रविशंकर उपाध्याय, पटना
तकरीबन हर साल बाढ़ का संकट झेलने वाले बिहार का भू जल निरंतर प्रदूषित हो रहा है. केंद्रीय भूजल बोर्ड की हालिया रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश के भू जल में फ्लोराइड, आर्सेनिक, नाइट्रेट और आयरन की मात्रा तय मानकों से ज्यादा है. ये वे तत्व हैं जिनकी अधिकतम मात्रा पानी को न पीने योग्य बना देती है. इसके लगातार सेवन से मानव स्वास्थ्य बुरी तरह प्रभावित होता है.
सीवरेज और रासायनिक उर्वरक हैं जिम्मेवार
शहरी क्षेत्र में सीवरेज और ग्रामीण क्षेत्रों में पानी के प्रदूषित होने की वजह रसायनिक उर्वरक जिम्मेवार हैं. शहर से निकलने वाला गंदा पानी भी सीधे गंगा और दूसरी नदियां में गिराया जा रहा है, ये भी भूजल को प्रदूषित कर रहा है. वहीं पैदावार में वृद्धि के लिए किसानों द्वारा रासायनिक पदार्थ का अंधाधुंध उपयोग किया जा रहा है. यूरिया में निहित नाइट्रेट, नाइट्राइट सहित अन्य हानिकारक तत्व जमीन के नीचे चले जाते हैं जो पानी को प्रदूषित कर रहे हैं.
क्या कहती है रिपोर्ट?
फ्लोराइड (1.5 एमजी प्रति लीटर से अधिक) : औरंगाबाद, बांका, भागलपुर, गया, जमुई, कैमूर, मुंगेर, नवादा, रोहतास, शेखपुरा, नालंदा, लखीसराय
नाइट्रेट (45 एमजी प्रति लीटर से अधिक): औरंगाबाद, बांका, भागलपुर, भोजपुर, दरभंगा, कैमूर, पटना, रोहतास, सारण, सीवान
आर्सेनिक (0.05 एमजी प्रति लीटर से अधिक): बेगूसराय, भागलपुर, भोजपुर, बक्सर, दरभंगा, कटिहार, खगड़िया, किशनगंज, लखीसराय, मुंगेर, पटना, पूर्णिया, समस्तीपुर, सारण और वैशाली
आयरन (एक एमजी प्रति लीटर से अधिक): औरंगाबाद, बेगूसराय, भोजपुर, बक्सर, पूर्वी चंपारण, गोपालगंज, कटिहार, खगड़िया, किशनगंज, लखीसराय, मधेपुरा, मुजफ्फरपुर, नवादा, रोहतास, सहरसा, समस्तीपुर, सीवान, सुपौल, पश्चिमी चंपारण
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मानव शरीर पर असर:
फ्लोराइड : दांत का झड़ना, हड्डी टेढ़ा होना.
आर्सेनिक : किडनी और लिवर खराब होना, खाना नहीं पचना, स्किन कैंसर, थकान महसूस होना.
नाइट्रेट : इसका सर्वाधिक असर नवजात बच्चों पर होता है, बच्चे का शरीर नीला पड़ जाता है.
आयरन : पेट की गड़बड़ी, उल्टी व दस्त.
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क्या कहते हैं विशेषज्ञ?
जल प्रदूषित होने से टायफाइड, पेट का संक्रमण, हाइपरटेंशन, पेंट की गड़बड़ी, जॉडिंस, सिरदर्द जैसी बीमारियां बढ़ रही हैं. पानी का इस्तेमाल करने से पहले उसे उबाल लें या फिल्टर जरूर कर लें।
- डॉ. अभिजीत सिंह, फिजिशयन सह इमरजेंसी इंचार्ज, पीएमसीएच
पहले ग्राउंड वाटर को शुद्ध माना जाता था लेकिन प्रदूषण के कारण जिले का तीन चौथाई जल प्रभावित हो गया है. जहां ज्यादा गहराई से पानी निकाला जा रहा है, वहां भी पानी में प्रदूषण है. इससे बचाव के लिए वर्षा जल संचयन किया जाना चाहिए. जिन इलाकों में प्रदूषण है, वहां शैलो ट्यूबेल का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए.
-मुन्ना कुमार झा, पर्यावरण कर्मी
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