suno ho....

कभी कभी आपको आवाज सुनाने के लिए कई तरह की चीजे करनी होती है. एक पत्रकार होने के नाते मुझे भी लोगो को कुछ सुनाने के लिए तरकीबें भिड़ानी पड़ती है. झारखण्ड के आदिवासी समाज को समझाने के लिए परेशानी का सामना करना पड़ता है. कोई भी समस्या हो आपको पत्रकार होने के नाते वे सरकारी तंत्र की खबर लेने वाले समझते है. खुद कभी न तो सड़क पर उतरेंगे न ही विरोध का झंडा उठाएंगे.. आपको ही लोग सर्वेसर्वा समझेंगे.. आपको भी मुगालता होगा की आप बड़े वो है .... वास्तविकता क्या है वो तो आप भी जानते हैं...
अब  आप सोचेंगे की उनकी परेशानी सुनी जाये .. ऐसे में सुनो हो के फरमान को पूरा करने के लिए आपको सोचना पड़ता है.  मैंने कई चीजे सोची है आप भी कुछ सोचिये और बताइए... आपके इन्तेजार में...
     

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