शरद ऋतु आयी लेकिन बिहार में नहीं आये विदेशी परिंदे



-शरद ऋतु आयी लेकिन बड़ी संख्या में नहीं आये विदेशी परिंदे
-राज्य के जलाशयों में अभी तक नहीं हुई विदेशी परिंदो की आमद
पटना.

जानि शरद ऋतु खंजन आए, पाइ समय जिमि सुकृत सुहाए. अर्थात शरद ऋतु जानकर खंजन पक्षी(यानी विदेशी परिंदे) आ गए, जैसे समय पाकर पुण्य प्रकट हो जाते हैं. गोस्वामी तुलसीदास जी रामचरितमानस में शरद ऋतु के उज्जवल रूप को देखकर कुछ इसी प्रकार वर्णन करते हैं. इसके बाद उन्होंने श्री राम के मुख से कहलाया कि बरखा विगत शरद ऋतु आई, लछिमन देखहु परम सुहाई. यानी शरद की पहचान ही हमारे देश में दुनिया के विभिन्न हिस्सों से आने वाले परिंदों की आमद रही है. इस मौसम में प्रदेश के विभिन्न शहरों और गांवों की झीलों, नदियों, पक्षी अभयारण्य और चिड़िया घरों में प्रवासी पक्षी अपना बसेरा बना लेते हैं और ये बसंत पंचमी यानी फरवरी-मार्च तक यहां से वापस अपने देश या फिर इससे आगे चले जाते हैं. हालांकि इस दफे यह सिलसिला धीमा पड़ा हुआ है. पक्षी विज्ञानियों के मुताबिक मौसम में आये परिवर्तन की वजह से ऐसा हुआ है. दानापुर के बिहार रेजिमेंट स्थित जलाशय में गर्मियों में आने वाले पक्षी तो आये लेकिन सर्दियों में आने वाले परिंदे अभी नहीं आ सके हैं. वहीं जंदाहा, वैशाली और पटना के ही पंडारक के साथ बेगूसराय के कांवर झील में अभी इनकी आमद शुरू नहीं हो सकी है.

प्रवास पर आते हैं विदेशी परिंदे
पक्षियों के द्वारा किसी विशेष मौसम में भौगोलिक बदलाव को प्रवासन नाम दिया गया है. हिंदी में इसे प्रवास कहा जाता है. प्रवास का अर्थ है, यात्रा पर जाना या दूसरे स्थान पर जाना लेकिन उनका यह प्रवास केवल अपने देश में सीमित नहीं होता, बल्कि दूर-दूर के देशों तक होता है, जहां भी इन्हें अपने अनुकूल मौसम और भोजन मिल जाए. इसी क्रम में ये यहां पहुंचते हैं. कई पक्षी तो ऐसे हैं, जो कई माह का सफर तय कर दूसरे देश पहुंचते हैं.
ठंड में आने वाले विदेशी पक्षी-
साइबेरियन क्रेन, लालसर, अधंगा, चाहा, खंजन, फुदकी, चील-बाज आदि
बिहार में किन किन जगहों पर आते हैं प्रवासी पक्षी?
-कांवर झील, बेगूसराय
-कुशेश्वर स्थान, दरभंगा
-बरैला झील, जंदाहा, वैशाली
-गोगाबिल झील, कटिहार
-नाड़ी नकटी झील, जमुई
-जनकपुर झील, भागलपुर
-जलमंदिर जलाशय, पावापुरी, नालंदा
-दानापुर बीआरसी जलाशय, पटना
-पंडारक, पटना


कहां से आते हैं ये पक्षी?
जहां साइबेरियन क्रेन लगभग 10,000 किलोमीटर का सफर तय करके रूस के निकट साइबेरिया से पहुंचते हैं और भारत में आकर सर्दियां गुजारते हैं. इसके अलावा चीन और कजाकिस्तान से भी पक्षी आते हैं. 2,000 से 5,000 किलोमीटर की दूरी तो ये आसानी से उड़कर पार कर लेते हैं, हालांकि इसमें इन्हें काफी समय लगता है. इनमें खंजन और गेहवाला जैसी छोटी चिड़िया और छोटे-छोटे परिंदे भी सम्मिलित हैं. भारत का सुप्रसिद्ध पक्षी राजहंस भारत में सर्दियां गुजारता है और तिब्बत जाकर मानसरोवर झील के किनारे अंडा देता है.
झुंड बना करते हैं प्रवास
पक्षियों में एक हैरत में डालने वाली बात ये है कि जब ये सभी प्रवास के लिए निकलते हैं तो अकेले नहीं, बल्कि हजारों की संख्या में दल बनाकर जाते हैं. साइबेरियन क्रेन, ग्रेट फ्लेमिंगो, रफ जैसे काफी पक्षी माइग्रेटिंग के दौरान काफी ऊंची उड़ान भरते हैं। ये तभी प्रवास पर जाते हैं, जब इन्हें लगता है कि इनके पास इतना फैट है, जो इनकी यात्रा के दौरान साथ देगा.
बेहतर माहौल के कारण आते हैं बिहार
पक्षी विज्ञानी केके हिमांशु बताते हैं कि शीत ऋतु यानी जाड़े में इन प्रवासी पक्षियों के यहां बर्फ जम जाती है और ऐसी कंपकंपाने वाली ठंड के कारण इन पक्षियों का आहार बनने वाले जीव या तो मर जाते हैं या जमीन में दुबक कर शीत-निद्रा में चले जाते हैं, जिससे वे सर्दियों के समाप्त होने के बाद ही जागते हैं. ऐसी स्थिति में इन पक्षियों के लिए आहार ढूंढना और जिंदा रहना मुश्किल हो जाता है. इसलिए वे भारत के विभिन्न प्रदेशों में चले आते हैं, जहां बर्फ नहीं जमती और उन्हें आहार भी अच्छे से मिल जाता है.

क्या कहते हैं बर्ड एक्सपर्ट?
बर्ड एक्सपर्ट अरविंद मिश्रा कहते हैं कि पक्षियों की संख्या सामान्यत: घट रही है इस कारण कई इलाकों में नहीं आ सके हैं. पटना के दानापुर का मसला अलग है क्योंकि वहां आने वाले पक्षी अब जहानाबाद को विकल्प के तौर पर चुनने लगे हैं. नालंदा के पावापुरी में उन्हें काफी बेहतर माहौल मिलता है, जहां अब वे आना शुरू करेंगे. बेगूसराय के कांवर झील में भी उनके आने की खबरें मिल रही है. इसी सप्ताह वे इन इलाके का दौरा करेंगे तो कुछ और तथ्य निकल कर सामने आयेंगे.
मौसम विज्ञानी कहते हैं कि वेस्टर्न डिस्टर्वेंस देर से आने के कारण दिक्कत
विदेशी पक्षियों के माइग्रेशन का पूरा सिलसिला मौसम से जुड़ा हुआ है. जब उनके यहां गर्मी शुरू होती है तो हमारे यहां पक्षियों का आगमन शुरू होता है. तापमान में काफी कमी होने पर वे पक्षी यहां आते हैं. बुनियादी कारण तो यह है कि वेस्टर्न डिस्टर्वेंस शुरू होगा तभी ठंड आयेगी. जब वर्फ गिरेगी और उसकी हवा आयेगी तभी ठंड बढ़ेगी. पॉल्यूशन के कारण ऐसा हुआ है. प्रदूषण का लेवल अक्तूबर में सबसे ज्यादा प्रदूषण था क्योंकि हवा बहुत तेजी से नहीं बह रही है. हवाएं तेज चलेगी तो प्रदूृषण घटेगा और फिर ठंड बढ़ेगी.
 -प्रधान पार्थसारथी, मौसम विज्ञान विशेषज्ञ, केंद्रीय विवि दक्षिण बिहार, पटना
प्रभात खबर में दो दिसंबर को प्रकाशित 
http://epaper.prabhatkhabar.com/1451591/PATNA-City/city#clip/24165838/f4563afc-a583-4e4c-beec-bc34d31c9fd5/1282.6666666666665:1765.8114842903576

Comments