मुन्नी, शीला, रज़िया और अब पिंकी के बहाने रेप विमर्श

मुन्नी, शीला, रज़िया और अब पिंकी के बहाने  रेप विमर्श 

मुंबई में जब महिला फोटो पत्रकार से रेप की घटना हुई तो मुझसे किसी ने प्रतिक्रिया मांगी. मेरे जेहन में एक कहावत याद आयी...बाघ चिन्हे ब्राह्मण का बच्चा? ऐसे बाघ हमारे समाज में हरेक जगह मंडराते रहते हैं. इसी का परिणाम है की भारत घुमने आयी शिकागो यूनिवर्सिटी की छात्रा मिशेल क्रॉस को ऐसे बाघ मिले और उसने पुरे भारत के सभी पुरुषो को कुसूरवार या यो कहे की बदचलन समझ लिया.. आखिर समाज में ऐसे लोग पनपते कैसे हैं? ये सवाल है और बड़ा मौजूं भी है. मै बहुत गहरे में तो नहीं जाऊंगा लेकिन मेरे जेहन में जो जवाब पनपे है उसके बारे में जरुर कुछ कहूँगा. ऐसे तत्व हमेशा समाज में रहे हैं लेकिन टीवी की क्रांति और इन्टरनेट के चकाचौंध ने परिदृश्य तो बदला ही हैं. अभी महिला को भोग्या बना देने वाले टीवी पर लम्बी चौड़ी बहस कर रहे हैं. खूब आदर्शवादी बाते कह रहे हैं. माफ़ कीजियेगा इनमे मैं फिल्मो के निर्माताओं से लेकर हीरो, हीरोइन और गीतकारों को भी बराबर का भागीदार मानता हूँ. इन्होने चोली के पीछे..जैसे गाने लिखे और उसपर भौंडे नृत्य भी पेश किये. आज वो दौर बदलकर लड़किओं के नाम तक पहुचकर बेहूदगी की हद पार कर रहा है. मुन्नी..शीला...रज़िया से पहुंचकर ये अब रिलीज होनेवाली ज़ंजीर के पिंकी तक पहुँच गया है. ये गाने ऐसे चल निकले की गाने के शब्दों के कारण मनचले इन नाम वाली लड़किओं का सड़क पर चलना दूभर कर दिया. आज कल के माता पिता अब बच्चिओं के प्रचलित नाम रखने पर भी कई बार विचार कर रहे हैं लेकिन कल का क्या पता?
मुंबई रेप विक्टिम के समर्थन में आज इन गानों, संवादों के रचयिता और फिल्मैता खूब गला फाड़ रहे है लेकिन बिजनेस के आगे सभी सिद्धांत गर्त में गये नज़र आते हैं.
अब यदि मातापिता पे आये तो वे भी बच्चों की प्रगति में बाधक नहीं बनकर स्मार्ट फ़ोन और लैपटॉप आसानी से उपलब्ध करा देते हैं. इन्टरनेट कनेक्शन दे देने के बाद वे शायद ही वे निगेहबानी रखते हैं. जबकि वे कभी उन किताबो और फिल्मो के लिए पता नहीं कितनी जद्दोजहद करते थे जो अभी एक क्लिक पर उपलब्ध रहता है. इसके अलावा पाठ्यक्रमों से नैतिक शिक्षा का लोप हो जाना और उपभोक्तावादी संस्कृति का उन्मादी बाज़ार समाज के पतन का एक बड़ा कारण है.        






  

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