- एक साल पहले दिया गया था आदेश आज तक नहीं हुआ अमल
- बढ़ता गया प्रदूषण लेकिन नहीं हुई ठोस कार्रवाई
पटना.
राजधानी में 15 साल से अधिक पुरानी डीजल कॉमर्शियल गाड़ियां प्रदूषण फैला रहे हैं, लेकिन उस पर कोई लगाम नहीं लग सकी. पटना कार्बन उत्सर्जन में बिहार की राजधानी तो है ही हालिया रिसर्च हमें और परेशान कर रहे हैं, जिसमें यह पता चला है कि देश के चार प्रदूषित शहरों में पटना भी शामिल है. इस शहर में प्रदेश में सबसे ज्यादा कार्बन का उत्सर्जन होता है और यही वजह है कि यहां की हवा सांस लेने के लायक नहीं है. हवा में कार्बन डाइ आक्साइड, क्लोरो फ्लोरो कार्बन और नाइट्रोजन डाई आॅक्साइड इस तरह घुले हुए हैं कि हमें साल भर में केवल एक महीने जुलाई में शुद्ध हवा मिल सकी थी. इसके बाद भी आज तक नतीजा सिफर है, प्रशासन की ओर से कोई प्रयास देखने को नहीं मिल रहे हैं.
जून 2016 में जारी किया गया था आदेश
सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड के मुताबिक खराब गुणवत्ता के मामले में पटना की हवा देश में चौथे नंबर पर सबसे ज्यादा प्रदूषित है. इसे रोकने के लिए जून 2016 में सरकार द्वारा यह आदेश जारी किया गया था कि 15 साल पुरानी डीजल की कॉमर्शियल गाड़ियां राजधानी में नहीं चलेंगी. अगर ऐसे वाहन चलेंगे, तो उनको जब्त कर लिया जायेगा. अभियान के दौरान सभी तरह के वाहनों के परमिट की जांच होनी थी. 15 साल से पुरानी कॉमर्शियल गाड़ियों का परमिट स्वत: रद्द माना जाना था लेकिन सारी कार्रवाई उस वक्त थोड़े दिनों में ही सिमट कर रह गयी. जून में ही इसकी जांच के लिए चार टीमें बनी थी. ये टीमें कारगिल चौक, हड़ताली मोड़, सगुना मोड़ व गायघाट चौक पर थोड़े दिनों तक जांच की थी. हर टीम में एक मजिस्ट्रेट, एक ट्रैफिक पुलिस, एक इन्फोर्समेंट ऑफिसर व एक पुलिस अधिकारी को रहना था लेकिन रस्मी कार्रवाई ही राजधानी के हिस्से आयी.
अध्ययन : प्रदूषण फैलाने वाली गाड़ियों के कारण ही फैलता है सबसे ज्यादा प्रदूषण
प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का अध्ययन कहता है कि सबसे ज्यादा प्रदूषण गाड़ियों के कारण ही यहां की हवा जहरीली है. 20 फीसदी प्रदूषण का कारण ट्रांसपोर्ट है. ईंट-भट्ठे और घरेलू ईंधन भी 20-20 फीसदी प्रदूषण फैलाता है. खुले में कचरा जलाने से 14 फीसदी प्रदूषण फैलता है. इसके अलावा निर्माण क्षेत्र में 9 फीसदी, रोड के धूल से 7 फीसदी, जेनरेटर सेट से 5 फीसदी और कंस्ट्रक्शन में 3 फीसदी प्रदूषण फैलता है.
कनफोड़ू आवाज से भी परेशान है राजधानी
इसके साथ ही पटना में प्रेशर हॉर्न का प्रेशर बढ़ रहा है. यहां के व्यस्त चौराहे से लेकर रिहायशी इलाकों तक वाहनों में लगे कनफोडू प्रेशर हाॅर्न ना केवल प्रदूषण फैला रहे हैं बल्कि इसके कारण बीमारियां भी पनप रही है. विशेषज्ञों का कहना है कि हमारे कानों के लिए 85 डेसिबल तक अधिकतम सेफ लिमिट है. जबकि पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड की गाइड लाइंस के मुताबिक शहर में 12 से 13 गुना ज्यादा शोर है. गाइड लाइंस में कहा गया है कि रेजिडेंशियल एरिया में दिन में 55 डेसिबल और रात में 45 डेसिबल तक शोर होना चाहिए लेकिन 75 से 83 डेसिबल के बीच प्रदूषण दर्ज हो रहा है. परिवहन और यातायात विभाग के साथ ही प्रशासन द्वारा प्रेशर हॉर्न पर कार्रवाई नहीं होने से इसकी तादाद लगातार बढ़ रही है. एक साल से ज्यादा समय पर परिवहन विभाग और ट्रैफिक विभाग के द्वारा प्रेशर हॉर्न को लेकर कोई भी कार्रवाई नहीं की गयी है.
तेज आवाज का पड़ता है बुरा असर
डाक्टरों के अनुसार तेज आवाज वजह से इरिटेशन होने लगती है. अचानक तेज आवाज की वजह से हार्ट के मरीजों का हार्ट फेल हो सकता है. ब्लड प्रेशर बढ़ सकता है. इसके साथ ही मानसिक संतुलन खराब हो सकता है. यही नहीं प्रीमेच्योर डिलीवरी हो सकती है और बहरेपन की भी बीमारी हो सकती है.
क्या कहते हैं अधिकारी?
आरटीए केवल फिटनेस के कागज पर करता है भरोसा
इधर क्षेत्रीय परिवहन प्राधिकार केवल फिटनेस के कागजों पर ही भरोसा कर रहा है. क्षेत्रीय परिवहन प्राधिकार के सचिव सुशील कुमार कहते हैं कि हाइकोर्ट के आदेश के बाद हमलोग फिटनेस वाला कागजात ही चेक कर रहे हैं. इसमें जो गाड़ियां फिट है उसे फिट माना जा रहा है. इसी वजह से पुरानी गाड़ियां नहीं हटायी गयी. जब हमने पूछा कि जो गाड़ियां धुआं उगल रही है उसे देखकर क्यों नहीं कार्रवाई की जा रही है तो उनका कहना था कि हम तो कागजों पर ही भरोसा करेंगे. हम एक एक गाड़ी को चेक नहीं कर सकते है.
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