नयेपन की चाह में हमें सबकुछ करना अच्छा लगता है ..... शायद हमारा अंतर्मन ही नयेपन की मांग करता है . सच तो यह है की हमें नया नया अच्छा लगता है. नहीं तो सूरज दादू तो बस रोज अपनी पहली किरण के साथ हाजिर हो ही जाते है न ? चंदा मामा भी शाम के धुंधलके के साथ ही आ जाते है.. फिर नया क्या होता है की हम नया साल या नया दिन मानते है? आज मैंने येही सवाल अपने मित्र सोनू जी से किया था .... बेचारे सोच में पड़ गए ... कहने लगे बताऊंगा देखते है क्या जवाब देते है....
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