---सोनपुर मेला: यादों के आइने में ---
-तब सोने चांदी की सजती थी दुकान, बनारस का पान होता था मेला की शान
-बुजुर्ग सोनपुर वासी माधवेंद्र सिंह, जो लंबे वक्त तक मेला की याद में सोनपुर मेला
सोनपुर मेला क्षेत्र। आज से 70-75 साल पहले का वक्त याद कर रहा हूं. उस समय सोनपुर मेला में राजे रजवाड़ों की धमक खास होती थी. उधर जहां आप स्टेशन देख रहे हैं ना वहां पर उनके कैंप लगते थे. कैंप क्या था पूरा महल ही होता था. भोजन, सैनिक से लेकर नृत्यांगनाएं. पूरी महफिल सजती थी. मुजरा होता था और कला के कद्रदानों की वाह वाह होती थी. इधर हरिहर नाथ मंदिर के पास पटना के मशहूर पुरानी मिठाई की दुकान मिलन, मिलाप और पिंटू होटल की शक्ल में सजी रहती थी. वहां सोना चांदी की दुकान सजती थी. बिहार के विभिन्न रियासतों के राजा महाराजा अपनी रानियों संग आते थे, शाही स्नान में शामिल होते थे और उसके बाद सोने की दुकानों में खरीददारी करते थे. उनके कारण मेले की बड़ी शोहरत थी.
आजादी मिली तो भी उसमें कोई फर्क नहीं आया. विदेशी पर्यटक तब भी आते थे, भले आज जैसी सहूलियतें उन्हें नहीं मिलती थी लेकिन वे हाथियों को देखकर काफी खुश होते थे.
चालीस साल पहले 50 रुपये गिलौरी मिलता था बनारसी पान
इस मेले की शान बनारस के ही दुकानों का पान भी था. मैं चालीस साल पहले की कहानी बताता हूं. उस वक्त मेले में बनारस की मशहूर दुकान बदलराम, लक्ष्मी नारायण और काशी विश्वनाथ आये हुए थे. उनका एक खास पान 50 रुपये में मिल रहा था. पूरे सोनपुर ही नहीं पटना तक इसकी खबर फैल गयी. लोग दूर दूर से देखने आये और पैसे वालों ने उसे चखा भी. मैंने एक आदमी से पूछा कि भैया कैसा लग रहा है तो जानते हैं क्या बोला? कहा- अरे मक्खन है मक्खन. हमें हैरत हो रही थी. ऐतना महंगा तो मक्खनो नहीं था?
पशु क्रूरता अधिनियम ने बदल दिये मेले के रंग
वे कहते हैं कि पशु क्रूरता अधिनियम ने मेले के रंग और ढंग बदल दिये. बिहार सरकार ने जब इसे प्रभावी ढंग से लागू किया तो सोनपुर की पहचान हाथी घोड़ा पक्षी गायब होते गये. पंजाब से गायों-बैलों का आना बंद हो गया. बैल बाजार की बड़ी प्रसिद्धि थी. वह भी ट्रैक्टर के कारण खत्म होता गया. पिछले चार पांच सालों में पर्यटन विभाग द्वारा आयोजन के कारण स्थितियां बेहतर हुई है.
बढ़ गये फिल्मी थियेटर, पुराने कलाकार हुए गायब
उनके जेहन में उस वक्त की मशहूर कलाकारा गुलाब बाई, नीलम बाई और संध्या-शोभा जैसे कलाकारों की प्रसिद्धि ताजा है जो विशुद्ध थियेटर कलाकार थी. उनके ड्रामे का क्या क्रेज था? हम बता नहीं सकते. अब एक दर्जन से ज्यादा फिल्मी नाच वाले थियेटर लग रहे हैं. इसने पहले मेला को बदनाम भी किया था.
http://epaper.prabhatkhabar.com/c/23546848
-तब सोने चांदी की सजती थी दुकान, बनारस का पान होता था मेला की शान
-बुजुर्ग सोनपुर वासी माधवेंद्र सिंह, जो लंबे वक्त तक मेला की याद में सोनपुर मेला
सोनपुर मेला क्षेत्र। आज से 70-75 साल पहले का वक्त याद कर रहा हूं. उस समय सोनपुर मेला में राजे रजवाड़ों की धमक खास होती थी. उधर जहां आप स्टेशन देख रहे हैं ना वहां पर उनके कैंप लगते थे. कैंप क्या था पूरा महल ही होता था. भोजन, सैनिक से लेकर नृत्यांगनाएं. पूरी महफिल सजती थी. मुजरा होता था और कला के कद्रदानों की वाह वाह होती थी. इधर हरिहर नाथ मंदिर के पास पटना के मशहूर पुरानी मिठाई की दुकान मिलन, मिलाप और पिंटू होटल की शक्ल में सजी रहती थी. वहां सोना चांदी की दुकान सजती थी. बिहार के विभिन्न रियासतों के राजा महाराजा अपनी रानियों संग आते थे, शाही स्नान में शामिल होते थे और उसके बाद सोने की दुकानों में खरीददारी करते थे. उनके कारण मेले की बड़ी शोहरत थी.
आजादी मिली तो भी उसमें कोई फर्क नहीं आया. विदेशी पर्यटक तब भी आते थे, भले आज जैसी सहूलियतें उन्हें नहीं मिलती थी लेकिन वे हाथियों को देखकर काफी खुश होते थे.
चालीस साल पहले 50 रुपये गिलौरी मिलता था बनारसी पान
इस मेले की शान बनारस के ही दुकानों का पान भी था. मैं चालीस साल पहले की कहानी बताता हूं. उस वक्त मेले में बनारस की मशहूर दुकान बदलराम, लक्ष्मी नारायण और काशी विश्वनाथ आये हुए थे. उनका एक खास पान 50 रुपये में मिल रहा था. पूरे सोनपुर ही नहीं पटना तक इसकी खबर फैल गयी. लोग दूर दूर से देखने आये और पैसे वालों ने उसे चखा भी. मैंने एक आदमी से पूछा कि भैया कैसा लग रहा है तो जानते हैं क्या बोला? कहा- अरे मक्खन है मक्खन. हमें हैरत हो रही थी. ऐतना महंगा तो मक्खनो नहीं था?
पशु क्रूरता अधिनियम ने बदल दिये मेले के रंग
वे कहते हैं कि पशु क्रूरता अधिनियम ने मेले के रंग और ढंग बदल दिये. बिहार सरकार ने जब इसे प्रभावी ढंग से लागू किया तो सोनपुर की पहचान हाथी घोड़ा पक्षी गायब होते गये. पंजाब से गायों-बैलों का आना बंद हो गया. बैल बाजार की बड़ी प्रसिद्धि थी. वह भी ट्रैक्टर के कारण खत्म होता गया. पिछले चार पांच सालों में पर्यटन विभाग द्वारा आयोजन के कारण स्थितियां बेहतर हुई है.
बढ़ गये फिल्मी थियेटर, पुराने कलाकार हुए गायब
उनके जेहन में उस वक्त की मशहूर कलाकारा गुलाब बाई, नीलम बाई और संध्या-शोभा जैसे कलाकारों की प्रसिद्धि ताजा है जो विशुद्ध थियेटर कलाकार थी. उनके ड्रामे का क्या क्रेज था? हम बता नहीं सकते. अब एक दर्जन से ज्यादा फिल्मी नाच वाले थियेटर लग रहे हैं. इसने पहले मेला को बदनाम भी किया था.
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