बरमेश्वर हत्याकांड से झांकता बिहारी समाज
1 जून के बाद बिहार के विभिन्न हिस्से में घटी घटनाये बिहारी समाज की वो तस्वीर नए सिरे से पेश करती है जो विकास की उस दौड़ में कही नेपथ्य में छुट गयी थी।. पहले शुरू करें बरमेश्वर हत्याकांड से। बीस साल पीछे जाने पर एक घटना याद आती है। मैं अपने ननिहाल में था। जहानाबाद के उस छोटे से गाँव में तबले की थाप पर मैंने बन्दुक की तक् धिना धिन भी सुनी थी. उदारीकरण के उस दौर में समाज भयावहता के साये बिच जी रहा था। गर्मी की छुट्टियों में जब वहां गया तो खेतों में अजीब किस्म की ख़ामोशी थी. एक फसल नहीं लगी थी। बड़े मामा ने कहा की मजदूरों ने विद्रोह कर दिया है। सामंतों के खेतो में तभी काम करेंगे जब हमारी शर्तों पे होगा। विवाद ने लड़ाई का रूप अख्तिअर कर लिया. बंदूकें खरीदी जाने लगी. याद है की ब्रह्मण और भूमिहार एक तरफ हो गए दूसरी तरफ वे सब. परिणाम कुछ ने रणवीर सेना का दामन थाम लिया तो दूसरी और पीपुल्स वार ग्रुप में सदस्यों की संख्या बढती गयी। मारकाट के उस दौर में शांति दूर की कौड़ी थी। नाना जी ने मामा को दुसरे जगह भेज दिया था ताकि प्रतिद्वंदिता की लडाई में भगत सिंह घर में ही न पैदा हो जाये। नहर की सिंचाई से सोना उगलने वाली भूमि बन्दुक बोने के लायक कब हो गयी किसी को पता नहीं चला। वह समय हमेशा यादों के जेहन में कैद होकर रह गया.
जब 1 जून बरमेश्वर सिंह की हत्या के बाद आरा, पटना, जहानाबाद, बरबीघा में फसाद की ख़बरें आने लगी तो बिहारी समाज की वह छवि फिर से ताजा होने लगी है। बिहारी समाज लाख बदल जाये पर अपनी जाति का झूठा मोह नहीं छोड़ सकता।
1 जून के बाद बिहार के विभिन्न हिस्से में घटी घटनाये बिहारी समाज की वो तस्वीर नए सिरे से पेश करती है जो विकास की उस दौड़ में कही नेपथ्य में छुट गयी थी।. पहले शुरू करें बरमेश्वर हत्याकांड से। बीस साल पीछे जाने पर एक घटना याद आती है। मैं अपने ननिहाल में था। जहानाबाद के उस छोटे से गाँव में तबले की थाप पर मैंने बन्दुक की तक् धिना धिन भी सुनी थी. उदारीकरण के उस दौर में समाज भयावहता के साये बिच जी रहा था। गर्मी की छुट्टियों में जब वहां गया तो खेतों में अजीब किस्म की ख़ामोशी थी. एक फसल नहीं लगी थी। बड़े मामा ने कहा की मजदूरों ने विद्रोह कर दिया है। सामंतों के खेतो में तभी काम करेंगे जब हमारी शर्तों पे होगा। विवाद ने लड़ाई का रूप अख्तिअर कर लिया. बंदूकें खरीदी जाने लगी. याद है की ब्रह्मण और भूमिहार एक तरफ हो गए दूसरी तरफ वे सब. परिणाम कुछ ने रणवीर सेना का दामन थाम लिया तो दूसरी और पीपुल्स वार ग्रुप में सदस्यों की संख्या बढती गयी। मारकाट के उस दौर में शांति दूर की कौड़ी थी। नाना जी ने मामा को दुसरे जगह भेज दिया था ताकि प्रतिद्वंदिता की लडाई में भगत सिंह घर में ही न पैदा हो जाये। नहर की सिंचाई से सोना उगलने वाली भूमि बन्दुक बोने के लायक कब हो गयी किसी को पता नहीं चला। वह समय हमेशा यादों के जेहन में कैद होकर रह गया.
जब 1 जून बरमेश्वर सिंह की हत्या के बाद आरा, पटना, जहानाबाद, बरबीघा में फसाद की ख़बरें आने लगी तो बिहारी समाज की वह छवि फिर से ताजा होने लगी है। बिहारी समाज लाख बदल जाये पर अपनी जाति का झूठा मोह नहीं छोड़ सकता।
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