-वृद्धाश्रम में रह रहे बुजुर्गों की जीजीविषा, गले लगाया, गाने गाये और फिर मोमबत्ती जलाकर बांटी खुशियां
पटना. आहुति बाकी यज्ञ अधूरा, अपनों के विघ्नों ने घेरा. अंतिम जय का वज़्र बनाने-नव दधीचि हड्डियां गलाएं. आओ फिर से दीया जलायें. पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जी की कविता आओ फिर से दीया जलाएं पटना के आर गार्डेन के पास स्थित वृद्धाश्रम सहारा में साकार हो रहा था. अपनों से दुत्कारे हुए बुजुर्ग यहां बेगानों के बीच छोटी दिवाली मना रहे थे. अपने जीवन में बच्चों के लिए जो आहुति उन्होंने दी थी उससे जीवन का यज्ञ तो नहीं साकार हो सका क्योंकि अपनों द्वारा दिये गये विघ्न ने ही इन बुजुर्गों को वृद्धाश्रम को घर बनाने को मजबूर किया था. अब अपनी अंतिम बेला में ये हड्डियां गला रहे हैं लेकिन फिर भी उम्मीद का प्रतीक दीया जला रहे हैं.
सब दिन होत ना एक समाना....
इसके पहले लोकमान्य तिलक जी अपना ढाेलक लेकर संदेश दे रहे हैं. सब दिन होत ना एक समाना प्रभु जी..सब दिन होत ना एक समाना. उनके साथ झूलन साव, चंदेश्वर प्रसाद, कांति देवी, हीना देवी, जीरा देवी, आशा देवी तालियां बजा रही थी. तिलक जी कहते हैैं कि हमें अपनों से दर्द तो मिला है लेकिन यहां बेगाने ही अपने हैं. अपने बनाये घरों में घुट-घुट कर जीना भी कोई जीना थोड़े ही है.
http://epaper.prabhatkhabar.com/c/23054285
पटना. आहुति बाकी यज्ञ अधूरा, अपनों के विघ्नों ने घेरा. अंतिम जय का वज़्र बनाने-नव दधीचि हड्डियां गलाएं. आओ फिर से दीया जलायें. पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जी की कविता आओ फिर से दीया जलाएं पटना के आर गार्डेन के पास स्थित वृद्धाश्रम सहारा में साकार हो रहा था. अपनों से दुत्कारे हुए बुजुर्ग यहां बेगानों के बीच छोटी दिवाली मना रहे थे. अपने जीवन में बच्चों के लिए जो आहुति उन्होंने दी थी उससे जीवन का यज्ञ तो नहीं साकार हो सका क्योंकि अपनों द्वारा दिये गये विघ्न ने ही इन बुजुर्गों को वृद्धाश्रम को घर बनाने को मजबूर किया था. अब अपनी अंतिम बेला में ये हड्डियां गला रहे हैं लेकिन फिर भी उम्मीद का प्रतीक दीया जला रहे हैं.
सब दिन होत ना एक समाना....
इसके पहले लोकमान्य तिलक जी अपना ढाेलक लेकर संदेश दे रहे हैं. सब दिन होत ना एक समाना प्रभु जी..सब दिन होत ना एक समाना. उनके साथ झूलन साव, चंदेश्वर प्रसाद, कांति देवी, हीना देवी, जीरा देवी, आशा देवी तालियां बजा रही थी. तिलक जी कहते हैैं कि हमें अपनों से दर्द तो मिला है लेकिन यहां बेगाने ही अपने हैं. अपने बनाये घरों में घुट-घुट कर जीना भी कोई जीना थोड़े ही है.
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