समाज में बदलता शोषक वर्ग

मेरा मानना है कि पिछले डेढ़ दशक में शोषक वर्ग बदला है. राजनीति हो या समाज. सब जगह. यह शोषक वर्ग कोई जाति विशेष का नहीं है बल्कि अब पैसे और पावर वाला है. हित और संघर्षों की लड़ाई में यह परिवर्तन अभी और तेजी से जारी रहेगा. मेरे गृह जिले नालंदा के नूरसराय प्रखंड में दिवाली के दिन जो हुआ वह मेरी इस मानसिकता को और मजबूत कर रहा है. आप इस खबर को देख लीजिए. कथित तौर पर खैनी मांगने के लिए घर में बिना अनुमति घुसे एक अधेड़ को थूक चटाया गया और उसकी चप्पलों से पिटाई की गयी. पीड़ित ठाकुर जी यानी नाई जाति के हैं और शोषक यादव जी हैं.  मुझे याद है कि बिहार विधानसभा चुनाव 2015 के दौरान हमारे एक मित्र ने कहा था कि भई गांव में अब जब अगड़ी जाति के लोग रहते ही नहीं हैं या रहते भी हैं तो उदासीन हैं तो सत्ता तो हमें ही ना मिलेगी? इसे संयोग कहिए या दुर्योग इसी सत्ता के मद ने सभी को शोषक बनाया है और समाज के इस बदलाव को इस खबर की नजर से देख सकते हैं. मेरा व्यक्तिगत अनुभव सुन लीजिए, पावापुरी में  हमारे मोहल्ले के ठीक पीछे पासवान जाति के लोग रहते हैं. वे हर पर्व त्योहार के अवसर पर चार चार लाउडस्पीकर लगा कर फुल वॉल्यूम में दिन रात गाना बजाते हैं. उन्हें कोई मतलब नहीं होता है कि कौन सा अवसर है और कौन सा गाना बजाना चाहिए. पहले लोग समझाते भी थे अब ऐसा नहीं करते क्योंकि पासवान जाति के लोगों को लगता है कि उनकी आजादी पर अगड़ी जाति वाले लोग हमला कर रहे हैं. इसकी आड़ में वे अपनी मनमानी करते रहते हैं. अब आप बताइए, पीड़ित कौन और शोषक कौन?



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