-सोनपुर मेला का इतिहास दोहराना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन
सोनपुर.
एक जमाने में जंगी हाथियों के सबसे बड़े केंद्र सोनपुर मेले में 50 लाख रुपये में एक हाथी बिका था और 5 लाख रुपये में एक गाय भी बिकी जो 35 लीटर दूध देती थी. सोनपुर मेले का इतिहास उतना ही भव्य है जितनी इसकी बारे में सुनी जाने वाली कहानियां. कहानियां जिसमें कही जाती थी कि बिहार का सोनपुर मेला ऐसी जगह है जहां एक वक्त में सबकुछ बिकता था! हाथियां जो अब केवल तस्वीरों में बचे हुए हैं उसकी खरीदी यहां बड़े पैमाने पर होती थी. ऐतिहासिक तथ्य है कि मौर्य वंश के संस्थापक चंद्रगुप्त, मुगल सम्राट अकबर और 1857 के गदर के बिहारी नायक वीर बाबू कुंवर सिंह ने भी हाथी खरीदे थे. 1803 ई में गवर्नर रहे रॉबर्ड क्लाइव ने तो सोनपुर में घोड़े के लिए बड़ा अस्तबल भी बनवाया था.
2004 में 354 हाथियों से सजा था मेला
2004 में 345 हाथियों का बाजार इस मेला की शान हुआ करता था. मेले की बंदाेबस्ती लेनेवाले स्थानीय नवीन कुमार सिंह कहते हैं कि उसी मेले में 50 लाख रुपये में एक हाथी बिका था. यह एक रिकॉर्ड था जो अभी भी बरकरार है. अब तो हाथी का आना भी बंद हो गया लेकिन यह अाधिकारिक तौर पर सबसे ज्यादा महंगे जानवरी की बिक्री के रूप में निबंधित है. 2015 में 17 और 2016 में 13 हाथी यहां बिक्री के लिए आये थे. हालांकि वह रिकार्ड अबतक नहीं टूट सका. 2010 में ही मेले में 50 लाख रुपये की गाय बिकी थी जो भी एक रिकॉर्ड है. उस वक्त यहां देश के विभिन्न हिस्सों से गाय आती थी. हरियाणा से आयी एक जर्सी गाय इस मेले की शान थी जो पांच लाख रुपये में बिकी थी. पांच लाख रुपये वाली वह गाय 35 किलो दूध के लिए थी.
कानून और सामाजिक द्वंद्व में प्रभावित हो गया गाय का बाजार
अब कानून और सामाजिक वैमनस्यता की मार के कारण गायों का बाजार सिमट कर रह गया है. इनकी संख्या इतनी घटी है कि लोगों को बाजार देखकर हैरत होती है. स्थानीय कौशल किशोर सिंह बताते हैं कि अब संकट इस मेले पर जूझ रहा है क्योंकि पशुओं के खरीददार घटे हैं. सोनपुर मेले से जुड़ी एक पुरानी कहानी को उद्धृत करते हुए वे कहते हैं कि अतीत में अक्सर जब इस मेले के ऊपर किसी तरह का संकट आया है तब उस दौर के राजे-रजवाड़ों ने इसे सहारा देकर इसकी अर्थव्यवस्था को गतिमान बनाए रखने में योगदान दिया है. एक बार मौर्य सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य ने इस मेले से 500 घोड़े खरीदे थेे. इसी तरह मुगल बादशाह औरंगजेब ने एक बार मेला पर छाए संकट को दूर करने के लिए यहां से दुर्लभ नस्ल वाले सफेद हाथी खरीद कर उन्हें शाही सेना में शामिल किया था. यह अजीब विडंबना है कि अब इस मेले के मूल को सरकार तहस-नहस होने से नहीं बचा रही है.
http://epaper.prabhatkhabar.com/c/23580234
सोनपुर.
एक जमाने में जंगी हाथियों के सबसे बड़े केंद्र सोनपुर मेले में 50 लाख रुपये में एक हाथी बिका था और 5 लाख रुपये में एक गाय भी बिकी जो 35 लीटर दूध देती थी. सोनपुर मेले का इतिहास उतना ही भव्य है जितनी इसकी बारे में सुनी जाने वाली कहानियां. कहानियां जिसमें कही जाती थी कि बिहार का सोनपुर मेला ऐसी जगह है जहां एक वक्त में सबकुछ बिकता था! हाथियां जो अब केवल तस्वीरों में बचे हुए हैं उसकी खरीदी यहां बड़े पैमाने पर होती थी. ऐतिहासिक तथ्य है कि मौर्य वंश के संस्थापक चंद्रगुप्त, मुगल सम्राट अकबर और 1857 के गदर के बिहारी नायक वीर बाबू कुंवर सिंह ने भी हाथी खरीदे थे. 1803 ई में गवर्नर रहे रॉबर्ड क्लाइव ने तो सोनपुर में घोड़े के लिए बड़ा अस्तबल भी बनवाया था.
2004 में 354 हाथियों से सजा था मेला
2004 में 345 हाथियों का बाजार इस मेला की शान हुआ करता था. मेले की बंदाेबस्ती लेनेवाले स्थानीय नवीन कुमार सिंह कहते हैं कि उसी मेले में 50 लाख रुपये में एक हाथी बिका था. यह एक रिकॉर्ड था जो अभी भी बरकरार है. अब तो हाथी का आना भी बंद हो गया लेकिन यह अाधिकारिक तौर पर सबसे ज्यादा महंगे जानवरी की बिक्री के रूप में निबंधित है. 2015 में 17 और 2016 में 13 हाथी यहां बिक्री के लिए आये थे. हालांकि वह रिकार्ड अबतक नहीं टूट सका. 2010 में ही मेले में 50 लाख रुपये की गाय बिकी थी जो भी एक रिकॉर्ड है. उस वक्त यहां देश के विभिन्न हिस्सों से गाय आती थी. हरियाणा से आयी एक जर्सी गाय इस मेले की शान थी जो पांच लाख रुपये में बिकी थी. पांच लाख रुपये वाली वह गाय 35 किलो दूध के लिए थी.
कानून और सामाजिक द्वंद्व में प्रभावित हो गया गाय का बाजार
अब कानून और सामाजिक वैमनस्यता की मार के कारण गायों का बाजार सिमट कर रह गया है. इनकी संख्या इतनी घटी है कि लोगों को बाजार देखकर हैरत होती है. स्थानीय कौशल किशोर सिंह बताते हैं कि अब संकट इस मेले पर जूझ रहा है क्योंकि पशुओं के खरीददार घटे हैं. सोनपुर मेले से जुड़ी एक पुरानी कहानी को उद्धृत करते हुए वे कहते हैं कि अतीत में अक्सर जब इस मेले के ऊपर किसी तरह का संकट आया है तब उस दौर के राजे-रजवाड़ों ने इसे सहारा देकर इसकी अर्थव्यवस्था को गतिमान बनाए रखने में योगदान दिया है. एक बार मौर्य सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य ने इस मेले से 500 घोड़े खरीदे थेे. इसी तरह मुगल बादशाह औरंगजेब ने एक बार मेला पर छाए संकट को दूर करने के लिए यहां से दुर्लभ नस्ल वाले सफेद हाथी खरीद कर उन्हें शाही सेना में शामिल किया था. यह अजीब विडंबना है कि अब इस मेले के मूल को सरकार तहस-नहस होने से नहीं बचा रही है.
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