Ravishankar Upadhyay, Patna
...तो क्या बिहार में शराबबंदी फेल होने की राह पर बढ़ चली है. अप्रैल 2016 से मार्च 2018 तक देखते देखते यह सवाल तो मन में बनने ही लगा है. गांव हो या शहर बहुत अासानी से सभी जगहों पर शराब उपलब्ध है. लोग अवैध कारोबार में लिप्त हैं. महंगी कीमत पर बेच रहे हैं और शराब के शौकीन जाम भी छलका रहे हैं और गाहे बगाहे झूम भी रहे हैं. इस बार होली में मुझे फिर वही नजारा दिखाई दिया. जब मुझे दिखा तो आप सबको भी दिखा ही होगा. कई टीवी चैनल अपने स्टिंग में हरेक छह महीने पर इसकी हकीकत देश और दुनिया को दिखाते रहते हैं तो फिर सवाल उठता ही है कि इतने कड़े कानून बनाने का क्या मतलब? पुलिस क्या कर रही है? क्या मुख्यमंत्री की इतनी गंभीरता के बावजूद प्रशासनिक अमला यह मान चुका है कि शराबबंदी फेल हो चुकी है? यदि ऐसा है तो यह काफी गंभीर बात है. इसके फेल होने के कारणों की तह में जाना बेहद जरूरी है.
क्या किया जा सकता है?
-बेरोजगारी समाप्त किये बगैर नहीं लगेगी लगाम: एक बात तो स्पष्ट है कि बिहार में बेकारों की लंबी फौज के कारण अवैध शराब कारोबार फल फूल रहा है. बस पांच से दस मिनट का काम और पांच सौ रुपये की कमाई का लोभ ऐसा है जाे युवा बेरोजगारों को अपनी ओर लुभाता है. अपनी रोजी रोटी चलाने के लिए युवा इस ओर मुखातिब है और उसे रोक पाना एक चुनौती से कम नहीं है. क्या बिहार सरकार के पास ऐसे बेरोजगारों के लिए कोई प्लान है? अभी की स्थिति को देखते हुए तो यह कहा जा सकता है कि सरकार इस ओर सोच नहीं रही है.
-जेलों की क्षमता बढ़ाने पर करना होगा विचार: इसके साथ ही जेलों की क्षमता बढ़ाने पर भी विचार करना होगा. बिहार में 58 जेलें हैं जिनकी क्षमता ही 32,000 की है. इनमें पहले से ही भीड़ है. एक अांकड़े के अनुसार शराबबंदी में चार लाख से अधिक छापे पड़े हैं और शराब पीने के जुर्म में एक लाख लोग गिरफ्तार किए जा चुके हैं. आप कल्पना कर सकते हैं कि इनमें एक लाख नए अपराधी को जोड़ देने से क्या हालत हो गई होगी. यानी जेलों की क्षमता में विस्तार करना होगा और यह संदेश उन लोगों तक देना होगा जो शराबबंदी कानून को मजाक समझते हैं.
-पुलिस को करना होगा दंडित: शराबबंदी कानून को फेल होेने की राह पर ले जाने में पुलिस की भूमिका किसी से छुपी हुई नहीं है. जबकि कानून को लागू करने के पहले सरकार ने सभी थानाप्रभारियों से हलफनामा लिया था कि यदि उनके क्षेत्र में अवैध शराब का कारोबार होते हुए पकड़ा गया तो उनपर कड़ी कार्रवाई की जाये लेकिन अब तक ऐसा कुछ भी नहीं हुआ. सरकार के सॉफ्ट काॅर्नर के कारण पुलिस की ना केवल मनमानी बढ़ी बल्कि वे उदासीन भी होते नजर आए. इस कारण सरकार को कड़े कदम उठाने की दरकार है.
...तो क्या बिहार में शराबबंदी फेल होने की राह पर बढ़ चली है. अप्रैल 2016 से मार्च 2018 तक देखते देखते यह सवाल तो मन में बनने ही लगा है. गांव हो या शहर बहुत अासानी से सभी जगहों पर शराब उपलब्ध है. लोग अवैध कारोबार में लिप्त हैं. महंगी कीमत पर बेच रहे हैं और शराब के शौकीन जाम भी छलका रहे हैं और गाहे बगाहे झूम भी रहे हैं. इस बार होली में मुझे फिर वही नजारा दिखाई दिया. जब मुझे दिखा तो आप सबको भी दिखा ही होगा. कई टीवी चैनल अपने स्टिंग में हरेक छह महीने पर इसकी हकीकत देश और दुनिया को दिखाते रहते हैं तो फिर सवाल उठता ही है कि इतने कड़े कानून बनाने का क्या मतलब? पुलिस क्या कर रही है? क्या मुख्यमंत्री की इतनी गंभीरता के बावजूद प्रशासनिक अमला यह मान चुका है कि शराबबंदी फेल हो चुकी है? यदि ऐसा है तो यह काफी गंभीर बात है. इसके फेल होने के कारणों की तह में जाना बेहद जरूरी है.
क्या किया जा सकता है?
-बेरोजगारी समाप्त किये बगैर नहीं लगेगी लगाम: एक बात तो स्पष्ट है कि बिहार में बेकारों की लंबी फौज के कारण अवैध शराब कारोबार फल फूल रहा है. बस पांच से दस मिनट का काम और पांच सौ रुपये की कमाई का लोभ ऐसा है जाे युवा बेरोजगारों को अपनी ओर लुभाता है. अपनी रोजी रोटी चलाने के लिए युवा इस ओर मुखातिब है और उसे रोक पाना एक चुनौती से कम नहीं है. क्या बिहार सरकार के पास ऐसे बेरोजगारों के लिए कोई प्लान है? अभी की स्थिति को देखते हुए तो यह कहा जा सकता है कि सरकार इस ओर सोच नहीं रही है.
-जेलों की क्षमता बढ़ाने पर करना होगा विचार: इसके साथ ही जेलों की क्षमता बढ़ाने पर भी विचार करना होगा. बिहार में 58 जेलें हैं जिनकी क्षमता ही 32,000 की है. इनमें पहले से ही भीड़ है. एक अांकड़े के अनुसार शराबबंदी में चार लाख से अधिक छापे पड़े हैं और शराब पीने के जुर्म में एक लाख लोग गिरफ्तार किए जा चुके हैं. आप कल्पना कर सकते हैं कि इनमें एक लाख नए अपराधी को जोड़ देने से क्या हालत हो गई होगी. यानी जेलों की क्षमता में विस्तार करना होगा और यह संदेश उन लोगों तक देना होगा जो शराबबंदी कानून को मजाक समझते हैं.
-पुलिस को करना होगा दंडित: शराबबंदी कानून को फेल होेने की राह पर ले जाने में पुलिस की भूमिका किसी से छुपी हुई नहीं है. जबकि कानून को लागू करने के पहले सरकार ने सभी थानाप्रभारियों से हलफनामा लिया था कि यदि उनके क्षेत्र में अवैध शराब का कारोबार होते हुए पकड़ा गया तो उनपर कड़ी कार्रवाई की जाये लेकिन अब तक ऐसा कुछ भी नहीं हुआ. सरकार के सॉफ्ट काॅर्नर के कारण पुलिस की ना केवल मनमानी बढ़ी बल्कि वे उदासीन भी होते नजर आए. इस कारण सरकार को कड़े कदम उठाने की दरकार है.
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