सोनपुर मेला में पूछ रहे विदेशी सैलानी: कहां गये गजराज?


- विदेशी के साथ देसी पर्यटकों को सबसे ज्यादा हो रही है निराशा
- पर्यटक ग्राम में ठहरे विदेशियों ने जतायी चिंता, सरकार के प्रचार पर ही उठाया सवाल
सोनपुर
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दिन के एक बजे हैं. सुबह की ठंडी हवा अब गरम हो चली थी और यही गर्मी सोनपुर के पर्यटक ग्राम में जापान के टोक्यो से आयी 12 सदस्यीय टीम की लीडर हामासुना मी के चेहरे पर भी दिखाई दे रही थी. वह सभी सदस्यों के साथ मेला क्षेत्र से घूम कर लौटी तो उनके लिए इस मेले में कुछ भी नया नहीं था. भारत की आस्थावान भीड़ उन्हें आकर्षित तो करती है लेकिन उस तरह नहीं जो भौंचक कर दे. उन्हें ठेठ देसी मेले की खासियत झूले और ठेले भी नहीं लुभा रहे थे. वह तो आये थे यहां हाथियों का मेला देखने. वे आये थे यहां हाथियों के करतब देखने और उसके साथ तस्वीर क्लिक करने लेकिन पूरे मेला क्षेत्र में उन्हें कार्तिक पूर्णिमा को भी एक छोटा हाथी दिखा वह भी जाने की तैयारी कर रहा था. मेला क्षेत्र में बड़े बड़े अक्षरों में एक संदेश कई जगह लिखा हुआ है कि सोनपुर मेला क्षेत्र में हाथी की खरीद बिक्री नहीं होगी और ना ही सार्वजनिक प्रदर्शनी लगेगी.

सांस्कृतिक कार्यक्रम में आया केवल तीन हाथी
वन विभाग द्वारा आदेश के बाद सारण जिला प्रशासन द्वारा आयोजित शाही स्नान में केवल तीन हाथी लाया गया और वह भी कब आया और गया यह किसी को पता नहीं चल सका. इस बार हाथियों की सार्वजनिक प्रदर्शनी नहीं लगायी गयी. सारण के वन प्रमंडल पदाधिकारी ने हमसे कहा कि मुख्य वन्यप्राणी प्रति पालक ने इस संबंध में सख्त आदेश जारी किया है जिसमें उन्हें बताया गया है कि किसी भी पालतू हाथी को अनुमति के बाद ही केवल सांस्कृतिक प्रयोजन के लिए लाया जा सकेगा. इसके बाद भी कोई खेल प्रदर्शनी में भी हाथी का उपयोग नहीं लाया जायेगा. इसका ही हम पालन कर रहे हैं.


पक्षी बाजार भी पड़ा है सूना, लगे हैं दरवाजे
इसके साथ ही विदेशी पर्यटकों का दूसरा बड़ा आकर्षण यहां का पक्षी बाजार था. यहां एक से बढ़ कर एक पक्षी को बिक्री के लिए लाया जाता था लेकिन इस बार यहां के पक्षी बाजार की चौखट उदास है. पक्षी की बिक्री इस मेले में नहीं हो रही है. ना तो यहां पहले की तरह तोता की चटर पटर और ना ही मोर, गौरैया, मैना, साइबेरियन, पहाड़ी मैना, कोयल समेत अनेक पक्षियों की कलरव सुनाई दे रही है. वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 के तहत पक्षी बाजार को बंद कर दिया गया है और इसी के साथ यहां का आकर्षण भी गायब हो गया है.
चिड़िया बाजार थाना भी हुआ गायब
चिड़िया बाजार नहीं है तो चिड़िया बाजार थाने का क्या काम? सो उसी के साथ चीड़िया बाजार थाने का खत्म कर दिया गया है. कभी इसी बाजार के पास उस थाने का अस्तित्व होता था अब वहां पर रामनिवास का होटल चल रहा है. यहां का संचालक जयबहादुर कहता है कि कोई भी पूछने आता है कि क्या चिड़िया बाजार को क्या हुआ? क्यों बंद है? तो हम कह देते हैं कि सोमवार को खुलेगा. हमें यही कहने के लिए बताया गया है.
जब हाथियों को नहीं लाया गया तो सरकार क्यों लगा रखी है तस्वीर?
जापान की ही इशिनो काजुयूमि कहती हैं कि जब हाथियों को यहां पर नहीं लाया गया है तो यहां पर्यटक ग्राम में क्यों हाथी की तसवीर सरकार ने ही लगा रखी है. इटली के जियोवेनेयी रानेरी कहते हैं कि जब हम यहां आये तो स्वीस कॉटेज के ठीक सामने एलिफैंट की बड़ी सी तसवीर लगी देखी. हमारे टूर ऑपरेटर ने भी यही तसवीर दिखाई थी. अब जब हम यहां आये हैं तो फिर सबकुछ गायब है. कहीं पर दिखाया भी नहीं जा रहा है.
टूर गाइड भी परेशान, कहा दोबारा आने वाले विदेशी कम
टूर गाइड दिल्ली के सुरेश गिरी और पटना के विजय कुमार कहते हैं कि यह एलिफैंट फेस्टिवल के रूप में ही विदेशों में प्रचारित है. पुरानी तसवीरें देखकर पर्यटक आते हैं लेकिन जो स्थिति है उसके अनुसार रिपीट कस्टमर नहीं के बराबर आ रहे हैं. अब जापान में हाथी नहीं पाये जाते हैं तो उनके लिए इसे देखना रोमांचक अनुभव होता था लेकिन साेनपुर में अब वह दिन बीत गये है. वे जब बिहार आते थे तो बौद्ध सर्किट के साथ ही सोनपुर घूम लेते थे. अब हमें दूसरी ओर मुखातिब होना पड़ेगा.
2016 में स्वीस कॉटेज में आये थे 106 पर्यटक
पिछली बार पर्यटन विभाग द्वारा तैनात स्वीस कॉटेज में 106 पर्यटक आये थे जिसमें 75 फीसदी विदेशी थे. अभी चार दिनों में 23 विदेशी सैलानी पहुंचे हैं. जिसमें सबसे ज्यादा 16 जापान के ही हैं. इनके अलावा इटली से तीन, नीदरलैंड से दो और बाकी मुंबई के सैलानी हैं. शुरुआती दो सप्ताह में ही विदेशियों की आमद होती है उसके बाद वे नगण्य हो जाते हैं. इस बार पर्यटन विभाग के लिए पिछला आंकड़ा बरकरार रखना एक बड़ी चुनौती से कम नहीं होगी.
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Comments

  1. बढ़िया लेख ।

    विलुप्त होना एक प्रक्रिया है । प्रेरक/उत्प्रेरक , ऐतेहासिक,/तात्कालिक देखे क्या क्या कारण बनते/बचते हैं ?

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