ऐसा कोई सगा नहीं जिसको ठगा नहीं..?
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार आजकल अच्छाइओं से ज्यादा गलत फैसलों से चर्चा में हैं. बिहार के विकास का हल्ला हंगामा करने वाले नीतीश के बारे में लालू से अच्छा शायद कोई और नहीं जानता. कभी लालू के चेले हुआ करते थे नीतीश. उनके साथ की एक कहानी बड़ी प्रसिद्ध है. हुआ ये की एकबार पटना में जेपी आन्दोलन के दौरान प्रदर्शन होने वाला था. इन सबने रणनीति बनाई और चले विधानसभा की ओर. लालू स्थिति को भांप कर बीच में ही गायब हो गए, बाद में पुलिस ने गोली भी चला दी. हल्ला हो गया की लालू मारा गया. पटना में बवाल मच गया. नीतीश ने कहा ऐसा हो ही नहीं सकता.उनके कहे पर लोगो ने पता लगाया तो जानकारी मिली कि लालू ससुराल में हैं..बाद में खबर आयी कि यह खुराफात लालू की ही थी. इससे स्पष्ट हो गया कि दोनों एक दुसरे के बारे में अच्छी तरह जानते हैं.
बाद में जब दोस्ती दुश्मनी में बदल गयी और लालू कहने लगे कि ऐसा कोई भी सगा नहीं है जिसे नीतीश ने ठगा नहीं है. तो लोगो को ये बाते जलन और डाह के परिणाम के रूप में लगने लगी. मुझे वर्ष 2005 का वो दौर याद आता है जब नीतीश को खुद भाजपा ने सीएम के उम्मीदवार के रूप में प्रोजेक्ट किया था. नया बिहार नीतीश कुमार ...के नाम से कम्पेनिंग की गयी थी. सब बड़े बीजेपी के नेता ने इसमें बढ़ चढ़ कर भाग लिया था. तब बिहार विधानसभा में बीजेपी की जेडीयू से ज्यादा सीटें भी थी. अब जब धीरे धीरे नीतीश की पार्टी की सीट बढ़ने लगी तो उसने बीजेपी को दरकिनार करना शुरू कर दिया. यह दूसरे कार्यकाल में ज्यादा हुआ. पहले विशेष राज्य का दर्ज से शुरू हुआ यह किस्सा कबिनेट के फैसलों और अधिकारिओ की मनमर्जी से तबादले से जोर पकड़ चुका था. दिल्ली की कार्यकारिणी की बैठक में तो इनका ठगने वाला रूप देखने लायक था.
अब इसी कहानी की अंतिम पटकथा में की अंतिम कड़ी महाराजगंज चुनाव में सामने आयी. विकास का ढिंढोरा पीटने वाले ये साहब हाथ जोड़कर वोट मांग रहे थे लेकिन तबतक शायद इनका चरित्र जनता जान चुकी थी. बुरी तरह हारे और मुह छुपाने पर विवश हुए सीएम साहब के तेवर में कमी आयी लेकिन यह अल्प समय के लिए ही था. बीजेपी का गोवा अधिवेशन और बाद में आडवानी प्रकरण ने इनके पुराने चरित्र को जिन्दा कर दिया. अभी सभी सिपहसालारो को इन्होने अनाप शनाप बयां देने की लिए छोड़ दिया है और खुद बोले भी तो लगा नहीं ही बोले..मुझे लग रहा है की ये दो दिनों में बीजेपी का साथ छोड़ सकते हैं या लोलीपॉप जो पीएम पद का हो सकता है. उसपर मान सकते हैं. अंत में मुझे लालू की कही वो बात सही लग रही है जिसमे उन्होंने हरेक सगे को नीतीश द्वारा ठगने की बात कही थी...
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार आजकल अच्छाइओं से ज्यादा गलत फैसलों से चर्चा में हैं. बिहार के विकास का हल्ला हंगामा करने वाले नीतीश के बारे में लालू से अच्छा शायद कोई और नहीं जानता. कभी लालू के चेले हुआ करते थे नीतीश. उनके साथ की एक कहानी बड़ी प्रसिद्ध है. हुआ ये की एकबार पटना में जेपी आन्दोलन के दौरान प्रदर्शन होने वाला था. इन सबने रणनीति बनाई और चले विधानसभा की ओर. लालू स्थिति को भांप कर बीच में ही गायब हो गए, बाद में पुलिस ने गोली भी चला दी. हल्ला हो गया की लालू मारा गया. पटना में बवाल मच गया. नीतीश ने कहा ऐसा हो ही नहीं सकता.उनके कहे पर लोगो ने पता लगाया तो जानकारी मिली कि लालू ससुराल में हैं..बाद में खबर आयी कि यह खुराफात लालू की ही थी. इससे स्पष्ट हो गया कि दोनों एक दुसरे के बारे में अच्छी तरह जानते हैं.
बाद में जब दोस्ती दुश्मनी में बदल गयी और लालू कहने लगे कि ऐसा कोई भी सगा नहीं है जिसे नीतीश ने ठगा नहीं है. तो लोगो को ये बाते जलन और डाह के परिणाम के रूप में लगने लगी. मुझे वर्ष 2005 का वो दौर याद आता है जब नीतीश को खुद भाजपा ने सीएम के उम्मीदवार के रूप में प्रोजेक्ट किया था. नया बिहार नीतीश कुमार ...के नाम से कम्पेनिंग की गयी थी. सब बड़े बीजेपी के नेता ने इसमें बढ़ चढ़ कर भाग लिया था. तब बिहार विधानसभा में बीजेपी की जेडीयू से ज्यादा सीटें भी थी. अब जब धीरे धीरे नीतीश की पार्टी की सीट बढ़ने लगी तो उसने बीजेपी को दरकिनार करना शुरू कर दिया. यह दूसरे कार्यकाल में ज्यादा हुआ. पहले विशेष राज्य का दर्ज से शुरू हुआ यह किस्सा कबिनेट के फैसलों और अधिकारिओ की मनमर्जी से तबादले से जोर पकड़ चुका था. दिल्ली की कार्यकारिणी की बैठक में तो इनका ठगने वाला रूप देखने लायक था.
अब इसी कहानी की अंतिम पटकथा में की अंतिम कड़ी महाराजगंज चुनाव में सामने आयी. विकास का ढिंढोरा पीटने वाले ये साहब हाथ जोड़कर वोट मांग रहे थे लेकिन तबतक शायद इनका चरित्र जनता जान चुकी थी. बुरी तरह हारे और मुह छुपाने पर विवश हुए सीएम साहब के तेवर में कमी आयी लेकिन यह अल्प समय के लिए ही था. बीजेपी का गोवा अधिवेशन और बाद में आडवानी प्रकरण ने इनके पुराने चरित्र को जिन्दा कर दिया. अभी सभी सिपहसालारो को इन्होने अनाप शनाप बयां देने की लिए छोड़ दिया है और खुद बोले भी तो लगा नहीं ही बोले..मुझे लग रहा है की ये दो दिनों में बीजेपी का साथ छोड़ सकते हैं या लोलीपॉप जो पीएम पद का हो सकता है. उसपर मान सकते हैं. अंत में मुझे लालू की कही वो बात सही लग रही है जिसमे उन्होंने हरेक सगे को नीतीश द्वारा ठगने की बात कही थी...
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