बिहार की भूमि इतनी पवित्र कि आस्था की चुटकी से बन गया 84 बीघे का पद्म सरोवर

 -श्रद्धा का अद्भुत नमूना है पावापुरी का जल मंदिर
पावापुरी। अनिल उपाध्याय
आस्था की एक-एक चुटकी से क्या एक बड़ा तालाब बन सकता है? इस सवाल का जवाब हां है. बिहार के नालंदा जिले के पावापुरी में 84 बीघे का तालाब आस्था और श्रद्धा का अद्भुत नमूना है. जैन धर्म के चौबीसवें तीर्थंकर भगवान महावीर की निर्वाण भूमि पावापुरी जैन धर्मावलंबियों का आस्था का केंद्र है. यहां का जल मंदिर भी आकर्षण का केंद्र है जिसके चारों ओर करीब 84 बीघे में तालाब है. करीब 500 वर्ष ईसा पूर्व जब भगवान महावीर का यहां दाह संस्कार हुआ तो उनकी चिता की राख एकत्र करने के लिए बड़ी संख्या में अनुयायी जुटने लगे. इससे धीरे-धीरे उनकी चिता के चारों ओर बड़ा सा तालाब बन गया और आज इसी तालाब के बीच में जलमंदिर स्थित है.

हर साल दीपावली के अगले दिन यहां भगवान महावीर का निर्वाण दिवस मनाया जाता है. इस मौके पर यहां भगवान महावीर की विशेष पूजा की जाती है. इस मौके की एक खास परंपरा यह है कि लड्डू चढ़ाने के लिए श्वेतांबर और दिगंबर जैन श्रद्धालुओं के बीच अलग-अलग बोली लगती है.
मछलियों का नहीं होता है शिकार, दिया जाता है कफन

इस तालाब की मछलियों का शिकार नहीं किया जाता. सबसे रोचक बात यह कि मछलियों की प्राकृतिक मौत के बाद यदि मंदिर प्रबंधन की उन पर नजर जाती है तो उनका ‘अंतिम संस्कार’ किया जाता है. पावापुरी स्थित जैन श्वेतांबर मंदिर के प्रबंधक गीतम मिश्र बताते हैं, ‘ऐसी मछलियां मिलने पर हम जमीन खोदकर उसमें पहले नमक डालते हैं और फिर उस पर मरी मछलियां डालकर उसे कपड़े से ढंक दिया जाता है. बाद में गड्ढे को फिर से मिट्टी से भर दिया जाता है.’

गीतम मिश्र का कहना है कि ऐसा जैन धर्म की इस मान्यता के मुताबिक किया जाता है कि मछली भी इंसान की तरह ही एक जीव है. उसकी आत्मा की शांति के लिए ऐसा किया जाता है. मंदिर प्रबंधन द्वारा पिछली बार बीते साल सितंबर में ऐसा किया गया था. तब लगभग दर्जन भर मछलियों को दफनाया गया था. करीब 10 साल पहले इस तालाब की खुदाई कराई गई थी. इसके कुछ वर्षों बाद बड़ी संख्या में मछलियों की मौत हुई थी.

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