स्वास्थ्य मंत्री जी! बिहार के 'वर्ल्ड क्लास' अस्पताल 'पीएमसीएच' में देखिये सर्द रातों का सितम: एसी के पंखे के नीचे खुले आसमान में इस तरह ठिठुरती है जिंदगी



पटना.
राज्य के सबसे बड़े अस्पताल को फाइव स्टार बनाने के दावे हम और आप तो अक्सर सुनते और देखते रहते हैं. मरीजों और उनके परिवार को सुविधाएं देने की बड़ी बड़ी बातें होती रहती है लेकिन तल्ख हकीकत यही है कि यहां इलाज कराना वाकई में जंग लड़ने के बराबर है. यदि रात बेहद सर्द हो तो फिर व्यवस्था का सितम कितना दुख देता है यह देखने के लिए जब हम देर रात यहां पहुंचे तो हमें जो दृश्य दिखाई दिये उससे यह साफ होता है कि दावे एक ओर हैं और उससे जुड़ी हकीकत दूसरी ओर. रात साढ़े दस से साढ़े ग्यारह बजे का हाल.

रात 10.30 बजे:
पीएमसीएच की इमरजेंसी के आगे जब रात ठिठुर रही थी तो यहां औरंगाबाद के गोह से आयी 80 साल की गुलबदन देवी अपने गुड़गुड़ी हुक्के की अाग से गर्मी ले रही थीं. पास में ही उनकी बहू और बेटा सोये हुए थे. गुलबदन देवी कहती हैं कि उनके पति लक्ष्मण शर्मा का जख्म दिन पर दिन नासूर हुआ जा रहा था. गया से जब रेफर कर दिया तो यहां आये हैं बेटा. लेकिन हमें का पता था कि यहां हमें इस ठंड में ठिठुरना पड़ेगा? अब कल यदि डाक्टर छुट्टी दे दिया तो चले जाएंगे. यहां रहे का कोई व्यवस्था नहीं है बाबू.

रात 10.45 बजे:
सीतामढ़ी के परिहार थाना के गामही से आये रामचंद्र साह दोपहर में आये थे. बाबूजी जानकी साह के मुंह से खून आता है. एक साल पहले भी दिखाये लेकिन फिर वही नौबत आ गयी. पीएमसीएच की व्यवस्था पता था तो साथ में वहीं से गैस सिलिंडर से लेकर अनाज भी लेते आये हैं. इमरजेंसी में भरती कराते और जांच से गुजरते हुए रात के दस बज गये तो सोचा कि खाना बना लूं. उनके साथ भाई और भतीजे भी हैं तो सभी को भूख लगी है. इसी बीच गैस जोड़ी और आलू और बैंगन की सब्जी बनाने में जुटे हुए थे. कहते हैं कि यहां आइए तो केवल डाक्टर का फीस नहीं लगेगा बाकी सारी व्यवस्था करके पहुंचिए.

रात 11 बजे:
पीएमसीएच की इमरजेंसी की एसी का एक्जास्ट फैन यहीं बाहर में लोगों को मुंह चिढ़ा रहा है. उसी पंखे के नीचे आम लोगों की जिंदगियां ठिठुर रही है. लोग अपने साथ कंबल से लेकर ओढ़ना बिछावन भी लेकर पहुंचे हैं. उम्मीद थी कि कहीं पर ठिकाना मिल जायेगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ. अंतत: इसी पंखे के नीचे खुले आसमान के नीचे ही आशियाना बना लिया. कोई कंबल ओढ़े है तो कोई ऊंघ रहा है, कोई अपनों की पुकार अंदर से आने का इंतजार कर रहा है और इन सबके बीच सरकारी व्यवस्था का सर्द रंग भी झेल रहा है .

रात 11.30 बजे:
रजिस्ट्रेशन काउंटर के ठीक नीचे पूर्वी चंपारण के मोतिहारी से आये संदीप कुमार और उनकी पत्नी थके मांदे इंतजार कर रहे हैं. अपनी दादी के हार्ट प्राब्लम के इलाज के लिए यहां पहुंचे हैं. मोतिहारी के एक प्राइवेट हास्पीटल ने रेफर कर दिया कि अब इलाज के लिए पीएमसीएच जाइए. लेकिन यहां इमरजेंसी में केवल एक आदमी को जाने की इजाजत है. अब क्या करें? यहीं पर गैस से बिछावन लेकर अपनों के संदेश का इंतजार कर रहे थे. संदीप कहते हैं कि यहां पर सोने का कोई व्यवस्था नहीं है. धर्मशाला भी रहता तो रात गुजर जाती.
प्रभात खबर 29 नवंबर के अंक में प्रकाशित मेरी रिपोर्ट
http://epaper.prabhatkhabar.com/c/24098193

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