जन्माष्टमी


यादो के जेहन में जन्माष्टमी आज भी कैद है. आज फिर से कुलबुला रही है.. घर पर पंद्रह दिन पहले से  तैयारी शुरू होती थी. ठाकुरबाड़ी में किसकी पूजा की बारी है हो? अच्छा उनका है...तो रंगाई पुताई शुरू हुई? हा आज से ही लेबर लोग लगा है. खाली चूना होगा कि डिस्टेम्पर भी? अरे उनखर पारी है न जी ई बार डिस्टेंपर के साथे साथ अलग अलग कलर भी होतै..बचपन में हम लोग का काम होता था बस उसे निहारना और अपन हिसाब से मदद देना. उसी बहाने घर से छुट्टी का भी मौका मिल जाता था. अरे ई बार तो पंखा और घडी भी लगाया गया जी. अरे भाय उनखा पास पैसा है न जी. वायरिंग भी हो गया और लोहा वाला गेट भी लग गया. चला अब कुत्ता उत्ता नय आएगा. सातवी क्लास में था तब ठाकुरबाड़ी सुरक्षित हो गया था. सात दिन पहले से झूलन वाला कार्यक्रम. शाम में भजन शुरू होता था जो देर रात में दिल तड़प तड़प के कह रहा है आ भी जा.. पर जाकर ख़त्म. कई ग़ज़ल और गाने भी हमने वही अपने दालान की छत से सीखे..बैठकबाज़ी से लेकर अपनी कला को निखारने का भी माध्यम बनता था जन्माष्टमी उत्सव. तो बच्चा लोगो के लिए फूल और पुष्पपत्र लाने और सजाने का बड़ा सलीकेदार काम सीखने की जगह भी. अरे देखो तो उ है बड़ा अच्छा सजाता है. वो हाज़िर हो जाता था.
इसके साथ ही ठाकुरबाड़ी का सामाजिक महत्व भी था. ओल्ड एज होम टाइप का. जिसको घर पे जगह नहीं दिया गया वो आ जाता था ठाकुरबाड़ी. वे भी जन्माष्टमी में पुरे शौक से शामिल होते थे. उनके घर का उत्सव जो हो जाता था. देर रात तक जागकर जन्माष्टमी ख़त्म करके सोने जाना. दो साल मैट्रिक की तैयारी के दिनों में जन्माष्टमी से थोड़ा शिद्दत से इससे जुड़ा क्योकि श्री कृष्ण गोविन्द हरे मुरारे.. के चरण तले ही अपनी पढ़ाई होती थी. आज जन्माष्टमी है और वो यादें रह रह कर ताज़ा हो जा रही है. जय श्री कृष्ण!!!        






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