मैट्रिक परीक्षा: यादों के आइने में-1

मैट्रिक परीक्षा: यादों के आइने में-1

वे वर्ष 2000 के शुरूआती महीने थे. मैं अपने दो और दोस्तों के साथ अपने दालान के एक कमरे में तैयारियों में मशगूल रहते थे. सबके अपने लक्ष्य और अपने इरादे. मैट्रिक परीक्षा का जो सवाल था. एक परीक्षा, जो आपको जमाने के साथ लड़ने के लिए तैयार करता है. वह परीक्षा जो पहली बाधा तो होती ही है, पहला अवसर भी होता है. अवसर भविष्य को बेहतर करने का. तो इसी उधेड़बुन में मैं, बचपन के साथी रमेश और अंजय भी थे. हम सब ठंडी में भी मैट्रिक परीक्षा की तैयारियों को लेकर सुबह पांच बजे उठते थे, जलमंदिर का एकाध चक्कर लगाने के बाद आना घर में नाश्ते के बाद फिर से किताबों में घुस जाना हम सबकी दिनचर्या का एक अहम हिस्सा था. स्कूलों के दिन खत्म हो गये थे और सुबह से शाम तक केवल एक ही लक्ष्य था. वह लक्ष्य पढ़ने का था. वजह भी थी तीस लड़के लड़कियों का बैच था और उन सबके बीच कंपिटिशन भी टफ हुआ करता था.
चर्चा भी उसी तरह की..आजकल विनोदवा मट्टिया शंखपुष्पी पीता है जी ताकि याददाश्त तेज हो जाये. रमेश उस वक्त का ब्रेकिंग न्यूज राजेश गफूर के माध्यम से हम सबको सुनाता है. अरे टुनमुन्नमा तो तीने बजे उठ कर पढ़ता है, लालटेन जलता रहता है उसका घर में. उस वक्त जे कभी ना पढ़ता था, उसी का कहानी खूब चटखारा के साथ सुनाई पड़ता था. खैर अपन को ज्यादा कुछ पढ़ना नहीं था, सो बस कोरम पूरा होता था. गणित जो आजकल दिमाग से सरक जाता है तब बड़ा प्यारा लगता था और आज जो हिंदी जेहन में रच बस रहा है, उससे जादा प्रेम ना था. हवा हूं हवा मैं बसंती हवा हूं कभी पूरा याद नहीं हुआ लेकिन किसने लिखा और सार क्या है? ये जान लेता था बस. ज्यामीति और त्रिकोणमीति में स्पीड ठीक ठाक था. भूगोल, भौतिकी और इतिहास में भी मजा आता था. वन बटा यू प्लस वन बटा वी इज इक्वल टू वन बटा एफ को प्रूव्ड कर विजेता टाइप अहसास होता था. टेस्ट हो या फाइनल सब जगह काम चलाऊ रिजल्ट तो रहता ही था.
खैर वे दिन भी पास आ ही गये जब हम सबको स्कूल से अपना एडमिट कार्ड लाने के लिए जाना था. जाने के बाद एक झटका सा लगा. अंजय खबर बताता है, अरे महराज इ कि होलो, हमनी के फार्मा के बीच में भकुआ तीन फार्म और घुसा देलको हल. अब हम दुनु यानी अंजय रमेश के बीच में भकु, अशोक और मोहना बैठतो.
खैर ई साजिश उस वक्त हल्की नहीं थी लेकिन हमने ध्यान नहीं दिया. बस तैयारी पर भरोसा था और इ कह कर अपने को मना लिये कि झांकने नहीं देंगे और का? रुला देंगे लेकिन नहीं चोरी नहीं करने देंगे. वो दिन भी आ ही गया जब हमें परीक्षा के लिए राजगीर जाना था. राजगीर जाने की तैयारी भी बड़ी जबरदस्त थी. एक ट्रेकर बुक हुआ, बरतन, अनाज से लेकर आदमी  सब लद गये. 2 मार्च 2000 का दिन था वह. हम सब भूल भी कैसे सकते हैं. अभय भैया को खाना बनाने की जिम्मेवारी. पावापुरी से गिरियक के रास्ते राजगीर पहुंचे. वहां पर शानदार सुविधाओं वाले जैन धर्मशाला पहले से खुलवाए गये थे. फाइव स्टार की फिलिंग वाला मजा आया था कसम से. शाम में सब्जी की खरीदारी कर ही रहे थे कि साढ़े सात बजे वाले प्रादेशिक समाचार से सूचना मिली कि नीतीश कुमार कल मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे और मैट्रिक की परीक्षा कैंसिल की जाती है. दस दिन बाद दाेबारा डेट का अनाउंसमेंट होगा. हम सब उस रात खूब पिकनिक किये, सुबह बुझे मन से घर लौट गये क्योंकि तैयारी जम कर हुई थी.
 (क्रमश:)###

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Ravishankar Upadhyay
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Comments

  1. md islam : आपने परीक्षा की तैयारी का जो अनुभव साझा किया है, वाकई बेहद रोचक है। ऐसे दौर से मैं भी कभी गुजरा हूँ। मजा आ गया जनाब। एक लाइन में कहूँ तो आपने उक्त बातें लिखी नहीं है, बल्कि नाटक मंचन के माध्यम से उसकी जीवंत प्रस्तुति की है। आपके कलम की धार लगातार बढ़ती रहे। ढेर सारी शुभकामनाएं।

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