बिहार: 10 हजार जिला पार्षदों-पंचायत समितियों को ना अधिकार मिला ना फंड

जिला पर्षद सदस्यों को एक मुखिया के जैसे भी नहीं मिले अधिकार
-केंद्र और राज्य सरकार की उपेक्षा ने जिला पर्षद-पंचायत समिति को किया बेकार
रविशंकर उपाध्याय, पटना
जिस पद को पाने के लिए तमाम प्रयास किये, आदमी जोड़े, खर्च भी खूब किया, तमाम जतन किए और जब प्रतिष्ठापूर्ण पद मिला तो उनका कुछ कर दिखाने का मकसद धरा का धरा रह गया. ये कहानी जिला पर्षद और पंचायत समिति सदस्यों की हैं, जिन्हें चुने जाने के डेढ़ साल बाद भी कोई अधिकार मिला ना ही कोई फंड. इस बात दर्द बिहार के दस हजार से ज्यादा जिला पर्षद-पंचायत समिति सदस्यों झेलना पड़ रहा है. जिला पर्षद के एक सदस्य की बात करें तो वे लगभग 50 हजार लोगों का प्रतिनिधित्व करते हैं. चालीस से पचास गांव और कम से कम छह अौर अधिकतम दस पंचायत की रहनुमाई करते हैं. लेकिन उनके पास पंचायत के वार्ड सदस्य के बराबर अधिकार और फंड नहीं है. जिन लोगों ने उनको वोट देकर पद दिलाया, उनकी भलाई के लिए वे रत्ती भर काम भी नहीं करा पा रहे हैं. कमोबेश यही हाल पंचायत समिति सदस्यों का है. पंचायत समिति सदस्य भी अपने को ठगा सा महसूस कर रहे हैं.
अप्रैल-मई 2016 के बाद अभी तक है बुरा हाल
त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव अप्रैल-मई 2016 में संपन्न हो गये थे. उसी वक्त परिणाम भी आ गया था, तब से लेकर आजतक कोई फंड और काम का अधिकार इन्हें नहीं मिल सका है. जिला पर्षद सदस्यों के लिए राज्य सरकार ने पंचम वित्त अायोग के तहत काफी कम राशि छह महीने पहले रिलीज किया था. इसमें भी अध्यक्ष के अनुसार ही सबको फंड मिला है. जिससे वे सात निश्चय में गली नली का काम करा सकते हैं. इसके कारण जिला पर्षद और पंचायत समिति सदस्य जनता के बीच जाने की स्थिति में नहीं है. क्योंकि वे उनकी डिमांड पूरा करने की स्थिति में नहीं है.
हर सेलेक्टेड वार्ड को मिल रहा है सालाना 14 लाख तो जिला पार्षदों को 7 लाख
14 वें वित्त आयोग के तहत केंद्र द्वारा पंचायतों को ही विकास का फंड दिया जा रहा है. इस विकास की योजना में जिस वार्ड को सेलेक्ट किया जाता है उसे सालाना 14 लाख रुपया मिल रहा है. इसमें ना तो पंचायत समिति और ना ही जिला पर्षद सदस्य को विकास की राशि का प्रावधान है. वहीं अभी तक फंड की स्थिति की बात करें तो डेढ़ साल में 18-20 लाख की राशि राज्य के द्वारा दी गयी है.
क्या कहते हैं जिला पर्षद के नुमाइंदे? 
जिला पर्षद सदस्य विजय शंकर सिंह
बिहार प्रदेश जिला पर्षद संघ के सदस्य पटना के बाढ़ पूर्वी जिला पर्षद सदस्य विजय शंकर सिंह कहते हैं कि पहले नियमों के मुताबिक 50 फीसदी पंचायत को, 30 प्रतिशत पंचायत समिति और 20 प्रतिशत जिला पर्षद सदस्य को मिलता था. केंद्र सरकार ने 14 वें वित्त अायोग के तहत पंचायतों के अलावा दो अन्य बॉडी को राशि बंद कर दिया. केंद्र सरकार ने कम किया तो बिहार सरकार को ज्यादा देना चाहिए था लेकिन हमें कुछ नहीं दिया गया. अब हम पब्लिक के बीच जाने में भी शर्मिंदगी महसूस कर रहे हैं. क्योंकि ना तो हमें योजनाओं के चयन का अधिकार है और ना ही हम कोई निश्चित राशि ही मिल रही है. केंद्र और राज्य सरकार पंचायती राज अधिनियम का पालन करे.
क्या-क्या मांग है?
-सरकार ग्राम पंचायत में योजना चयन का अधिकार जिला पर्षद और पंचायत समिति को भी दे.
-ग्रामसभा में जिला पर्षद की भूमिका हो. एक ही तिथि में सभी जगह ग्रामसभा नहीं हो और सभी जगह हमें बुलाया जाये.
-जिला पर्षद और पंचायत समिति के अधिकार को बढ़ाये और फोकस रेवेन्यू पर हो.
-14 वें वित्त अायोग के बरक्स एक नया अायोग बनाकर फंड की व्यवस्था की जाये.
-29 विभाग हैं जिला पर्षद के अंतर्गत लेकिन एक भी उपस्थित का अनुपालन नहीं. इसका पालन हो
-मनरेगा की क्रियान्वयन एजेंसी जिला पर्षद और पंचायत समिति को बनाया जाये.
पंचायती राज मंत्री कपिलदेव कामत
कहते हैं पंचायती राज मंत्री: फरवरी में जिला पार्षदों और पंचायत समिति को मिलेगा फंड
पंचायती राज मंत्री कपिलदेव कामत कहते हैं कि 14 वें वित्त की राशि भारत सरकार ने केवल पंचायत को ही दिया है. बिहार सरकार द्वारा पंचम वित्त आयोग का पैसा सभी जिला पार्षदों और पंचायत समिति को दिया गया. लेकिन मुख्यमंत्री जी का कहना था कि पंचायत समिति और जिला पार्षदों को फंड बढ़ाया जाये. मुख्यमंत्री के व्यस्त होने के कारण बैठक नहीं हो रही और निर्णय भी नहीं हो रहा है. पंचायत समिति और जिला पार्षदों का फंड बढ़ाया जायेगा. फरवरी में बैठक में कुछ नये फैसले होंगे और उसी में नये फंड की व्यवस्था की जायेगी. अधिकार को भी नये रूप में परिभाषित किया जायेगा.
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बिहार में कुल 8406 पंचायत समिति सदस्य
बिहार में कुल 1175 जिला पर्षद सदस्य


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