बिहार की बीमार नदियों में हम आप करेंगे छठ पूजा, विशेषज्ञ कहते हैं कि नदियों का जल आचमन के लायक भी नहीं
रविशंकर उपाध्याय, पटना
हम और आप इस बार भी बीमार नदियों में छठ मैया की आराधना करेंगे. आस्था के नाम पर हम नदियों से जल लेकर आयेंगे, प्रसाद भी बनायेंगे और शाम तथा सुबह में नदियों के जल में घंटों रहकर सूर्य देव की आराधना करेंगे. लेकिन यह जानिये कि बिहार के नदियों के पानी की हालत खराब है. नदियों में पानी का फ्लो बहुत कम है और प्रदूषण इस कदर है कि विशेषज्ञों की नजर में यह नाले बन चुके हैं. पानी रहे तब ना कचरे बहे? अब कचरे वाले इस जल से यदि हम पवित्र प्रसाद बनाते हैं तो हम उसकी शुद्धता को लेकर शंका से घिरे रहते हैं और यदि रुढ़िवादी रहेंगे तो फिर चलता है कि मानसिकता के साथ आस्था के नाम पर प्रदूषण झेलते रहेंगे. स्वास्थ्य और हाइजीन के हिसाब से ठीक नहीं है. राजधानी में तो और बुरा हाल है. सौ से ज्यादा नाले सीधे गंगा में गिराये जा रहे हैं. एसटीपी काम नहीं कर रहे हैं और इसके कारण यहां ना केवल गंगा दूर गयी है बल्कि जहां है, वहां बेहद प्रदूषित हैं. हमने इस विषय को लेकर जब कुछ विशेषज्ञों से बात की तो उनका साफ कहना था कि छठ में केवल हम आस्था के कारण ही नदियों में जलार्पण के लिए जाते हैं.
एक सप्ताह पहले राजधानी में डाइवर्ट हो नालों का पानी : प्रो रमाकर झा
एनआइटी पटना के सेंटर फॉर रिवर स्टडीज के प्रमुख प्रो रमाकर झा कहते हैं कि सभी तीर्थ स्थान के किनारे फ्लोटिंग पॉपुलेशन बहुत ज्यादा है. रोज लाखों लोग शहर में आते हैं, एक तो वह गंदगी करते हैं. इसका प्राॅपर मैनेजमेंट होना चाहिए. अब पटना में यदि आप गंगा नदी में त्योहार मनाना चाहते हैं तो जितने भी सौ से ज्यादा नाले नदी में मिल रहे हैं. उसे डायवर्ट किया जाये, खेतों में ले जाया जाये और नदियों के टॉप लेवल में एक से तीन फीट का कचरा निकालना होगा जहां पर नाले मिल रहे हैं. इस गंदगी को सैदपुर नाले में डायवर्ट करना होगा. बहुत सारी तकनीक अब आ गयी है जिससे हम ऐसा कर सकते हैं. बहुत सारी ईंटें भी आयी है जो मेटल आयरन और गंदगी को जज्ब कर लेते हैं. कुछ केमिकल जो नुकसान नहीं करते उसका प्रयोग नदियों में करना चाहिए. पंखे जो पानी के अंदर लगाये जाते हैं वह रोटेट कर पानी को साफ करता है. रि-इरेशन की इस प्रक्रिया में मिट्टी में कन्वर्ट हो जाता है. आॅक्सीजन मिलने के बाद वह मिट्टी हो जायेगी. नदी यदि नाले में बदल जाये तो गंदगी करती है. यह सारी प्रक्रिया एक हफ्ते पहले होनी चाहिए.
पानी का फ्लो नहीं रहने के कारण नदियां हुई है प्रदूषित: प्रो प्रधान पार्थसारथी
सेंटर फॉर इन्वायरमेंट स्टडीज के प्रमुख प्रो प्रधान पार्थ सारथी कहते हैं कि बिहार में कहीं भी किसी भी नदी में पानी है नहीं, कैचमेंट में बारिश की कमी है और यही कारण है कि पानी में फ्लो नहीं है. सिल्ट की वजह से फ्लो डिस्टर्ब हो गया है. सोन काफी ऊंचाई से आता है और सिल्ट लेकर आता है इसकी वजह से गंगा में सिल्ट बढ़ते हैं. इसकी वजह से पटना के गंगा के 20-25 किमी पहले कहें या फिर बाद में पानी का बहाव कम है. यही नहीं गंडक भी सिल्ट को लाकर डिपॉजिट कर देती है. अब नदियां 70 फीसदी रिचार्ज तो बारिश के कारण ही होती है. डैम बनाने के कारण फ्लो कम हो गया. लेकिन यह हालत खतरनाक है. जितनी बड़ी सभ्यता है वो रिवर के आस पास ही बनती है और उसकी बुरी स्थिति के कारण खत्म भी हो जाती है. परंपराएं तो खत्म नहीं होंगी लेकिन हम सबको चेतना जरूर होगा.
एक्सपर्ट कमेंट: बिहार और पूर्वी यूपी की एक भी नदी का जल आचमन के लायक नहीं: राजेंद्र सिंह
बिहार और पूर्वी यूपी में मनाया जाने वाला छठ ऐसा पर्व है जो नदियों और जल की शुद्धि के साथ ही सम्मान को लेकर एक बड़ा संदेश देता है. लेकिन दुखद स्थिति यह है कि बिहार और पूर्वी यूपी की एक भी नदी का जल आचमन करने के लायक नहीं है. स्नान करने और पूजा के प्रसाद बनाने के लिए इन जल के प्रयोग की तो बात छोड़ ही दीजिए. बिहार की सारी नदियां तो गंदे नाले में तब्दील हो चुकी हैं. आप गंगा की बात करें या फिर गंडक की. सोन नदी की बात करें या फिर कोसी की. सभी की हालत खराब है. इस कारण अब पूजा की परंपरा में तब्दीली देखी जा रही है. नमामि गंगे की बात करने वाली केंद्र सरकार ने कुछ काम ही नहीं किया. इतनी सारी बातें हुई लेकिन गंगा का जल नहाने के लायक भी नहीं बना सके. गंगा बीमार हैं, आइसीयू में भर्ती हैं लेकिन ट्रीटमेंट के नाम पर पैसे की बर्बादी हो रही है.
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