कहने को तो आदिवासियो को भोला भाला कहा जा सकता है लेकिन उनके तथाकथित भोलेपन का नमूना मुझे तिन दिसंबर को महसूस हुआ. हुआ ये के एक दिसंबर को लेकर मैंने एक विशेष स्टोरी लिखी शीर्षक था आदिवासी इलाके में एड्स के मामले ज्यादा . इसमें सर्वे का हवाला देते हुए मैंने बताया था की जानकारी की कमी, समाज में उन्मुक्तता इस का मुख्य कारन है.
कल रात हमारे तोरपा रिपोटर ने फोन पर बताया की इस स्टोरी से कुछ आदिवासी संगठन नाराज है उनका कहना है की हमारे समाज में ऐसी कोई बात नहीं है. इस पर उन्होंने चार तारीख को मीटिंग बुलाई है आपको भी आना पड़ सकता है. अजीब बात है न ? अभिव्यक्ति की आजादी पर तालिबानी कानून का पहरा! वो भी झारखण्ड में . मेरे तोरपा के मित्र का मानना है की उनका बस चले तो वे बाहरी को रहने ही न दे, उन्होंने कई तरह की परेशानियो का जिक्र भी किया ..
मै अभी किकर्तव्य विमूढ़ हूँ , यहाँ क्या पत्रकारिता के लिहाज से कुछ किया जा सकता है जब परेशानिया कुछ इस कदर हो ... बिहार और झारखण्ड में कितना बड़ा अंतर है... सच ही कहते है यहाँ के सदान यहाँ केवल जंगल वालो का हक है .. बाकि है तो गए काम से.. मै तो अलबत्ता नहीं ही जाऊंगा हाँ अजय ओर अजित भैया को जाना पड़ सकता है.. देखे है पंचायत की सुनवाई क्या होगी ?
कल रात हमारे तोरपा रिपोटर ने फोन पर बताया की इस स्टोरी से कुछ आदिवासी संगठन नाराज है उनका कहना है की हमारे समाज में ऐसी कोई बात नहीं है. इस पर उन्होंने चार तारीख को मीटिंग बुलाई है आपको भी आना पड़ सकता है. अजीब बात है न ? अभिव्यक्ति की आजादी पर तालिबानी कानून का पहरा! वो भी झारखण्ड में . मेरे तोरपा के मित्र का मानना है की उनका बस चले तो वे बाहरी को रहने ही न दे, उन्होंने कई तरह की परेशानियो का जिक्र भी किया ..
मै अभी किकर्तव्य विमूढ़ हूँ , यहाँ क्या पत्रकारिता के लिहाज से कुछ किया जा सकता है जब परेशानिया कुछ इस कदर हो ... बिहार और झारखण्ड में कितना बड़ा अंतर है... सच ही कहते है यहाँ के सदान यहाँ केवल जंगल वालो का हक है .. बाकि है तो गए काम से.. मै तो अलबत्ता नहीं ही जाऊंगा हाँ अजय ओर अजित भैया को जाना पड़ सकता है.. देखे है पंचायत की सुनवाई क्या होगी ?
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