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प्रतीकात्मक: FILE IMAGE |
-तय मानक से ज्यादा शोर पब्लिक हेल्थ के लिए बढ़ी परेशानी
-इसी सप्ताह के आंकड़े कह रहे हमें चेतना होगा
पटना.
राजधानी से साइलेंट जोन गायब हैं. ध्वनि प्रदूषण के नाम पर जिन इलाकों को साइलेंट जोन घोषित किए जाते हैं, वहां भी कर्कश शोर सुनने को मिल जाता है. अस्पताल हों या शैक्षणिक क्षेत्र अथवा दूसरे इलाके यहां वाहनों का शोर पसरा रहता है. साइलेंट जोन में डिस्पले तक नहीं लगाए गए हैं. इस दिशा में स्स्थानीय प्रशासन ने औपचारिक पहल भी नहीं की है. फिलहाल जब हमने साइलेंट जोन घोषित इलाकों में पड़ताल की तो पता चला कि यहां पर ध्वनि प्रदूषण मानक 40-50 डेसीबल से डेढ़ से दो गुणा अधिक है. प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मुताबिक साइलेंस जोन में 40 से 50 डेसिबल (डीबी) ध्वनि को सामान्य माना जाता है लेकिन साइलेंट जोन वाले जगहों पर यह 90 तक पाया गया है. इन इलाकों में पीएमसीएच, अशोक राजपथ,आईजीआईएमएस आदि स्स्थान हैं. इनकम टेक्स गोलंबर से लेकर नया सचिवालय के इलाके में भी मानक से अधिक ध्वनि प्रदूषण पाया गया. पर्यावरणविदों के मुताबिक 80 डीबी या इससे अधिक आवाज़ शारीरिक दर्द का कारण और स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होती है. साइलेंट जोन मेें अस्पताल, स्कूल, वृद्धाश्रम, मानसिक आरोग्यशाला, सरकारी विभागों के दफ्तर और कोर्ट आदि से गुजरने वाली सड़कें शामिल होती हैं.
बिहार पॉल्यूशन बोर्ड कर रहा है आंकड़ों का संग्रह
बिहार स्टेट पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड की ओर से पीएमसीएच, बेल्ट्रॉन भवन के पास, इंडस्ट्रियल एरिया में कोका कोला के पास, तारामंडल परिसर, आइजीआइएमएस परिसर में ध्वनि प्रदूषण को नापने वाले यंत्र लगे हैं. इसके अध्ययन से ध्वनि प्रदूषण का डाटा संग्रहित भी किया जा रहा है. तारामंडल के पास इसी सप्ताह ध्वनि प्रदूषण 80 डेसिबल से ऊपर रिकाॅर्ड किया गया है. वहीं पीएमसीएच और आइजीआइएमएस में 100 डेसिबल तक का डाटा सामने आया है. जबकि साइलेंस जोन में दिन में 50 डेसिबल और रात में 40 डेसिबल ध्वनि का स्तर होना चाहिए.
पेड़ कम करते हैं प्रदूषण स्तर लेकिन लगातार पेड़ काटे जा रहे
तरुमित्र के फादर राबर्ट बताते हैं कि राजधानी में ध्वनि प्रदूषण की बहुत एलार्मिंग स्थिति है. प्रेशर हॉर्न पर बैन है पर बजते सुन सकते हैं.धड़ल्ले से पेड़ काटे जा रहे हैं. इससे ध्वनि प्रदूषण भी तेजी से बढ़ रहा है. पेड़ों की पत्तियां ध्वनि को एब्जॉर्ब कर लेती हैं इसलिए पेड़ नहीं रहने से ध्वनि का असर शरीर पर पड़ता है.
क्या होता है नुकसान?
ध्वनि प्रदूषण पर अध्ययन करने वाले पर्यावरण कर्मी फैयाज इकबाल कहते हैं कि उच्च स्तर का ध्वनि प्रदूषण कई स्तर पर नुकसान करता है. यह सबसे ज्यादा चिड़चिड़ापन लाता है, विशेष रूप से रोगियों, वृद्धों और गर्भवती गर्भवती महिलाओं व्यवहार में बदलाव लाता है. पृथ्वी पर जीने के लिए शोर का नहीं शांति का होना जरूरी है. बेवजह शोर मनुष्यों के साथ जानवरों और पेड़ पौधों के भी जीवन को प्रभावित करता है. पर्यावरण में अत्यधिक शोर की मात्रा जीने के उद्देश्य से असुरक्षित है.
क्या कहती है ध्वनि प्रदूषण की मानक स्थिति?
कैटरगी :एरिया :दिन :रात : कितना मापा जा रहा
ए- इंडस्ट्रियल 75 70 100-125
बी-कॉमर्शियल 65 55 70-90
सी-रेसीडेंशियल 55 45 60-90
डी-साइलेंस 50 40 60-90
नोट-डेसिबल में सभी आंकड़े प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और एक निजी एजेंसी के अनुसार
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