शुकराना समारोह: टेंट सिटी में पंजाब-हरियाणा से लेकर यूके के श्रद्धालु छका रहे लंगर


-सुबह में चाय के साथ पकौड़े, दिन में सरसों दा साग और मक्के दी रोटी, शाम में भी अमृतसरी कुलचा और भाजी
-आमलोग भी छक रहे हैं लंगर, लंगर चलाने के लिए आये देश-विदेश से आये 2500 श्रद्धालु
पटना सिटी से रविशंकर उपाध्याय

सुबह में चाय के साथ पकौड़े का नाश्ता, सुबह में में सरसों का साग और मक्के की रोटी का नाश्ता, लंच में पूरी-पुलाव और शाम में मटर पनीर के साथ घी में सनी रोटी. कुछ इसी प्रकार का मेनू है बाइपास की टेंट सिटी के लंगर का. यही नहीं आपको खाने के बाद मीठे में खीर के साथ ही देसी जलेबी, लड्डू, शकरपारा और बेसन की मठरी भी मिलेगी. पंजाब के आनंदपुर साहिब और अमृतसर का स्पेशलिस्ट लंगर सभी के लिए बाइपास टेंट सिटी लंगर में सेवा दे रहे हैं. वहां से 200 सेवादार खानसामे पटना आकर किचेन बना चुके हैं, आनंदपुर साहिब से लंगर में इस्तेमाल होने वाले बर्तन आये हैं और बिहार की सामग्री का इस्तेमाल हो रहा है. 15 दिसंबर से लगातार चल रहे लंगर में 26 दिसंबर तक आप छक सकेंगे. लंगर के इंचार्ज बाबा हरभजन सिंह पहलवान ने बताया कि लंगर सेवा आनंद पुर साहिब की ओर से पूरी जिम्मेदारी उठायी गयी है. सारा समन्वय किया गया है और अभी पंजाब-हरियाणा के सभी जिलों से लेकर यूके-ब्रिटेन, अफ्रीका और कनाडा तक के श्रद्धालु लंगर में सेवा के लिए पहुंचे हैं. संत बाबा लाभ सिंह जी और भाई साहिब मोहिंदर सिंह जी भी की प्रेरणा से यह लंगर संचालित किया जा रहा है.

2500 लोग आए हैं लंगर की सेवा करने
लंगर की सेवा करने के लिए पंजाब के विभिन्न इलाकों से कुल 2500 से ज्यादा लोग गांधी मैदान में लंगर की सेवा करने के लिए पहुंचें हैं. ये किसान हैं, ड्राइवर हैं, कुछ छोटे-बड़े व्यवसायी तो कुछ पढ़ाई करने वाले नौजवान. यहां 20 दिसंबर की शाम तक विदेश से लगभग 350 सेवादार पहुंच गये हैं. इनमें से कोई रोटियां बना रहे हैं तो कोई बर्तनों की सफाई कर रहे हैं. कोई रोटियां परोसने में जुटे हैं तो कोई पानी की बेहतर व्यवस्था में लगे हुए हैं.

4000 लोग एक बार में छक सकते हैं लंगर
बाइपास के लंगर में एक बार में 4000 लोग लंगर छक सकते हैं. एक दिन में एक से डेढ़ लाख श्रद्धालु लंगर का लाभ ले सकते हैं. लंगर की देखरेख करने वाले इंद्रजीत सिंह ने बताया कि यहां पर 24 घंटे लंगर की सेवा है. जो भी लोग आ रहे हैं उनके लिए सभी जरूरी सुविधाएं सेवाभाव से मुहैया करायी जा रही है. दर्जनों लौह चूल्हा बनाया गया है जिस पर रोटियां सेंकी जा रही है और दर्जन भर से ज्यादा तंदूर भी बने हैं उस पर तंदूरी रोटियां बनायी जा रही है. सफाई की व्यवस्था भी मुकम्मल हैं कुल पांच चरणों से होकर बर्तनों की सफाई हो रही है. कुल सेवादारों में 40 फीसदी से ज्यादा महिलाएं सेवादार यहां अपनी सेवा दे रही हैं.
मेनू:
सुबह: चाय के साथ पकौड़े
नाश्ता: सरसों दा साग और मक्के दी रोटी
भोजन: रोटियां-पुलाव, छोले और आलू पनीर
शाम: अमृतसरी कुलचा और भाजी
नोट: इसके अलावा समय समय पर मेनू में बदलाव किये जा रहे हैं.

बॉक्स- गुरु नानक देव जी को पिता ने दिये थे 20 रुपये, उसी पैसे से अबतक चल रहे लंगर
सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव के प्रमुख संदेश 'भूखों को भोजन' का पालन हर गुरुद्वारे में किया जाता है और वहां लंगर का आयोजन होता है. लंगर के पीछे का इतिहास भी बेहद दिलचस्प है. कहते हैं पिता द्वारा राशन लाने के लिए 550 साल पहले 20 रुपये दिये थे, उस पैसे से गुरु नानक देव ने संतों को भोजन करा दिया था, उसी की याद में लंगर का आयोजन आज तक होता है. इसमें कोई भी भूखा व्यक्ति गुरु का प्रसाद ग्रहण कर भूख मिटा सकता है. इंद्रजीत सिंह बताते हैं कि गुरु नानक देव के पिता ने एक दिन घर में सौदा (राशन) लाने के लिए बालक गुरु नानक देव को पैसे दिये थे. वे घर से निकले तो राह में कुछ भूखे लोग और संत दिखाई दिये. गुरु नानक देव ने उसी पैसों से सभी भूखों को भोजन करवा दिया और खाली हाथ घर लौट आए. इस पर पिता ने बालक गुरु नानक देव को खूब डांटा था. गुरु की दी गई सीख भूखों को भोजन कराने का पालन आज भी लंगर के रूप में देश के सभी गुरुद्वारों में किया जाता है. गुरु नानक देव के पुत्र गुरु अंगद देव जी ने खडुर साहिब में पहला अटूट लंगर चलाया. जहां पर हर एक जाति का बिना किसी भेदभाव और संकोच से एक पंक्ति में बैठकर लंगर खा सकता था. असली रूप में उन्होंने जात पात और छुआ-छूत के भेद को मिटा दिया. गुरु अंगद साहिब के नेतृत्व में ही लंगर की व्यवस्था का व्यापक प्रचार हुआ.

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