मिसाल : देह दान कर अमर हुए नालंदा के बंगाली प्रसाद

देहदान के बाद परिवार के सदस्यों के साथ पावापुरी मेडिकल कॉलेज के अधिकारी
- मरने के बाद भी देखती रहेगी बंगाली प्रसाद सिंह की आंखें
- आइजीआइएमएस में आंख तो पावापुरी मेडिकल कॉलेज में किया देह दान
- सूबे के दूसरे देह दान के समय अस्पताल तथा परिवार के सदस्यगण थे मौजूद
पटना.

कुछ लोग जीते जी तो समाज को दिशा देने का काम करते ही हैं, मरने के बाद भी अपनी अमिट छाप छोड़ जाते हैं. ऐसा ही कुछ समाजसेवी बंगाली प्रसाद सिंह के साथ हुआ. अपने जवानी के शुरुआती दिनों में समाज सेवा का काम करने वाले पैठना गांव के स्व बंगाली प्रसाद सिंह आंख और देह दान करने के बाद मर कर भी अमर हो गये. पटना के आइजीआइएमएस में दान की गयी उनकी आंखों से दो नेत्रहीन दुनिया को देख सकेंगे वहीं शरीर नालंदा के पावापुरी मेडिकल छात्रों के लिए परीक्षण में काम आयेगा. नालंदा जिले के वेना थाना अंतर्गत पैठना गांव निवासी बंगाली प्रसाद सिंह(92) मुख्यमंत्री के सहयोगी व नालंदा के रहने वाले बंगाली प्रसाद सिंह मरने से पहले अपने परिवार के समक्ष मरणोपरांत नेत्रदान की इच्छा जताते हुए फार्म भरा था. 92 वर्ष की उम्र पूरी कर सोमवार को लंबी बीमारी के बाद उनका निधन हो गया. उनके बेटे व परिवार के अन्य सदस्यों ने उनकी मरणोपरात नेत्रदान की अंतिम इच्छा पूरी करने के लिए नालंदा डीएम से संपर्क किया, इसके बाद आईजीआईएमएस के आई बैंक व क्षेत्रीय चक्षु संस्थान के विभागाध्यक्ष डॉ विभूति प्रसाद सिन्हा की टीम पटना से गयी और नालंदा पहुंचकर उनकी आंखें लिया.
बंगाली प्रसाद चाहते थे कि शरीर समाज के काम आये
पुत्र अशोक कुमार सिन्हा ने बताया कि पिताजी चाहते थे कि जब वह दुनिया से जाएं तो शरीर समाज के काम आये. सोमवार को उनके निधन के बाद पावापुरी मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य को सूचना दी गई. इसके पहले पटना के इंदिरा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान के चिकित्सकों की टीम ने रात में ही नेत्र सुरक्षित कर लिया था. मंगलवार को पावापुरी के मेडिकल काॅलेज के एनाटॉमी विभाग को पार्थिव देह सौंप दी गई. पावापुरी मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य डाॅ जेके दास, अधीक्षक डॉ ज्ञानभूषण, डॉ अशोक कुमार सिंह, डॉ सर्फुद्दीन अहमद, डॉ अरुण आदि ने श्रद्धांजलि अर्पित की. इस दौरान उनके पुत्र अजीत प्रसाद, संजय कुमार उर्फ पप्पू भी मौजूद रहे. मेडिकल कॉलेज के एनाटमी विभाग में पार्थिव शरीर को श्रद्धांजलि अर्पित करने के बाद चिकित्सा शिक्षा के लिए रखा गया. प्राचार्य डॉ. जेके दास ने कहा कि समाज में देहदान के प्रति लोगों में जागरुकता का संचार हो रहा है, यही कारण है कि कुछ लोग जीवित रहते देहदान की इच्छा व्यक्त करते हैं जिसका सम्मान उनके परिवार वाले भी कर रहे हैं.
जानिए क्यों जरूरी है देहदान, क्या है प्रक्रिया?
मेडिकल कालेज के अधीक्षक डॉ ज्ञानभूषण बताते हैं कि ऐसे दानों से परीक्षण में मदद मिलती है. मेडिकल छात्र बीमारियां व उसके उपचार का पता लगाते हैं. शरीर की हड्डी, नस, चमड़ी, मांस, नाक, कान, किडनी, हृदय व लीवर के मर्ज का पता लगाने के साथ उसका इलाज ढूंढा जाता है. नयी दवाओं का प्रयोग भी पार्थिव शरीर पर होता है. आपरेशन की नयी विधि का प्रयोग भी इस पर होता है. देहदान व नेत्रदान के लिए संबंधित व्यक्ति को मेडिकल कालेज को शपथ पत्र देना होता है. इसमें परिवार के सदस्यों की सहमति अनिवार्य है. मृत्यु की सूचना घर के सदस्यों को काॅलेज प्रशासन को देनी होती है. अगर किसी व्यक्ति ने देहदान का शपथ पत्र नहीं भरा है और उसकी ऐसा करने की अंतिम इच्छा थी तो उसका भी दान कराया जा सकता है.
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