84 लाख योनियों की मुक्ति के लिए 84 बीघे के तालाब में होती है छठ पूजा
-नालंदा के पावापुरी में जलमंदिर तालाब के छठ घाट पर उमड़ती है श्रद्धालुओं की भीड़-पौराणिक मान्यताओं के साथ अंकशास्त्र का तर्क
रविशंकर उपाध्याय, पटना
नालंदा जिले के पावापुरी के प्रसिद्ध जलमंदिर के 84 बीघे के तालाब में छठ व्रती 84 लाख योनियों से मुक्ति की कामना करते हैं. इस छठ घाट पर हर वर्ष सैंकड़ों लोगों की भीड़ उमड़ती है और भक्तगण छठी मईया से कामना करते हैं कि हर बार उन्हें मानव तन ही मिले. पौराणिक मान्यता है कि मनुष्य का तन 84 लाख योनियों में जन्म लेने के बाद मिलता है. इस तालाब के निर्माण में भी इसी मान्यता को ध्यान में रखा गया है. इसके मुताबिक इस तालाब की परिधि को ना केवल 84 बीघे में समेटा गया बल्कि छठ घाट की बनावट भी इस प्रकार की गयी जिसमें एक तरफ वे डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य दे और दूसरी तरफ उगते हुए सूर्य को. इन्हीं सब खासियतों के कारण यहां श्रद्धालुओं की अच्छी खासी भीड़ जुटती है. अंकशास्त्र और तर्कशास्त्र का हवाला देते हुए पंडित अमित माधव कहते हैं कि भारतीय परंपरा में 84 अंक का बहुत महत्व है. जन्मों का वर्गीकरण 84 लाख प्रकार हैं. इसके साथ ही योग के आसनों का प्रकार भी 84 होता है और ब्रज में कृष्ण काल के स्थानों, देवालयों आदि में विशेष पूजा, दर्शन, आराधना होती है, यह स्थान 84 कोस में फैले हुए माने जाते हैं. इसी लिए पुरुषोत्तम मास में ब्रज 84 कोस की परिक्रमा लगाई जाती है. यहां का तालाब भी इसी की कड़ी है और उन्हीं मान्यताओं को लेकर बरसों से लगातार यहां पूजा होती आ रही है.
2541 वर्ष पुराना है यह तालाब
पावापुरी का यह तालाब 2541 वर्ष पुराना है. पावापुरी में जैन धर्म के 24 वें तीर्थंकर भगवान महावीर को निर्वाण की प्राप्ति हुई थी और उसके बाद यहीं अग्नि संस्कार किया गया था. इस तालाब के निर्माण के पीछे रोचक कथा यह है कि भगवान महावीर का जब अग्नि संस्कार हुआ तो उसके बाद उनके उपासक यहां से उनका भस्म पवित्र मान कर ले जाने लगे. बाद में जब भस्म खत्म हुआ तो मिट्टी ले जाने लगे. जिसके बाद यह धीरे धीरे यह क्षेत्र बड़ा होता गया. बाद में यह 84 बीघे का तालाब बन गया. इसके बाद कभी भी इसके स्वरुप से छेड़छाड़ नहीं हुई. पावापुरी के बुजुर्ग बताते हैं कि उसी वक्त से शुरू हुई छठ की परंपरा निर्बाध जारी है.
बॉक्स: पावापुरी में है सूर्य नारायण की अद्भुत मूर्ति
नालंदा में सूर्य भगवान की कई मूर्तियां खास है. बड़गांव में सूर्य देव की आराधना करने के लिए तो पूरे देश से भक्तगण पहुंचते ही है. इसी कड़ी में पावापुरी में सूर्य नारायण की मूर्ति है जो कई मायने में अद्भुत है. यह ऐसी मूर्ति है जिसमें सूर्य और भगवान विष्णु का मेल है. पावापुरी गांव के अंदर सूर्य मंदिर अवस्थित है जहां सूर्य भगवान की छह दुर्लभ मूर्तियां रखी हुई है. छठ पूजा में अर्घ्य के बाद लोग यहां पूजा करना नहीं भूलते. ग्रामीण ब्रह्मदेव सिंह बताते हैं कि आपने सूर्य की मूर्ति तो कई देखी होगी लेकिन विष्णु और सूर्य के युग्म वाली मूर्ति शायद ही कहीं देखी हो. यही सूर्य नारायण हैं जिनकी छठ में पूजा होती है और गीतों में चर्चा. पावापुरी की मूर्ति की खासियत बताते हुए वे कहते हैं कि यहां आप देख सकते हैं कि इसमें भगवान विष्णु की सौम्यता लिए मूर्ति में कमल भी है और सूर्य के कानों में कुंडल भी. यही नहीं एक मूर्ति तो ऐसी है जिसमें सूर्य सैनिक वेषभूषा में बूट पहने हुए हैं और तलवार भी रखे हैं. सरकार ने अभी तक इसका संरक्षण नहीं किया है नहीं तो यह मंदिर पूरे देश में सूर्य भगवान की मूर्तियों के लिए खास बन जाए.
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