राज़नीति और उसकी पल पल बदलती धाराएं

राज़नीति और उसकी पल पल बदलती धाराएं अपना रुख कभी ख़ामोशी से तो कभी मुखर होकर बदलती रहती है. अभी जब लोकसभा चुनाव हो रहे है तो मुझे एक घटना याद आ रही है..मेरे पिताजी कभी कट्टर कांग्रेसी हुआ करते थे. मै भी जब बड़ा हो रहा था तो कॉंग्रेसिओं की नीतियां और कार्यक्रम आमने सामने छाये रहते थे.. नानीघर में भी कोंग्रेसी नेताओं के चित्र नुमाया होते थे.. जब राजीव गांधी की हत्या कर दी गयी तो घर में चूल्हा नहीं जल था वो भी याद है..उदारीकरण के दौर में भले ही नए भारत के द्वार पीवी नरसिह राव ने खोले लेकिन क्रेडिट नेहरू परिवार को बड़े शौक से जाता रहा..जब भी घर पर या रिश्तेदारो के यह मज़मा जमता था तो परिचर्चाओं को मै भी ध्यान से सुना करता था. क्या नहीं दिया नेहरू परिवार ने इस देश को? करोडो का आनंद भवन दान में दे दिया देश को..फलाना दे दिया...चिलाना दे दिया..मन में उनकी तस्वीरें मूर्ति का रूप लेती जा रही थी. कभी मैंने भी चुनावो में कांग्रेस को वोट किया..पढ़ाई शुरू हुई, दुनिया दारी से वास्ता पड़ा तो बचपन में सुने हुए वे नीति और सिद्धांत खोखले लगने लगे..लगा की करोडो दान देने वाले करोडो नौकरिओ को क्यों नहीं पैदा कर सके? जिस एन एच या राज्य की  सड़क से ननिहाल जाता  था वो इतनी बुरी थी की तीस किमी की दूरी तय करने में चार घंटे लगते थे..लगता था सरकार दान धर्म के जगह सड़क क्यों नहीं बनाती? ननिहाल तक जाने के लिए सड़क नहीं थी, वह बिजली भी नहीं थी, फिर से सवाल करता था..कानून व्यवस्था का बुरा हाल ऐसा की शाम में भी नहीं निकल सकते थे...जब बेकारी के हाल में था तब भी सवाल आते ही गए..घीन हो गयी इन सरकारों से..
2005 में जब बिहार में चुनाव हो रहे थे तो फिर वोट किया. सड़के बनने लगी..गावं बिजली से रोशन होते गए..कानून व्यवस्था ठीक हो गयी...कुछ को रोज़गार भी मिलने लगे..मेडिकल-इंजीनियरिंग कॉलेज भी खुले..पल पुलिए बनने लगे..इसबार वोट के पहले पिताजी से बात हो रही थी..उन्होंने जो कहा वो मुझे इस लेख को लिखने के लिए प्रेरित कर गया. उन्होंने कहा कि अभी की राज्य सरकार ने नालंदा और पावापुरी के विकास के लिए बहुत कुछ किया है. आसानी से उपलब्ध है और मुख्यमंत्री भी हमसबकी समस्याओं को ख़त्म करते है..इसे तो वोट मिलना ही चाहिए. ख़ामोशी से ही सही परिदृश्य बदला तो है..
Ravishankar upadhyay
wrote on 27 April 1 PM

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