं.
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निराला बिदेसिया |
इस बार चार दिनों से औरंगाबाद में रहा। जब से तनाव शुरू हुआ,तब से। तनाव शुरू होते ही सरकार और शासन ने तुरन्त फैसला लिया। इंटरनेट बन्दी का फैसला। यकीन मानिए यह फैसला न हुआ होता तो सच मे तनाव पर ही सिमटकर रह गया मामला उग्र हिंसा के रास्ते दंगा तक पहुंच सकता था। चार दिनों में ही जिस जिस किस्म के अफवाहों पर चौपाली बैठकी में बात होती रही, उन अफवाहों को इंटरनेट चालू रहने से बल मिलता। अर्जी फर्जी फ़ोटो और वीडियो वायरल कर। लेकिन सिर्फ बतकही में बात हुई तो उसे बकवास मान लोग एक कान से सुन,दूसरे से निकालते रहे। लेकिन अफसोस कि सो कॉल्ड प्रोग्रेसिव लोगों को अपने वाल पर यह कहते देखा कि सरकार सूचना और जानकारी छुपाने के लिए इंटरनेट बन्द की है। अपने दिल्लीवाले साथी ऐसा ज्यादा ही बोलते रहे। दिल्ली में सिर्फ मोदी ही नही हैं जिनका विरोध जरूरी है, ऐसे फैशनिया,पूर्वाग्रही प्रोग्रेसिव पत्रकारों और बुद्धिजीवियों को भी भाव देना बंद कीजिए। ये ज्यादा खतरनाक लोग हैं। ये ज्ञान पर अपनी मुग्धता और श्रेष्ठताबोध से ज्यादा जहर फैलाते हैं।
दिल्ली का रिप्रोडक्टिव जर्नलिज्म देश के तानेबाने को गड़बड़ा रहा है, आग में घी का काम करता है
क्या ऐसा नही लगता आपको? मुझे तो लगता है और हमेशा लगता है। दिल्ली के अधिकांश पत्रकारिता संस्थानों ने जब रिपोर्टिंग पर निवेश बन्द कर दिया है तो क्योंकर उन्हें देश भर से रिपोर्ट करना चाहिए। वैसे मसले पर भी उन्हें क्यों दिल्ली से ही बैठकर रिपोर्ट करनी चाहिए,जो बिल्कुल ग्राउंड रिपोर्ट की चीज है,एकदम ग्रासरूट पर जाकर करने की चीज है। क्यों वे दिल्ली से बैठ पूरे देश पर कब्जा चाहते हैं? जैसे अभी के बिहार के हाल हालात पर क्यों नथुना फुलाकर वे अपने पसन्द के मित्रों के फेसबुक स्टेट्स आदि देखकर और फिर एकाध लोगों से बात कर सबसे पहले,सबसे ज्यादा रिपोर्ट करने को बेताब हैं। ऐसे मसले पर व्यूज पत्रकारिता तो हो नहीं सकती। यह तो एकदम कोर ग्राउंड रिपोर्टिंग का विषय है। बिहार के हर जिले में एक से एक काबिल,समर्पित,सरोकारी, समझवाले पत्रकार हैं। क्यों नही ये दिल्लीवाले उनसे ही बढियां रिपोर्ट करवा लेते। उनके ही नाम से। क्यों इनपुट लेकर उसमे अपनी श्रेष्ठताबोध के साथ मुग्ध समझदारी और विशेषज्ञता को घुसेड़कर ही उसे रिपोर्ट मानना और फिर तब साझा करना जरूरी होता है। वर्चस्ववाद सिर्फ राजनीति या पूंजीवादी कारोबार में ही नही, पत्रकारिता में और ज्यादा है और यह ज्यादा खतरनाक है।
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पुष्यमित्र |
आज सुबह फेसबुक पर बिहार को लेकर ढेर सारे सद्भावना भरे संदेश थे। ऐसा लग रहा था कि बिहार साम्प्रदायिक दंगों की आग में झुलस रहा है और हालात बहुत बेकाबू हैं। ऐसे संदेश ज्यादातर उनलोगों की वाल पर दिखे जो बिहार से बाहर रहते हैं। आपलोगों की चिंताएं वाजिब हैं। यह सच है कि कई जिलों में तनाव का माहौल है। मगर सच यह भी है कि स्थितियां प्रशासन के काबू में है। कहीं कोई मौत नहीं हुई है। औरंगाबाद में गोली जरूर चली है, मगर प्रशासन ने हालात पर काबू पा लिया। वहां कर्फ्यू नहीं लगा है। भागलपुर से शुरू हुआ यह सिलसिला औरंगाबाद, समस्तीपुर होते हुए फिर मुंगेर पहुंचा। मगर हर जगह प्रशासन ने तनाव पर काबू पा लिया। कल तो रामनवमी जुलूस वालों ने नालंदा में पुलिस पर ही पथराव कर दिया था। मगर कुछ हुआ नहीं। हां, बेगूसराय में विसर्जन के दौरान भैंस पर चढ़कर सेल्फी लेने के चक्कर में छह युवक गंगा में डूब गए जिनमें से चार की मौत हो गयी। आज अखबारों के प्रांतीय पन्ने की यही लीड है।
कहने का मतलब यह है कि कोशिशें खूब हुईं मगर अब तक नाकामयाब ही रही। इसमें प्रशासन की बड़ी भूमिका है। खास तौर पर जब एक सत्ताधारी दल ही माहौल खराब करने में जुटा हो तो प्रशासन का इतनी तत्परता से काम करना जरूर सराहनीय कहा जायेगा। रामनवमी में माहौल खराब किया जाएगा इसका अंदाजा नीतीश कुमार को था। आप पांच सात दिन पुराने नीतीश के बयान को चेक कीजिये। हर बार उन्होंने कहा है कि कुछ लोग माहौल खराब करने में जुटे हैं, मगर हम ऐसा होने नहीं देंगे। उन्होंने प्रशासन को भी अलर्ट किया था। तारीफ सुशील मोदी की भी करनी होगी, उन्होंने साफ निर्देश दिए थे कि प्रशासन के बताए रूट पर ही जुलूस और विसर्जन यात्रा निकालें, भड़काऊ गाने मत बजाएं। मगर उनकी पार्टी के लोगों ने इन निर्देशों का पालन नहीं किया।
इस बार संभवतः पहली दफा ऐसा हुआ कि रामनवमी का जुलूस बिहार में इतने आक्रमक तरीके से निकला। चमचमाती तलवारें पहली बार दिखीं। और वह टोपी वाला गाना हर जगह जान बूझकर तेज आवाज में बजाया गया। जै श्री राम वाला चिग्घाड़ता हुआ गाना जब भी मैं सुनता हूँ, मुझे लगता है कि रावण ही जै श्री राम का जै घोष कर रहा है। हमारी तरह जै सियाराम बोलने का कल्चर था वह अब गायब हो गया है। इस बार के जुलूस में पहली बार पिछड़ों और दलितों की बड़ी हिस्सेदारी दिखी। सवर्ण गायब थे। लगता है संघ ने इस मसले पर जमीन पर काम किया है। कहने का मतलब यह कि जो आपको दिख रहा है, उससे कई गुना अधिक तनाव भड़काने की तैयारी थी। मगर लोगों को सफलता नहीं मिली।
इसकी दो वजहें रहीं। पहला प्रशासन मुस्तैद था। दूसरा आमलोग इन भड़काऊ गतिविधियों से दूर रहे। उन्हें मालूम था कि यह राजनीतिक दलों का अपना मामला है। वे खुद सलटें। वरना जिस तरह का माहौल था लोग अपने पड़ोसियों के खून के प्यासे होने वाले थे।
सच यही है कि अमूमन हर जगह स्थितियां काबू में है। अखबारों में हिंसक वारदातों के बदले पेपर लीक और लालूजी के एम्स जाने की खबरें हैं। आज शांति के प्रतीक महावीर की जयंती है। सरकार वैशाली और पावापुरी में बढ़िया आयोजन करवा रही हैं। वैशाली में स्थानीय मछुआरे चैतवार गाने वाले हैं। इस बारे में कुछ जानकारी हो तो बताईये। और हो सके तो अपने अड़ोस पड़ोस के लड़कों को समझाइये रेलवे में बंपर वेकेंसी निकली है। फॉर्म भर कर परीक्षा की तैयारी करे। बिहार के लिये परेशान मत होइये। यहां सब खैरियत हो रहा है।
साभार: फेसबुक पोस्ट
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